लेख: कमलेश पांडेय
पिछले तीन दशकों में भारतीय राजनीति में दो महत्वपूर्ण बदलाव महसूस किए जा रहे हैं। इन्हें नई आर्थिक नीतियों का राजनीतिक साइड इफैक्ट्स कहा जा सकता है। पहला, नेताओं व उनके भरोसेमंद कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास दिन ब दिन घटता जा रहा है और ग्लोबल-नेशनल पीआर एजेंसी इस जगह को तेजी से भरती जा रही हैं। दूसरा, राजनेताओं और नौकरशाहों की अंदरुनी सांठगांठ औद्योगिक घरानों व कारोबारियों से बढ़ती जा रही है और उनके मनमाफिक कानून बदले जा रहे हैं।
देखा जाए तो इन दोनों घटनाओं की वजह से समाजवादी लोकतंत्र, कब पूंजीवादी लोकतंत्र में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला! आहिस्ता-आहिस्ता यह प्रक्रिया और तेज ही होती जा रही है, जिससे पढ़े-लिखे और पैसे वाले लोगों के बजाय आम आदमी के हित ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, नकारात्मक अर्थों में। जिस हिसाब से व्यक्ति विशेष के खर्चे बढ़े हैं, उत्तरदायित्व बढ़ रहे हैं, आमदनी बिल्कुल नहीं। बदलते राजनीतिक माहौल में देश व समाज में पैसे को सर्वोच्च तरजीह दी जा रही है तथा जो लोग पैसे से पैसा और पावर से पैसा बनाने की कला में निपुण हैं, उनकी हर जगह पर पूछ बढ़ती जा रही है।
भटक गए नेता
ऐसे प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में धनाढ्य प्रवासी भारतीयों की पूछ हर दल में बढ़ी है, लेकिन उन्हें अपनाने के चक्कर में ओछी राजनीति भारतीय राजनेताओं के द्वारा की जा रही है। सच कहूं तो विदेश की धरती से बयानबाजी सम्बन्धी जो गलतियां की जा रही हैं, उससे केंद्रीय मंत्रिगण भी बिफर पड़े हैं। इससे भारत और भारतीयों का भी चिंतित होना स्वाभाविक है।
विभेद परोस रहे राहुल
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के अमेरिका से दिए गए ‘लक्षित बयानों’ से एक मजबूत राष्ट्र के रूप में भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बट्टा लगा है। यह सार्वजनिक चिंता का विषय है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि जैसे बहुमत के चक्कर में हमारे राजनेताओं ने देश के भीतर जाति, धर्म, भाषा व क्षेत्र आदि के आधार पर विभेद परोसकर अपने-अपने मजबूत समर्थक वर्ग तैयार कर लिए हैं, उसी प्रकार से ये विदेशों में भी प्रवासी भारतीयों को पटाना चाहते हैं, ताकि बैक चैनल से या डायरेक्ट उनकी वित्तीय मदद मिलती रहे। राहुल गांधी धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण की आड़ में प्रवासी भारतीयों के एक बड़े वर्ग को अपने साथ साधना चाह रहे हैं, ताकि उनके मिशन 2024 को बल मिले।
प्रायोजक एजेंसियों की संदिग्धता
यहां पर यह याद दिलाना जरूरी है कि विदेशों में कभी तिरंगा का अपमान करने, कभी भारतीय दूतावास पर विरोध प्रदर्शन करने, कभी हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान करने, कभी फिल्मों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करने या उनके पक्ष में रैलियां निकालने के जो प्रायोजित कार्यक्रम होते हैं, उसके पीछे स्थानीय संगठनों और चर्चित पीआर एजेंसियों की भूमिका जगजाहिर है। ऐसे ही लोग विभिन्न संगठनों के बैनर तले भारतीय नेताओं के कार्यक्रम आयोजित करवाते हैं और अपने सही-गलत दोनों इरादे की पूर्ति करते हैं। इसलिए आशंका है कि यहां उठने वाले मुद्दे भी ग्लोबल पीआर एजेंसी ही सुझाती होंगी।
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तुष्टीकरण का प्रेम
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के घृणा सम्बन्धी बयान की सोशल मीडिया से लेकर विदेशी धरती तक आलोचना हो रही है। ‘कानूनी नफरत’ के बाजार में ‘तुष्टीकरण वाले प्रेम’ की एक और दुकान खोलने के बाद ‘तथाकथित बढ़ती घृणा’ को बेचकर सियासी सहानुभूति खरीदने की ललक लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिका के कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस यूएसए’ के ‘मोहब्बत की दुकान’ कार्यक्रम में भाजपा पर जमकर हमले किए। उन्होंने दावा किया कि सरकार महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के समाधान की बजाय गैर जरूरी मुद्दे से ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर भी निशाना साधा।
समाज का बंटवारा
राहुल गांधी ने कहा, नए संसद भवन का उद्घाटन असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए है। वहीं, बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा संस्थानों में कमी जैसे मुद्दों पर वे चर्चा नहीं चाहते। वहीं, मुस्लिमों को लग रहा है कि उन पर ज्यादा हमले हो रहे हैं। लेकिन सिख, दलित, आदिवासी भी यही महसूस कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि महिलाओं के आरक्षण पर बिल लाना चाहते थे, लेकिन हमारे कुछ सहयोगी इस पर राजी नहीं हुए। हम सत्ता में आएंगे तो इसे पेश करेंगे। उन्होंने यहां तक कह डाला कि लोगों को धमकियां दी जा रही हैं, उनके खिलाफ जांच एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है। बता दें कि गत 2 मार्च 2023 को कैम्ब्रिज में राहुल गांधी के दिए हुए एक बयान पर भी भारत में विवाद हुआ था।