बलिदान दिवस विशेष : स्वाभिमान के लिए सात समंदर पार भी अंग्रेजों को मारी गोलियां

1 जुलाई 1909 की शाम थी। वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये जैसे ही विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ सभागार में आया, मदनलाल ढींगरा ने उसपर पाँच गोलियाँ दाग दीं। छठी गोली स्वयं को भी मारनी चाही किन्तु पकड़ लिये गये। बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया और मुकदमा चला। उन्होंने पेशी के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा कि- "मुझे प्रसन्नता है कि मेरा जीवन भारत राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा के लिये समर्पित हो रहा है।"

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स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिये क्राँतिकारियों ने केवल भारत की धरती पर ही अंग्रेज अधिकारियों को गोली मारकर मौत की नींद नहीं सुलाया, अपितु लंदन में भी क्रूर अंग्रेजों के सीने में गोलियां उतारीं। क्राँतिकारी मदन लाल ढींगरा ऐसे ही क्राँतिकारी थे, जिन्होंने लंदन में भारतीयों का अपमान करने वाले अधिकारी वायली को पाँच गोलियाँ मार कर ढेर कर दिया था।

सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी मदनलाल धींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब प्राँत के अमृतसर नगर में हुआ था। परिवार की पृष्ठभूमि सम्पन्न और उच्च शिक्षित थी। पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और आर्यसमाज से जुड़े थे। पर स्थानीय अंग्रेज अधिकारियों के भी विश्वस्त माने जाते थे। जबकि माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों में रची-बसी थीं। वे आर्यसमाज के प्रवचन आयोजनों में नियमित श्रोता थीं।

इस प्रकार मदनलाल ढींगरा को बचपन से ही अंग्रेज और भारतीय परंपरा दोनों का परिचय मिल गया था । लेकिन जब विद्यालय गये तो वहाँ उन्होंने भारतीय विद्यार्थियों के साथ अपमान जनक व्यवहार देखा, जिसका प्रतिरोध किया । शिकायत घर पहुँची । पिता ने समन्वय बिठाकर शिक्षा प्राप्त करने की सलाह दी । इसी मानसिक द्वन्द में किसी प्रकार विद्यालयीन शिक्षा पूरी हुई और आगे पढ़ने के लिये लाहौर महाविद्यालय पहुँचे। जहाँ के वातावरण में वे समन्वय न बना सके ।

मदनलाल महाविद्यालय से निकाल दिये गये। वे पिता की पोजीशन में बाधा नहीं बनना चाहते थे अतएव घर छोड़कर चले गये । जीवन यापन के लिये उन्होंने पहले क्लर्क की नौकरी की पर उन्हें वहाँ भी अपने स्वाभिमान पर आघात अनुभव हुआ और नौकरी छोड़कर मुम्बई आ गये, जहाँ तांगा चलाने लगे । साथ ही एक कारखाने में भी नौकरी कर ली । जहाँ श्रमिकों के शोषण से उद्वेलित हुये और उन्होंने एक श्रमिक संगठन बना लिया।

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इस संगठन के माध्यम से वे प्रबंधकों द्वारा श्रमिकों के साथ सम्मान जनक व्यवहार करने का अभियान चलाने लगे । किन्तु बात न बनी । वे प्रबंधन की किरकिरे बने और निकाल दिये गये । कुछ दिन यूँ ही बीते अंततः परिवार ने उनसे संपर्क साधा और समझा बुझाकर आगे पढ़ने के लिये लंदन भेज दिया । मदनलाल जी 1906 में पढ़ने के लिये इंग्लैण्ड गये जहाँ यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन की अभियांत्रिकी शाखा में प्रवेश लिया। यह वो समय था जब लंदन में पढ़ने वाले भारतीय विद्यार्थियों में राष्ट्र भाव अंगड़ाई ले रहा था । वे भारतीय विद्यार्थियों को हीन समझने की अंग्रेजी मानसिकता से उद्वेलित हो रहे थे। इन विद्यार्थियों में सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी विचारक विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा बड़े लोकप्रिय थे और एक प्रकार से समन्वय थे।

समय के साथ मदनलाल ढींगरा इनके सम्पर्क में आये और सावरकर द्वारा गठित संस्था अभिनव भारत से जुड़ गये। इसी क्रान्तिकारी संस्था में उन्होंने शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण लिया। लंदन का इण्डिया हाउस भारतीय विद्यार्थियों के क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था। मदनलाल ढींगरा इसी इंडिया हाउस में रहते थे। इन्ही दिनों खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मिले मृत्युदण्ड ने इन विद्यार्थियों को मानो विचलित कर दिया। इससे भारतीय युवाओं में रोष उत्पन्न हुआ। यह समाचार अंग्रेज अधिकारियों से छिपा न रहा।

लंदन में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थियों की गतिविधियों को सीमित करने के कुछ आदेश भी निकले। इससे सावरकर और मदनलाल धींगरा जैसे क्राँतिकारी और उद्वेलित हुए। प्रतिशोध लेने के लिये अंग्रेज अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली को मारने की योजना बनाई गई। इसके लिये इंडियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिक आयोजन का दिन निश्चित किया गया।

वह 1 जुलाई 1909 की शाम थी। वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये जैसे ही विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ सभागार में आया, मदनलाल ढींगरा ने उसपर पाँच गोलियाँ दाग दीं। छठी गोली स्वयं को भी मारनी चाही किन्तु पकड़ लिये गये। बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया और मुकदमा चला। उन्होंने पेशी के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा कि- “मुझे प्रसन्नता है कि मेरा जीवन भारत राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा के लिये समर्पित हो रहा है।”

यह मुकदमा केवल 22 दिनों में पूरा हो गया और 23 जुलाई 1909 को लंदन की बेली कोर्ट ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया। जिसके अनुसार 17 अगस्त 1909 को लन्दन की पेंटविले जेल में उन्हें फाँसी दी गई। इस प्रकार भारत राष्ट्र के स्वत्व जागरण के लिये उन्होंने अपने जीवन का बलिदान कर दिया। उनके बलिदान को शत शत नमन्।

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