सुभाष चंद्र बोस की गुमनामी का राज खोलने ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान

वक्ताओं ने कहा कि हाल में भारत सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित कई फाइलें सार्वजनिक की है। इसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि आजादी के 20 सालों बाद तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार की खुफिया निगरानी की गई थी। इसका मतलब है कि खुद भारत सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मौत पर यकीन नहीं कर रही थी और परिवार से उनके संभावित संपर्क पर नजर रखी जा रही थी।

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हमारे प्यारे वतन की आजादी का माह चल रहा है। मां भारती की आजादी के लिए कठिनतम संघर्ष करने वाले अमर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ 1945 के विमान हादसे के बाद क्या हुआ? यह राज पूरा देश आजादी के बाद से ही जानना चाहता है लेकिन आज तक इस पर से पर्दा नहीं उठाया गया। अब आजादी के अमृत महोत्सव के समापन वर्ष में “यूनाइटेड प्लेटफॉर्म फॉर नेताजी” की ओर से एक ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत शुक्रवार से की गई है। इसके तहत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गुमनामी से जुड़े राज खोलने के लिए जांच की मांग वाला एक पत्र इस ऑनलाइन हस्ताक्षर के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजा जाएगा।

संगठन की ओर से संयोजक बोधिसतवा तरफदार ने बताया कि आज से अभियान की शुरुआत हुई है। इसमें बोधिसत्व तरफदार के अलावा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पोती जयंती रक्षित, ताप्ती घोष, मृण्मय बनर्जी, सुप्रियो मुखर्जी, डॉक्टर जयंत चौधरी और शौविक लाहिरी समेत अन्य गणमान्य लोग जुड़े हुए हैं। इन सभी ने शुक्रवार को कोलकाता प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान की घोषणा की। वक्ताओं ने तीन बिंदुओं पर जोर देकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गुमनामी से संबंधित जांच शुरू करने की मांग की। इसमें से पहला बिंदु है मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट जिसमें 18 अगस्त 1945 को ताइवान में विमान हादसे की थ्योरी को नकार दिया गया था। लेकिन खुद भारत सरकार ने 2006 में इस रिपोर्ट को ही नकार दिया, जबकि भारत सरकार ने ही मुखर्जी कमीशन को जांच का जिम्मा सौंपा था।

दूसरा बिंदु है ताइवान जहां विमान हादसे का दावा किया जाता है वहां के प्रशासन ने कई बार दावा किया है कि 18 अगस्त 1945 को किसी विमान हादसे का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

इसके अलावा तीसरे बिंदु में वक्ताओं ने कहा कि हाल में भारत सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित कई फाइलें सार्वजनिक की है। इसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि आजादी के 20 सालों बाद तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार की खुफिया निगरानी की गई थी। इसका मतलब है कि खुद भारत सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मौत पर यकीन नहीं कर रही थी और परिवार से उनके संभावित संपर्क पर नजर रखी जा रही थी।

इन तीनों बिंदुओं का जिक्र कर प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल प्रबुद्ध जनों ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत में क्रांतिकारियों के अग्रदूत रहे हैं। उनके साथ क्या हुआ? आजादी के बाद में जिंदा थे या नहीं? 18 अगस्त 1945 के विमान हादसे में उनके मारे जाने के जो दावे किए जाते हैं उस के पक्ष में पुख्ता प्रमाण क्या है? इस बारे में सब कुछ उजागर किया जाना चाहिए और यह जांच से ही संभव होगा। बोधिसत्व ने बताया कि ऑनलाइन हस्ताक्षर कैंपेन के जरिए बड़ी संख्या में लोगों के हस्ताक्षर मिल जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर इस मामले में जांच की मांग की जाएगी।

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