पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद जनाधार की समीक्षा के लिए माकपा की दो दिवसीय बैठक 25 जुलाई से शुरू है। इसमें केवल पार्टी पदाधिकारियों को ही शामिल होने की अनुमति है। मीडिया को केवल तस्वीरें जारी की गई हैं। 26 जुलाई को सूत्रों ने बताया कि पहले दिन की बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के नाम तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ पार्टी नेताओं के शामिल होने को लेकर सवाल खड़े हुए हैं।
बता दें कि 25 जुलाई को पहले दिन की बैठक देर रात तक चली। इसमें अधिकतर लोगों ने यह सवाल उठाए कि लोकतंत्र बचाने के नाम पर विपक्ष की ऐसी बैठक में माकपा के शीर्ष नेता क्यों शामिल हो रहे हैं, जिनमें तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी मौजूद हैं?
बंगाल में खतरे में लोकतंत्र
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी पटना और बेंगलुरु में हुई पार्टी की बैठक में शामिल थे। इसे लेकर सवाल खड़ा करते हुए बैठक में कहा गया कि बंगाल में जहां सबसे अधिक लोकतंत्र खतरे में है, वहां ममता का राष्ट्रीय स्तर पर साथ देने का क्या मतलब है? इसका बंगाल में गलत संदेश जाएगा।
कारगिल विजय दिवसः एलओसी को लेकर राजनाथ ने पाकिस्तान को चेताया
ममता का साथ नहीं
बैठक में मोहम्मद सलीम के साथ सुजन चक्रवर्ती और अन्य नेता मौजूद थे। मोहम्मद सलीम ने इन तमाम सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भाजपा के खिलाफ एकजुट लड़ाई के लिए माकपा ने कांग्रेस का साथ लिया है। उन्होंने कहा कि विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया दिया गया है, जिसमें से अगर माकपा बाहर आएगी तो लोगों के बीच गलत संदेश जाएगा। भाजपा वैसे भी विपक्षी एकता को तोड़ना चाहती है और वोट बांटना चाहती है लेकिन केंद्र की सत्ता से उन्हें हटाने के लिए यह जरूरी है कि सारे दल एक हो जाएं और लोगों के बीच एकजुटता का संदेश जाए। इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता दर्शाई गई है। ममता का साथ कहीं नहीं दिया जा रहा है।