मोदी सरकार का इसलिए है निजीकरण पर जोर!

केंद्र सरकार देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।

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पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार ने देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाया है। मोदी सरकार के मंत्री और नेता जहां सरकार की इस नीति का समर्थन कर रहे हैं, वहीं विपक्ष इसे अंबानी-अडानी के हित में लिया गया फैसला बताकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। इस बीच प्रधानमंत्री ने निजीकरण के पीछे सरकार के उद्देश्य की जानकारी दी है।

पीएम मोदी ने कहा कि व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है और उनकी सरकार रणनीतिक क्षेत्रों को छोड़कर बाकी क्षेत्रों के उपक्रमों का निजीकरण करने के लिए दृढ़ संकल्प है। पीएम ने कहा कि सरकारी कंपनियों को केवल इसलिए नही चलाया जाना चाहिए, कि वे विरासत में मिली हैं।

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अर्थव्यवस्था पर बढ़ता है बोझ
प्रधानमंत्री ने कहा की बीमारु सार्वजनिक उपक्रमों को वित्तीय समर्थन देते रहने से अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ता है। उन्होंने कहा कि भारत अब एक बाजार, एक कर प्रणाली वाला देश है। यहां कर प्रणाली को सरल बनाया गया है और इसकी जटिलताओं को दूर कर दिया गया है।

इन कारणों से निजीकरण जरुरी

  • कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम घाटे मे हैं, कई को करदाता के पैसे से आर्थिक मदद दी जा रही है
  • बीमार सार्वजनिक उपक्रमों को वित्तीय सहायता देते रहने से अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ता है। सरकारी कंपनियां केवल इसलिए नहीं चलाया जाना चाहिए क्योंकि वे हमें विरासत में मिली हैं।
  • व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है। सरकार का ध्यान जन कल्याण पर होना चाहिए।
  • सरकार के पास कई ऐसी संपत्तियां हैं, जिसका पूर्ण रुप से उपयोग नहीं हुआ है या बेकार पड़ गई हैं। 100 ऐसी संपत्तियों को बाजार में चढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे।
  • सरकार मौद्रीकरण, आधुनिकीकरण पर ध्यान दे रही है। निजी क्षेत्र में दक्षता आती है, रोजगार मिलता है, निजीकरण, संपत्ति के मौद्रीकरण से जो पैसा आएगा, उसे जनता के कल्याण पर खर्च किया जाएगा।
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