‘महाराष्ट्र का सत्ता संघर्ष’ प्रकरण में कई प्रश्नों के उत्तर की आशा है, जिसमें संवैधानिक अधिकारों की परिधि का भी उत्तर मिलना है। महाविकास आघाड़ी सरकार के पतन और शिवसेना भाजपा युति सरकार के गठन के बीच जो राजनीतिक घटनाएं हुई उसके लेकर सर्वोच्च न्यायालय में 16 याचिकाएं गई थीं। जिस पर नौ दिनों तक सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई की और 16 मार्च को सुनवाई समाप्त करने के साथ ही आदेश सुरक्षित रख लिया। गुरुवार को सुनाए गए निर्णय में विभिन्न संवैधानिक विषयों का निपटारा हो जाएगा, जिसमें ग्यारह मुद्दे प्रमुख हैं।
- संविधान की दसवीं सूची के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष के पास भेजी गई अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस पर क्या कार्रवाई रोकी जा सकती है?
- संविधान के अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 32 के अनुसार विधानसभा सदस्यों की अपात्रता से संबंधित किसी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय निर्णय ले सकता है क्या?
- क्या न्यायालय को यह लगता है कि, विधानसभा के किसी सदस्य को अध्यक्ष के आदेश के बजाय अपात्र ठहराया जा सकता है क्या?
- सदस्यों के विरोध में अपात्रता की याचिका न्यायालय में प्रलंबित होने पर संसद/विधानसभा की परिस्थिति क्या हो सकती है?
- दसवीं अनुसूचि के पैरा 3 को हटाने का क्या परिणाम हुआ?
- विधायकों को जारी किये गए व्हिप और सभागृह के नेता को चुनने की प्रक्रिया में विधानसभा अध्यक्ष के क्या अधिकार हैं?
- दसवीं अनुसूचि के अनुसार क्या प्रक्रियाएं हैं?
- इंट्रा पार्टी अर्थात किसी दल में होनेवाला विद्रोह न्यायिक समीक्षा के अधीन आता है क्या? यदि हां, तो उसके क्या मानदंड होंगे?
- किसी दल या नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के लिए राज्यपाल के क्या अधिकार हैं? क्या यह न्यायालयीन परिधि में आता है?
- किसी दल में विद्रोह रोकने के लिए चुनाव आयोग का अधिकार क्या है? उसकी क्या मर्यादा है?