सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने अनुच्छेद 370 पर आज तीसरे दिन की सुनवाई पूरी कर ली है। 8 अगस्त को याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पूरी कर लीं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई 9 अगस्त को करेगी।
8 अगस्त को कपिल सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के उद्देश्य को रेखांकित करने वाले शेख अब्दुल्ला का 5 नवंबर, 1951 के भाषण का हवाला दिया, जिसमें भारत में विलय स्वीकार किया गया। सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर में पुराने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि जब हमलावर तेजी से श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे, तो हम राज्य को बचाने का केवल एक ही तरीका सोच सकते थे और वह एक मित्रवत पड़ोसी से मदद मांगना। वही राजा हरि सिंह ने किया था।
जनमत संग्रह कराने का अनुरोध
सिब्बल ने कहा कि भारत सरकार चाहती है कि कश्मीर में कानून और व्यवस्था बहाल होने के बाद राज्य के विलय पर लोगों से जनमत संग्रह कराया जाए। सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने खुद के लिए संविधान बनाया, जैसे भारत के लोगों ने खुद के लिए भारतीय संविधान बनाया। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि शेख अब्दुल्ला का सबसे बड़ा तर्क उनके पक्ष में दिया जा सकता है कि पाकिस्तान एक मुस्लिम राज्य है। वह कहते हैं कि हमारे लोगों का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम होने के कारण राज्य को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम राज्य होने का यह दावा निश्चित रूप से केवल एक छलावा है। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह आदमी को धोखा देने के लिए एक भ्रमित तस्वीर है, ताकि वह स्पष्ट रूप से न देख सके कि पाकिस्तान एक सामंती राज्य है, जिसमें एक गुट खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए इन तरीकों से कोशिश कर रहा है।
पढ़ा मीर कासिम का 10 नवंबर, 1952 का बयान
सिब्बल ने सवाल उठाया कि क्या आप एक कार्यकारी अधिनियम द्वारा संविधान के प्रावधानों को हटा सकते हैं। आप अनुच्छेद 3 को बदलकर जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान को नहीं बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि आप किसी कार्यकारी अधिनियम द्वारा विधान सभा को संविधान सभा में नहीं बदल सकते। उन्होंने कहा कि भारत संघ का एक कार्यकारी अधिनियम जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू भारत के संविधान के प्रावधानों को एकतरफा रूप से बदल नहीं सकता है। सिब्बल ने मीर कासिम का 10 नवंबर, 1952 का बयान पढ़ा।
एकतरफ़ा कार्यकारी निर्णय
सिब्बल ने कहा कि एकतरफ़ा कार्यकारी निर्णय किसी रिश्ते की शर्तों को नहीं बदल सकता है, जो संवैधानिक रूप से अनुच्छेद 370 में अंतर्निहित है। सिब्बल ने कहा कि भूमि कानूनों और पर्सनल लॉ से जुड़े कानून को छोड़कर अधिकांश भारतीय कानून वहां लागू होते हैं। इसलिए अनुच्छेद 370 को हटाने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि एक राजनीतिक संदेश देने के उद्देश्य के सिवाय और कुछ नहीं है कि हमने 370 को हटा दिया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा सरकार का पक्ष
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बाकी देश के नागरिकों के लिए उपलब्ध सभी 1200 लाभकारी कानून अब जम्मू-कश्मीर के लिए भी उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि 2019 से पहले वहां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और सूचना का अधिकार कानून लागू नहीं था। तब सिब्बल ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण कानून वहां पहले से लागू था। आप अनुच्छेद 370 को बदल भी नहीं सकते, निरस्त करना तो भूल ही जाइए। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि अनुच्छेद 370 खुद कहता है कि इसे निरस्त किया जा सकता है।
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अनुच्छेद 370 पर सिब्बल की दलीलों का 8 अगस्त को तीसरा दिन था। पांच सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।
दायर याचिका में क्या हैः
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य के सभी विधानसभा सीटों के लिए एक परिसीमन आयोग बनाया है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए भी भूमि खरीदने की अनुमति देने के लिए जम्मू एंड कश्मीर डेवलपमेंट एक्ट में संशोधन किया गया है। याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर महिला आयोग, जम्मू-कश्मीर अकाउंटेबिलिटी कमीशन, राज्य उपभोक्ता आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को बंद कर दिया गया है।