सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने अनुच्छेद 370 पर 22 अगस्त को आठवें दिन की सुनवाई पूरी कर ली है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने कहा कि सरकार के इस कदम का विरोध कर रहा याचिकाकर्ता पक्ष 23 अगस्त को दोपहर तक अपनी दलीलें खत्म कर ले। इसके बाद केंद्र सरकार और 370 हटाने का समर्थक पक्ष अपनी जिरह शुरू करेगा। इस मामले पर अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी।
वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने दी दलील
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने अपनी दलील देते हुए कहा कि मेरे लिखित जवाब में विलय पर दिए गए पक्ष को अगर आप देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि जम्मू और कश्मीर का भारत में कभी विलय नहीं हुआ। भारत के साथ हुआ समझौता अलग था, जबकि अन्य राज्यों ने अपनी सारी शक्तियां छोड़कर भारत में विलय कर लिया। द्विवेदी ने कहा कि संविधान अपनाते वक्त जम्मू और कश्मीर पार्ट बी राज्य था, लेकिन अनुच्छेद 238 राज्य की विशेष और स्वतंत्र स्थिति के बारे में बहुत कुछ बताता है, क्योंकि अनुच्छेद 238, बी कैटेगरी के राज्यों पर भाग छह के लागू होने से संबंधित था और वह जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था।
राजा हरिसिंह ने बरकार रखी थी जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता
द्विवेदी ने कहा कि राजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता बरकरार रखी थी। संप्रभुता की अवधारणा परिवर्तनशील है। इसकी शुरुआत तब हुई जब लिखित संविधान और सत्ता का लोकतंत्रीकरण अस्तित्व में आया। ऐसा नहीं है कि जम्मू और कश्मीर ने आंतरिक संप्रभुता खो दी है। द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 370 में परामर्श या सहमति की आवश्यकता के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के आने तक अस्थायी थे। एक बार जब विधानसभा ने जम्मू और कश्मीर का संविधान बना दिया तो अनुच्छेद 370 ने काम करना बंद कर दिया, केवल जम्मू कश्मीर का संविधान ही बचा रहा।
अनुच्छेद 370 अंतरिम व्यवस्था
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अंतरिम व्यवस्था थी, क्योंकि जब भारत का संविधान अस्तित्व में आया था, उस समय तक परामर्श लेने या सहमति लेने वाला कोई नहीं था। यही अनुच्छेद 370 का एकमात्र अस्थायित्व है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर हम स्वीकार करते हैं कि जम्मू-कश्मीर के अस्तित्व में आने के बाद अनुच्छेद 370 समाप्त हो गया तो इसका शुद्ध परिणाम यह होगा कि 1957 के बाद संविधान निष्क्रिय हो जाएगा। आगे कोई परिवर्तन संभव नहीं है।
सुनवाई की खास बातेंः
-चीफ जस्टिस ने कहा कि यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है। क्या भारत के पास संविधान के किसी भी भाग को लागू करने की शक्ति नहीं होगी। द्विवेदी ने कहा कि संविधान सभा की बहसों को पढ़ने से भारतीय संविधान निर्माताओं की मंशा का पता चलता है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि बहसों से यह नहीं पता चलता कि जब जम्मू-कश्मीर का संविधान बना तो उनका इरादा अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने का था।
-जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि आपका तर्क याचिकाकर्ताओं की ओर से उठाए गए बिंदुओं को काटता हुआ प्रतीत होता है, क्योंकि उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन सरकार संविधान सभा से अलग है और इसलिए वह सहमति नहीं दे सकती। आप कह रहे हैं कि जब से जम्मू-कश्मीर संविधान बना है, अनुच्छेद 370 लागू नहीं हुआ है। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि 1957 के बाद से, अनुच्छेद 370 के तहत कई राष्ट्रपति आदेश पारित किए गए हैं। क्या इस बारे में किसी ने नहीं सोचा था। तब द्विवेदी ने कहा कि मैं जो सुझाव दे रहा हूं वह यह है कि अनुच्छेद 370 का उद्देश्य यह है कि बाहर का कोई भी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में अनुमति के अलावा कानून नहीं बना सकता है।
-वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने जम्मू और कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी दलील देते हुए कहा कि प्रावधान और शर्तों के मुताबिक 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 3 लागू नहीं थे। अनुच्छेद 3 के तहत कोई भी बदलाव एक राज्य से दूसरे राज्य में हो सकता था, केंद्र शासित प्रदेश में नहीं। उन्होंने कहा कि भाग एक, दो, तीन और चार को संयुक्त रूप से पढ़ना आवश्यक है। अनुच्छेद 3 में किसी राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदलने की कोई शक्ति नहीं मिल सकती।
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-पांच सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं। 2 मार्च, 2020 के बाद इस मामले को पहली बार सुनवाई के लिए लिस्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य के सभी विधानसभा सीटों के लिए एक परिसीमन आयोग बनाया है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए भी भूमि खरीदने की अनुमति देने के लिए जम्मू एंड कश्मीर डेवलपमेंट एक्ट में संशोधन किया गया है। याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर महिला आयोग, जम्मू-कश्मीर अकाउंटेबिलिटी कमीशन, राज्य उपभोक्ता आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को बंद कर दिया गया है।
-सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च, 2020 को अपने आदेश में कहा था कि इस मामले पर सुनवाई पांच जजों की बेंच ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के समक्ष भेजने की मांग को खारिज कर दिया था।
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