सामाजिक रवायत में जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती एक कहावत है ‘जो बीत गई वो बात गई’, लेकिन राजनीति में यह फलसफा उतना फिट नहीं बैठता। यहां किसके अतीत की कौन सी बात कब भविष्य की समस्या बनकर आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसी ही एक कहानी महाराष्ट्र की राजनीति से निकलकर आ रही है। यह राजनीतिक किस्सा साल 2019 का है, जब भाजपा और एनसीपी ने मिलकर रातोंरात सरकार बनायी थी। 2019 की बात को वर्तमान में उछालने का मकसद आगामी विधानसभा के लिए विरोधियों की राजनीतिक जमीन खिसकाना हो सकता है।
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने 2019 में एनसीपी के सहयोग से बनी सरकार के बाबत खुलासा करते कहा है कि यह सब एनसीपी प्रमुख शरद पवार की सहमति से हुआ था लेकिन तीन-चार दिन में वो अपने वादे से पीछे हट गए और सरकार गिर गई। फडणवीस ने कहा कि शरद पवार के पीछे हटने के बाद अजित पवार और उन्हें सुबह-सुबह शपथ लेनी पड़ी
फडणवीस के अनुसार चुनाव नतीजों के बाद उद्धव ठाकरे सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के साथ बातचीत कर रहे थे इसी बीच एनसीपी के कुछ लोगों ने उनसे संपर्क किया और कहा कि वो एक स्थिर सरकार बनाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए शरद पवार के साथ एक बैठक हुई और सरकार बनाने का फैसला फाइनल हो गया। इसके लिए फडणवीस और अजित पवार को सभी अधिकार दिए गये। लेकिन शपथ ग्रहण की तैयारियों के बीच ही शरद पवार ने अपना फैसला वापस ले लिया। तब अजित पवार के लिए फडणवीस के साथ आने के अलावा दूसरा को रास्ता नहीं था। शरद पवार पर डबल गेम खेलने का आरोप लगाते फडणवीस ने कहा है कि अजित पवार ने उनसे शपथ लेने की बात की और कहा कि शरद पवार भी इसके बाद उनके साथ होंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
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