नई दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) के 48वें दीक्षांत समारोह (convocation) को संबोधित करते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने कहा कि अपने देश को हमेशा पहले रखें, यह वैकल्पिक नहीं है, यही एकमात्र रास्ता है, हम सभी इस देश के ऋणी हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा, “इस प्रतिष्ठित संस्थान से निकलकर स्वास्थ्य क्षेत्र (health sector)की बड़ी दुनिया में कदम रखने वाले विद्यार्थी हमेशा एक संदेश लेकर जाएंगे जो एम्स के आदर्श वाक्य में परिलक्षित होता है: “शरीमाद्यम खलु धर्मसाधनम” (एक स्वस्थ शरीर ही हमारे सभी गुणों का वाहक है)।” उपराष्ट्रपति ने उन छह सेवानिवृत्त संकाय सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं दीं, जिन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया है और कहा कि उनका जीवन एवं कार्य आज स्नातक होने वाले विद्यार्थियों को प्रेरित करेगा।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि तीन वर्षों के अंतराल के बाद हो रहा यह दीक्षांत समारोह कोविड महामारी (covid pandemic) की याद दिलाता है। उन्होंने कहा, “इस अंतराल ने दुनिया को बताया कि भारत, जहां मानवता का छठा हिस्सा निवास करता है, ने कितनी सफलतापूर्वक कोविड के खतरे का मुकाबला किया है और उस पर काबू पाया है। यह मुख्य रूप से हमारे स्वास्थ्य योद्धाओं के अथक प्रयासों के कारण संभव हुआ। प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण व उनकी नवोन्वेषी रणनीति और उसके निर्बाध क्रियान्वयन ने लोगों की अभूतपूर्व भागीदारी सुनिश्चित की है।”
वैश्विक स्तर (global scale) पर कोविड-19 महामारी से लड़ने में भारत के प्रयासों (India’s efforts) की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, “इस महामारी ने मानवता के सामने जो चुनौती पेश की है, उसने वसुधैव कुटुंबकम के हमारे सदियों पुराने सभ्यतागत मूल्यों को दुनिया के सामने प्रकट किया है। यह बिल्कुल उपयुक्त है कि जी-20 का आदर्श वाक्य “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” हमारी सभ्यता का सार है। यह हम सभी के लिए बेहद गर्व का क्षण है कि कोविड महामारी से प्रभावी ढंग से निपटते हुए भारत ने वैक्सीन मैत्री के तहत कोवैक्सिन उपलब्ध कराकर 100 से अधिक देशों को सहयोग प्रदान किया है।”
धनखड़ ने समाज में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (health care providers) की भूमिका पर जोर दिया और कहा, “जीवन में सब कुछ फिर से प्राप्त किया जा सकता है – एक पत्नी, एक राज्य, एक मित्र और धन। हालांकि, शरीर इसका एक अपवाद है तथा यह अपूरणीय एवं अमूल्य है। यही कारण है कि समाज में स्वास्थ्य सेवा प्रदाता जो भूमिका निभाते हैं, वह अपूरणीय है। उपराष्ट्रपति ने संस्कृत मंत्र “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः” – “सभी सुखी रहें, सभी बीमारी से मुक्त रहें” – में समाहित कालातीत ज्ञान को रेखांकित करते हुए अपना संबोधन समाप्त किया।
इस दौरान केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया और केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री एस.पी. सिंह बघेल, लोकसभा सांसद रमेश बिधूड़ी, एम्स के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास तथा एम्स एवं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी इस दीक्षांत समारोह में उपस्थित थे।
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