वीर सावरकर की महायातना और नेहरू-गांधी की केक पार्टी

स्वातंत्र्यवीर सावरकर का बंदीकाल अत्यंत ही कष्टप्रद था, उसी समय नेहरू और गांधी को मिली सजा और स्थानबद्धता सर्व सुविधाओं से संपन्न थी, जिसका उल्लेख सरकारी कागजों में भी है।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर प्रखर क्रांतिकारी थे, वे असंख्य क्रांतिकारियों के लिए क्रांति प्रणेता के रूप में थे। उन पर मदनलाल धींगरा, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह समेत असंख्य क्रांतिकारियों की आस्था थी। ब्रिटिशों के विरुद्ध चहुओर से हमला करनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ही थे। मजहबी राजनीति के प्रति स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने पहले ही आगाह कर दिया था, इसको लेकर उन्होंने राष्ट्र विभाजन की भी चेतावनी दी थी। राष्ट्रहित में किये गए ऐसे सभी कार्यों का परिणाम भी स्वातंत्र्यवीर सावरकर को कष्टप्रद यातनाओं के रूप में झेलना पड़ा। स्वातंत्र्यवीर सावरकर एकमात्र ऐसे क्रांति प्रणेता रहे हैं, जिनका पूरा परिवार स्वतंत्रता प्राप्ति की क्रांति में संलिप्त था। घर के सभी पुरुष ब्रिटिशों के निशाने पर रहे, संपत्तियां जब्त कर ली गई और महिला बच्चों को निराश्रित कर दिया गया।

वीर सावरकर का अति यातनादायी काल
ब्रिटिशों के अन्याय का बड़ा साक्ष्य है बंदीगृह में दी गई यातनाएं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर को पचास वर्षों के कालापानी की सजा दी गई थी। अंडमान में जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर को रखा गया था, उस समय अंडमान की परिस्थिति ऐसी थी कि, एक छोटी सी कुंद खोली में उन्हें रखा गया था। हाथ-गले और पैर को बेड़ियों से जकड़कर कोल्हू जुतवाया जाता था। सभी को एक निश्चित मात्रा में तेल निकालना होता था। बहुत से बंदी तो यातना झेलते हुए और भोजन को देखकर आत्महत्याएं कर लेते थे। परंतु, स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने यह झेलते हुए अपनी सजा पूरी करते रहे और अन्य बंदियों में शिक्षा, देशभक्ति की भावना और जीवन जीने की भावना का प्रचार करते रहे। अंडमान की अतियातनादायी जेल में बंदियों के आत्महत्या करने की संख्या बहुत थी। इन यातनाओं से मुक्ति के लिए कई बंदी कारागृह के प्रशासकों के बहकावे में अन्य धर्म स्वीकार कर लेते थे। वीर सावरकर ऐसी परिस्थिति में पथ प्रदर्शक बने रहे और क्रांतिकारियों की मुक्ति के लिए सतत प्रयत्नशील रहे। उन्होंने, ब्रिटिश सरकार को लिखा मुझे और मेरे बंधु को भले ही न छोड़ें परंतु, अन्य क्रांतिकारियों को मुक्त कर दें।

गांधी का पत्नी और नौकरों संग बंदीकाल
गांधी आगा खान पैलेस में स्थानबद्ध किये गए थे, जहां वे अपनी पत्नी कस्तूरबा और अपने निजी सहयोगी महादेव भाई देसाई के साथ रहते थे। अंडमान में, बैरी, सावरकर बंधुओं सहित सभी कैदियों को प्रताड़ित कर रहा था, जबकि गांधी के जेलर अर्थात अधीक्षक कैतेली बकरी के दूध की आइसक्रीम खिला रहा था, गांधी के 75वें जन्मदिन पर जेल अधीक्षक ने उन्हें 75 रुपए उपहार में दिए। गांधी की सहबंदी सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर भी जेलर ने उन्हें बकरी के दूध की आइसक्रीम खिलाई। उन्हें अपना सामान्य पौष्टिक भोजन यानी बकरी का दूध, खजूर, फल भी मिल रहे थे। इस बंदीकाल में गांधी का सारा खर्च, परिवार का खर्चा सरकार चलाती थी।

