नीलवंडे बांध: उपमुख्यमंत्री ने बताई महाराष्ट्र के बांध की कहानी, जन्म से पहले शुरू हुआ काम 53 साल में पूरा

नीलवंडे परियोजना का कार्य अपने आप सरकारी लापरवाही और इच्छा शक्ति की पोलखोल है।

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नीलवंडे बांध

अहमदनगर जिले में स्थित नीलवंडे बांध परियोजना का काम 53 साल बाद पूरा हो गया है। बुधवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी में इस डैम से नहरों में पानी छोड़ने का परीक्षण किया गया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि भले ही तिजोरी देवेंद्र फडणवीस के पास है, लेकिन किसी भी प्रोजेक्ट के लिए पैसे मांगने पर तत्काल पैसा देते हैं। इसी वजह से कई वर्षों से अटके प्रोजेक्ट पूरे होने की ओर हैं। इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि, नीलवंडे परियोजना उनके जन्म से पहले शूरू हुई थी।

ऐसे पूरा हुआ काम
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह परियोजना मेरे जन्म से भी पहले की है। आठ करोड़ का यह प्रोजेक्ट पांच हजार करोड़ के पार चला गया। 1995 में गठबंधन सरकार आने के बाद इस परियोजना को पहली बार गति मिली। जब मैंने इस काम को करने का फैसला किया, तो मैंने विखे पाटिल से चर्चा की। अगर पहले 22 किमी का काम नहीं हुआ तो यह काम कैसे आगे बढ़ेगा? मैंने उनसे कहा कि जरूरत पड़ी तो बल प्रयोग करना पड़ेगा। उन्होंने सलाह दी कि बल प्रयोग करने की जरूरत नहीं है। मधुकर पिचड़ पर भरोसा करना चाहिए, पिचड़ साहब इससे निकलने का रास्ता जरूर निकालेंगे।

फडणवीस ने बताया कि पिचड़ से मुलाकात के बाद काम में तेजी आई, लेकिन हमारी सरकार आने के बाद हमने एक सुधारित शासन नियुक्त करने का निर्णय लिया लिया। इसे मार्च, 2023 में मंजूरी दी गई थी। इस साल के बजट में सबसे ज्यादा पैसा नीलावंडे प्रोजेक्ट के लिए उपलब्ध कराया गया। फडणवीस ने पिछली सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि महाविकास आघाड़ी सरकार ने तीस महीने में एक लाख हेक्टेयर के लिए संशोधित प्रशासनिक स्वीकृतियां दीं थी, जबकि हमारी सरकार ने पिछले 11 महीनों में 6 लाख हेक्टेयर को कवर करने वाली 27 परियोजनाओं पर काम शुरू किया है।

नीलावंडे परियोजना का इतिहास
नीलावंडे डैम के नाम से मशहूर इस परियोजना का इतिहास 50 साल से भी ज्यादा पुराना है। 1970 में प्रवरा नदी पर म्हलादेवी में बांध बनाने की प्रशासनिक स्वीकृति दी गई। किसानों के कड़े विरोध के कारण दो बार बांध का स्थल बदलना पड़ा। अंत में, डैम का स्थान निलावंडे में तय किया गया। मई, 1992 में बांध का भूमिपूजन किया गया। अगले साल खुदाई शुरू हुई। बांध का वास्तविक निर्माण मार्च 1996 में शुरू हुआ था। पुनर्वास के मुद्दे पर विरोध के चलते कई बार परियोजना का काम रोका गया।

आखिरकार 2008 में पुनर्वास के मुद्दों को हल करने के बाद बांध में पानी का भंडारण शुरू हो गया। बांध का निर्माण वर्ष 2012-13 में पूरा हुआ था, लेकिन नहरों का काम अधूरा होने के कारण अभी तक इस पानी का उपयोग परियोजना के प्रस्तावित लाभ क्षेत्र में नहीं किया जा सका था। अब 8.32 टीएमसी के क्षमता वाले इस डैम के पानी का उपयोग 68 हजार 878 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र के लिए किया जा सकेगा।

आठ तहसीलों के 182 गांव लाभान्वित होंगे
इस डैम से अकोले, संगमनेर, कोपरगांव, राहटा, श्रीरामपुर, राहुरी और सिन्नार (नासिक) की आठ तहसीलों के 182 गांव लाभान्वित होंगे। नीलावंडे आठ महीने की सिंचाई नीति को लागू करने वाली राज्य की पहली बड़ी परियोजना है। इस डैम की बायीं नहर की लंबाई 85 किमी. और दाहिनी नहर की लंबाई 97 किमी. है। इसके साथ ही केवल अकोले तहसील के लिए बाएं और दाएं दो उच्च स्तरीय पाइप नहरों का निर्माण किया गया है। बांध के कारण संपर्क टूटने वाले गांवों के लिए फ्लाईओवर का निर्माण किया जाएगा।

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