मध्य प्रदेश: कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए तीन और चीते, जंगल में कुल संख्या इतनी

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में तीन और चीतों को छोड़ा गया है। इसके साथ ही यहां के जंगलों में अब तक कुल छह चीते छोड़े जा चुके हैं।

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में तीन और चीतों (Cheetahs) को छोड़ा गया है। इसके साथ ही यहां के जंगलों (Forests) में अब तक कुल छह तेंदुए छोड़े जा चुके हैं। विदेशों से लाए गए इन चीतों को पहले बाड़ों में रखा जाता है और जब वे यहां के वातावरण के अनुकूल हो जाते हैं, तब उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान ने बताया कि तीन तेंदुए (अग्नि, वायु नाम के दो नर तेंदुआ और गामिनी नाम की एक मादा तेंदुआ) 19 मई को केएनपी के जंगलों में छोड़े गए। तीनों को दक्षिण अफ्रीका से भारत लाया गया था। इसके साथ ही कूनो नेशनल पार्क के जंगलों में अब तक छोड़े गये चीतों की संख्या छह हो गयी है।

मिली जानकारी के मुताबिक, बाड़े में अब 11 तेंदुए और चार शावक हैं। अधिकारी ने कहा कि पिछले साल सितंबर में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाए गए आठ चीतों में से तीन मादा चीता और एक नर चीता अब बाड़े में हैं। उन्होंने कहा कि नामीबिया से एक मादा चीता को अगले कुछ दिनों में जंगल में छोड़ा जाना है। एक और मादा चीता को जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता था क्योंकि उसने शावकों को जन्म दिया था। तीसरी मादा चीता अभी जंगल में छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।

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अधिकारी के मुताबिक नामीबिया के एक नर चीते ओबैन को भी बाड़े में रखा गया है, जो अक्सर क्षेत्र से बाहर निकल जाता है। भारत में फिर से चीता लाने की योजना ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत पिछले साल 17 सितंबर को नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क में पांच मादा और तीन नर सहित आठ चीतों को लाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चीतों को बाड़े में छोड़ दिया था। इसके बाद, इस साल 18 फरवरी को सात नर और पांच मादा सहित 12 चीतों को दक्षिण अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क लाया गया।

दो माह में तीन चीतों की मौत हो गई
इन 20 स्थानांतरित चीतों में से तीन चीतों – दक्ष, साशा और उदय – की पिछले दो महीनों में बाड़े में मौत हो गई। वहीं, सिया नाम के चीते ने इसी साल मार्च में कूनो नेशनल पार्क में चार शावकों को जन्म दिया था। भारत में आखिरी चीता 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में मारा गया था और इस प्रजाति को 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।

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