महासागर दिवस यह सोचने को मजबूर करता है कि, महासागर को कैसे मानव हानि पहुंचा रहा है। वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का प्रभाव महासागरों पर भी दिखाई देने लगा है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में दिनों-दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जहां तटीय क्षेत्र विशेष कर नदियों के मुहानों पर सूर्य के प्रकाश की पर्याप्तता के कारण अधिक जैव-विविधता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाते थे। वहीं अब इन क्षेत्रों के समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से वहां जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण एवं समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुंच पाता है। जिससे वहां जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित होती है।
प्लास्टिक, धातुओं के विसर्जन से संकट
महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागरों में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागरो में जस का तस पड़ा रहता है। अकेले हिंद महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुंचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है। विषैले रसायनों के रोजाना मिलने से समद्री जैव विविधता भी प्रभावित होती है। इन विषैले रसायनों के कारण समुद्री वनस्पति की वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले परितंत्रों में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।
विभिन्न प्रजातियों के आश्रय स्थल
अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व आस-पास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रो को पनाह देते हैं। जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव व वनस्पतियां पनपती हैं। इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मैन्ग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जीव भी मिलते हैं। एक अनुमान के अनुसार केवल महासागर के अंदर करीब दस लाख प्रजातियां उपस्थित हो सकती हैं।
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नहीं मिलेगा ऑक्सीजन
हम सांस लेने के लिए जिस ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं। उसकी दस फीसद मात्रा हमें समुद्र से ही प्राप्त होती है। समुद्र में मौजूद सूक्ष्म वैक्टीरिया ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं जो पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए बेहद जरूरी है। समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से ये वैक्टीरिया पनप नहीं पा रहे हैं। जिसके कारण समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा भी लगातार घट रही है। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो यह पशु-पक्षियों के साथ-साथ इंसानों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन सकता है।