शिवसेना ‘उद्धव बाल ठाकरे’ ने अपने मुखपत्र सामना (Saamana) में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (Nationalist Congress Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार (Sharad Pawar) पर ‘व्यंग्य’ करते हुए उनकी तुलना ‘बरगद के पेड़’ से की है। निश्चित रूप से शरद पवार एक राष्ट्रीय नेता हैं, लेकिन वे एक उत्तराधिकारी पैदा करने में विफल रहे हैं जो एनसीपी को आगे ले जा सके। वहीं, मुखपत्र सामना में बीजेपी (BJP) के शरद पवार के इस्तीफे पर की गई टिप्पणी की भी आलोचना की गई है। सामना में बीजेपी को पार्टी तोड़ने वाला बताया है। वहीं दूसरी ओर शरद पवार ने भी अपनी संशोधित आत्मकथा में उद्धव ठाकरे पर जमकर हमला बोला है।
सामना ने कहा, ‘जैसे ही पवार संन्यास की घोषणा की, पार्टी जमीन से हिल गई और हर कोई सोच रहा था कि अब उनका क्या होगा… शीर्ष नेताओं ने विरोध किया और पवार ने जनभावनाओं का सम्मान किया।’ उन्होंने इस्तीफा वापस लेने का ऐलान किया…और इसके बाद उन्होंने इस्तीफा भी वापस ले लिया। वह आगे भी एनसीपी का नेतृत्व करते रहेंगे। 4-5 दिनों से चल रहे ड्रामे से पर्दा हट गया है। शरद पवार को उनके प्रशंसक साहब के नाम से संबोधित करते हैं।
सामना में बीजेपी पर हमला
‘सामना’ ने सोमवार को शरद पवार के इस्तीफे और फिर बीजेपी के यू-टर्न वाले बयान की आलोचना की। बीजेपी ने शरद पवार के इस्तीफे को ‘हथकड़ी’ बताया था, जिस पर सामना में लिखा था कि बीजेपी हमेशा दूसरे दलों या सदनों को तोड़ने के मूड में रहती है, वे किसी भी पार्टी के कल्याण या बेहतरी के बारे में नहीं सोच सकते। उनके पास ‘शिवसेना’ की तरह एनसीपी को तोड़ने की ‘योजना’ थी लेकिन शरद पवार की चाल ने उनकी योजना पर पानी फेर दिया। अखबार में कहा गया कि दूसरों को नौटंकी कहने से पहले उन्हें अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देख लेना चाहिए।
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पवार ने अपनी आत्मकथा में उद्धव ठाकरे की आलोचना की थी
गौरतलब हो कि, पवार ने अपनी आत्मकथा के एक संशोधित संस्करण में उद्धव ठाकरे की आलोचना करते हुए कहा कि वह अपनी पार्टी में विद्रोह को रोकने में विफल रहे और उनमें राजनीतिक कौशल की कमी थी। उन्होंने लिखा, ‘एमवीए को भंग करना राजनीतिक कौशल की कमी थी, सत्ता की रक्षा के लिए तेजी से काम करना होगा। हालांकि, जब एमवीए गिरने वाला था, तो उन्हें स्वास्थ्य कारणों से पहले चरण में प्रक्रिया से बाहर होना पड़ा। पवार ने कहा कि यह अविश्वसनीय है कि ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद सप्ताह में केवल दो दिन मंत्रालय जाते थे। बालासाहेब ठाकरे के खुलेपन को हम बहुत मिस करते थे। उद्धव से मिलने से पहले अपने डॉक्टरों से अप्वाइंटमेंट देखना पड़ता था।