कर्नाटक सहित इन राज्यों मे है हर पांच साल में सत्ताधारी पार्टी बदलने की परंपरा

कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टियों के साथ ही विश्लेषकों में भी इसलिए असमंजस है,क्योंकि यहां 30 वर्षों से हर पांच वर्ष में सत्ता बदलने की परंपरा है। ये परंपरा 1985 से जारी है।

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कर्नाटक चुनाव के फैसले की घड़ी करीब आ गई है। 10 मई को मतदान के बाद 13 मई को मतों की गिनती के साथ ही कुल 224 सीटों पर मैदान में उतरे उम्मीदवारों के साथ ही पार्टियों की किस्मत का भी फैसला हो जाएगा। जीत के दावे तो सभी पार्टियां कर रही हैं, लेकिन असली सिकंदर तो वही होगी, जिसे जनता अपने मत देकर विजेता घोषित घोषित करेगी।

कर्नाटक में वापसी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टियों के साथ ही विश्लेषकों में भी इसलिए असमंजस है,क्योंकि यहां 30 वर्षों से हर पांच वर्ष में सत्ता बदलने की परंपरा है। ये परंपरा 1985 से जारी है। निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी के लिए यहां लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करना बड़ी चुनौती है। इस बात को समझते हुए भाजपा ने यहां चुनाव प्रचार में अपनी पूरी शक्ति लगा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा के स्टार प्रचारकों ने कर्नाटक चुनाव प्रचार में अपनी पूरी शक्ति और योग्यता को लगाकर भाजपा की जीत की जोखिम को समाप्त करने की कोशिश की है, लेकिन जानकार जानते हैं कि भाजपा की ये कोशिश सत्ता की वापसी की गारंटी ही होगी, इस बारे में दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

इन राज्यों में टूट गई परंपरा
उत्तर प्रदेशः पिछले कुछ वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो इस तरह की परंपराएं टूटी भी हैं। इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड है। सबसे पहले बात करते हैं, उत्तर प्रदेश की। मतदाता के लिहाज से देश के सबसे इस प्रदेश में 1989 से चली आ रही परंपरा 2022में टूट गई। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने यह कमाल कर दिखाया। हिंदुत्व के मुखर समर्थक और बिना किसी दंगा-फसाद के राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर योगी आदित्यनाथ ने यूपी की जनता का दिल जीत लिया।

34 साल की परंपरा टूट 2022 में टूट गई
उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को बंपर जीत दिलाकर( 255 सीट) यहां की 34 साल की परंपरा को तोड़ दिया। कभी वर्षों तक सत्ता की कमान संभालने वाली कांग्रेस इस प्रदेश में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, तो वर्षों तक सत्ता का सुख भोगने वाली मुलायम और अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी एड़ी-चोटी का जोड़ लगाकर भी भाजपा की जीत की राह को रोक नहीं सकी और 111 सीटों पर जीत हासिल कर वह विपक्ष में बैठने को मजबूर है।

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उत्तराखंडः कभी उत्तर प्रदेश के भाग रहने वाले उत्तराखंड में भी 2022 में हर पांच साल में पार्टियों की सरकार बदलने की परंपरा टूट गई। यहां वर्ष 2000 से सत्ता परिवर्तन की परंपरा चली आ रही थी। लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने उस परंपरा को ध्वस्त कर यहां एक बार फिर भगवा झंडा फहराने में सफलत हासिल की।

हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में सत्ताधारी पार्टी बदलने की 1985 से चली आ रही परंपरा 2022 में भी बरकार रही। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रदेश में परंपरा को तोड़ने और एक बार फिर भगवा फहराने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन मतदाताओं ने वही किया जो पिछले 38 साल की परंपरा चली आ रही है। इस प्रदेश में कांग्रेस फिर से आ गई और भाजपा को विपक्ष में बैठना स्वीकार करना पड़ा।

राजस्थान
देश के इस सबसे बड़े क्षेत्र वाले प्रदेश में भी हर पांच साल में सत्ताधारी पार्टियों के बदलने की परंपरा रही है। इस प्रदेश में इसी वर्ष यानी 2023 में चुनाव होने हैं। भारतीय जनता पार्टी की नजर इस प्रदेश पर लगी हुई है। उसे कांग्रेस के दो गुटों अशोक गहलोत और सचिन पायलट में जारी जंग का लाभ मिलने की उम्मीद है, लेकिन दावे के साथ कहा नहीं जा सकता कि उसकी यह उम्मीद पूरी होगी।

केरल
दक्षिण भारत के राज्य केरल में भी 1982 से हर पांच साल में सत्ताधारी पार्टियों के बदले जाने की परंपरा रही थी, लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई। 2022 में हुए चुनाव में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट(एलडीएफ) ने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट( यूडीएफ) को करारी शिकस्त देकर सत्ता में वापसी की। इसके साथ ही पिनाराई विजयन ने एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में सफलता हासिल की।

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