तो बच जाती शिवसेना !

शिवसेना कार्याध्यक्ष व एमवीए के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सरकार का पतन निश्चित था। दो तिहाई से अधिक विधायकों को खो चुकी शिवसेना शक्ति परीक्षण के लिए जाती तो क्या होता और नहीं गई तो क्या नुकसान हुआ इसका आंकलन रोचक है।

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शिवसेना उद्धव ठाकरे
FILE PHOTO

महाराष्ट्र में शिवसेना नीत महाविकास आघाड़ी की सरकार गिरनी तय थी। उद्धव ठाकरे की शिवसेना में चालीस विधायकों के विद्रोह के बाद सरकार अल्पमत में आ गई थी, ऐसे समय में यदि कानूनी दांवपेंच में न उलझकर यदि उद्धव ठाकरे शक्ति परीक्षण के लिए जाते तो मूल शिवसेना उद्धव ठाकरे के हाथ रहती।

महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टी और महाविकास आघाड़ी सरकार को पुन: स्थापित करने की याचिका पर निर्णय आ गया। इस निर्णय पर कानूनविदों की राय बहुत अलग है। विशेषज्ञों का कहना है कि, उद्धव ठाकरे के हाथ से सत्ता जानी तय ही थी। ऐसी स्थिति में वर्तमान संकट से बचा जा सकता था, जिसमें उद्धव ठाकरे के हाथ न दल रहा और न ही सरकार रही।

त्यागपत्र नहीं देना था
संविधान विशेषज्ञ एडवोकेट श्रीकांत इंगले कहते हैं, तत्कालीन शिवसेना कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिये था। उन्हें, राज्यपाल द्वारा बुलाए गए विशेष सत्र में सम्मिलित होकर शक्ति परीक्षण के लिए जाना चाहिये था। यदि ऐसा होता तो, सर्वोच्च न्यायालय गुरुवार को सुनाए निर्णय में उस सरकार को पुन: सत्तासीन करने का आदेश दे सकता था। दूसरी बात कि, शिवसेना पक्ष भी ऐसी परिस्थिति में उद्धव ठाकरे के पास ही रहता।

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न रही सत्ता, पार्टी से भी साफ
एडवोकेट राजीव पांडे कहते हैं कि, शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर बड़ी गलती की है। उन्हें फ्लोर टेस्ट के लिए जाना चाहिये था। ऐसी परिस्थिति में एकनाथ शिंदे गुट के चालीस विधायकों को किसी दल के साथ विलय करना पड़ता और शिवसेना पार्टी उद्धव ठाकरे के पास रह जाती। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी उद्धव ठाकरे का हाथ खाली ही है। न्यायालय के ऑपरेटिव पार्ट को देखें तो प्रतोद पर भी न्यायालय का आंकलन था, न्यायालय चाहता तो उसे रद्द कर देता। जबकि, 16 विधायकों का प्रकरण न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष के पास लौटा दिया है।

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