संयुक्त राष्ट्र महासभा के सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर-सरकारी बातचीत को इसके अगले सत्र को सौंपे जाने पर भारत ने आलोचना की है। भारत ने कहा है कि यह एक और व्यर्थ अवसर है। भारत ने यह भी कहा है कि यह प्रक्रिया सही प्रगति प्राप्त किए बगैर अगले 75 वर्ष तक जारी रह सकती है।
सुरक्षा परिषद में सुधार को अगले सत्र के लिए टाल देने से अंतर-सरकारी बातचीत के लिए वर्तमान 77वें सत्र का समापन हो गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने कल सुरक्षा परिषद में सुधार पर अंतर-सरकारी बातचीत जारी रखने के मौखिक निर्णय के प्रारूप को स्वीकार किया। सुरक्षा परिषद का 17वां सत्र सितम्बर में शुरू होगा।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि रूचिरा कम्बोज ने जोर देकर कहा कि यह स्पष्ट है कि अंतर-सरकारी बातचीत बिना किसी प्रगति के अगले 75 वर्ष तक जारी रह सकती है और इस दौरान वर्तमान स्वरूप और सही सुधार की दिशा में तौर-तरीके अर्थात प्रक्रिया के महासभा के नियमों के उपयोग तथा बिना किसी एक बार की बातचीत की विषय-वस्तु को दोहराने से सुधार आगे नहीं बढ़ेंगे।
कम्बोज ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र का जिम्मेदार और रचनात्मक सदस्य होने के नाते भारत सुधारों का समर्थन करने वाले हमारे साझेदारों के साथ इस प्रक्रिया में शामिल होता रहेगा। इसके अलावा बार-बार पुराने भाषणों के स्थान पर विषय-वस्तु आधारित बातचीत करने के हमारे प्रयास भी जारी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि अब यह स्पष्ट है कि अपने वर्तमान स्वरूप और तौर-तरीकों में कार्यवाही के अधिकृत रिकॉर्ड के बिना आईजीएन वास्तविक सुधार की दिशा में कई वर्षों तक जारी रह सकता है। लेकिन ‘जीए रूल्स ऑफ प्रोसीजर’ को लागू करना ही पड़ेगा। उन्होंने जोर दिया कि सुधार प्रक्रिया के बिना सुरक्षा परिषद में सभी देशों का सही तरीके से प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है।
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