सावरकर परिवार की प्रताड़ना
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के बड़े बंधु बाबाराव को भी कालेपानी की सजा सुनाई गई थी, बाबाराव सावरकर को अंडमान भेजने के साथ परिवार की सारी संपत्ति और घर ब्रिटिशों ने जब्त कर लिया। कारागृह में वीर सावरकर को बहुत कष्टप्रद यातनाएं दी गईं। अंडमान कारागृह के बंदियों को पांच वर्ष में एक बार परिवार से भेंट की अनुमति थी, लेकिन वीर सावरकर के परिवार को आठ वर्ष पश्चात यह अवसर मिला।

नेहरू को विदेशी थाल, खेलने के मैदान और राजसी व्यवस्था
जवाहरलाल नेहरू को कारावास के लिए अहमदनगर किले में रखा गया था। वहां नेहरू के लिए विशेष रूप से यूरोपीयन भोजन बनानेवाले की नियुक्ति की गई थी, जो यूरोपीयन खाद्य पदार्थ बनाकर देता था। इसके अलावा कारागृह में नेहरू के लिए गुलाब के पौधे लगवाए गए थे। मौलाना आजाद के अनुसार यह पौधे पुणे के पूना फार्म से मंगवाए गए थे और नेहरू के सहकर्मियों ने इसे लगाया था। किले में बैडमिंटन कोर्ट बनवाया गया, विशेष पुस्तकें, बिजली चलित रेजर, 555 सिगरेट उपलब्ध कराई गई थीं। सुचेता कृपलानी ने नेहरू के लिए ग्रामोफोन और विशेष रिकॉर्ड्स उपलब्ध कराए थे। नेहरू की पुस्तक ‘सिलेक्टेड वर्क्स ऑफ नेहरू’ में इसका उल्लेख किया गया है।

वीर सावरकर को दस वर्ष में सात पत्र की अनुमति
अंडमान कारागृह के बंदियों को वर्ष में एक पत्र लिखने की अनुमति थी। उसमें भी स्वातंत्र्यवीर सावरकर को दस वर्षों में मात्र सात पत्र ही लिखने का आवसर दिया गया था। उनके पत्रों को पहले ब्रिटिश अधिकारी पढ़ते थे, उसके बाद ही उन्हें भेजा जाता था। अंडमान कारागृह में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ बाबाराव सावरकर भी बंद थे। परंतु, दोनों बंधुओं की भेंट नहीं हो पाती थी। सावरकर बंधुओं की उनके परिवारजनों से पहली भेंट कारागृह में बंद होने के आठ वर्षों के पश्चात हो पाई थी। बाबाराव सावरकर की पत्नी येसु वहिनी अंडमान में मिलने गई थीं, लेकिन वहां भेंट नहीं हो पाई। इसके पश्चात बाबाराव सावरकर से भेंट की प्रतीक्षा में ही येसु वहिनी का निधन हो गया।

नेहरू को प्रतिदिन पत्र व्यवहार की छूट
ब्रिटिश सत्ता जवाहरलाल नेहरू को सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराती थी। नेहरू प्रतिदिन पत्र लिख सकते थे। उन्होंने अपनी पुत्री को प्रतिदिन पत्र लिखे, अपनी बहन को पत्र लिखे। इन पत्रों के संकलन पर एक पुस्तक है, ‘Letters from a Father to his Daughter’ उस काल में गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद जैसे कांग्रेसी नेताओं को राजबंदियों की श्रेणियों में रखा गया था। गांधी को अपेंडिक्स के ऑपरेशन के लिए सजा में छूट दी गई, उनकी पत्नी कस्तूरबा के हृदय रोग से ग्रसित होने पर छूट दी गई, उन लोगों को उत्तम इलाज उपलब्ध कराया गया। इसी प्रकार नेहरू की पत्नी कमला नेहरू के कैंसर से ग्रसित होने पर नेहरू को कारागृह से जल्द छोड़ दिया गया। यूरोप में उपचार कराने गई कमला नेहरू से मिलने जवाहरलाल को पांच बार पेरोल पर छोड़ा गया था।

गांधी-नेहरू की सुविधा संपन्न कैद
गांधी को सभी सरकारी सुवधाओं के साथ पैसे भी मिलते थे। गांधी को बकरी के दूध के साथ खजूर, फल आदि दिया जाता था। इसी प्रकार जवाहरलाल नेहरू को भी यूरोपियन भोजन और आइसक्रीम उलब्ध कराया जा रहा था। इसके दूसरी ओर क्रांतिकारियों को असीम यातनाएं दी जा रही थीं, फांसी पर लटकाया जा रहा था। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पूरे परिवार को ब्रिटिशों की यातनाएं सहनी पड़ी थी। असंख्य क्रांतिकारियों ने इस काल में अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।

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