श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) को लेकर चप्पा-चप्पा श्रीकृष्णमय हो गया है। जन्माष्टमी उत्सव को लेकर ठाकुरबाड़ी में तैयारी पूरी कर ली गई है। इस अवसर पर सात से 12 सितम्बर तक लगने वाला मेला तैयारी है, पंडालों को आकर्षक तरीके से सजाया गया है।
दूर-दूर जगहों से आए प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा श्रीकृष्ण, राधा सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया गया है। भव्य तोरण द्वार बनाए गए हैं, जिसमें किसी को इंडिया गेट तो किसी गेटवे ऑफ इंडिया, अक्षरधाम और महाकाल मंदिर का स्वरूप भी दिया गया है। बेगूसराय के एक सौ अधिक पंडाल में मनमोहक स्वरुप में श्रीकृष्ण पधारेंगे।
बेगूसराय में भारत सबसे बड़े श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला
छह सितम्बर की मध्य रात्रि में श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही चप्पा-चप्पा ‘हरे कृष्णा-हरे कृष्णा’ से गूंज उठेगा। इसको लेकर बिहार के बेगूसराय में लगने वाले भारत के दूसरे सबसे बड़े श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला की तैयारी पूरी हो गई है। देश के विभिन्न शहर और विदेशों में रहने वाले लोग अपने घर आ चुके हैं। जन्मोत्सव की व्यापक तैयारी की गई है।
सभी लोगों को पता है कि श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृन्दावन में भारत का सबसे बड़ा जन्माष्टमी मेला लगता है। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता होगा कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मभूमि वृन्दावन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला बेगूसराय जिला के तेघड़ा में लगता है।
तेघड़ा, गढ़हारा, बरौनी एवं उसके आसपास लगने वाला श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला बिहार का सबसे बड़ा और भारत का दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला है। यहां मेला देखने के लिए बिहार ही नहीं, नेपाल, बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, असम, उड़ीसा, झारखंड के साथ विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी आते हैं।
1928 में तेघड़ा में मात्र एक जगह से शुरू मेला आज सिर्फ तेघड़ा के 15 पंडालों में सज रहा है। अब तो तेघड़ा से चकिया तक करीब 20 किलोमीटर में 40 से अधिक जगहों पर पूजा-अर्चना हो रही है। तेघड़ा का ऐतिहासिक श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला ना सिर्फ देश का दूसरा सबसे बड़ा मेला है, बल्कि यह धर्मनिरपेक्षता की अदभूत मिसाल प्रस्तुत करता है।
पांच दिवसीय इस मेले में धर्म और जाति का कोई मायने नहीं रह जाता है। तेघड़ा इलाके के बुजुर्गों बताते हैं कि 1927 में तेघड़ा और आसपास के इलाकों में प्लेग महामारी के रूप में फैल गई थी। लोगों ने दूसरे जगह जाकर रहना शुरू कर दिया था, महामारी से बचने के लिए तेघड़ा के लोगों ने कई यज्ञ, अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र का सहारा लिया, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
इसी बीच 27-28 फरवरी 1927 को भारत भ्रमण के लिए निकली चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली तेघड़ा पहुंची, तो यहां की दुर्दशा देख चौंक गई। लोगों की स्थिति देख कर मंडली ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) मनाने की सलाह दी तथा चैतन्य महाप्रभु की मंडली के सलाह पर 1928 पहली बार वंशी पोद्दार के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया।
इसके बाद तेघड़ा में लोगों को प्लेग से निजात मिला और तब से मेला अनवरत जारी है। समय के साथ मेला का आकार भी बढ़ता चला तथा तेघड़ा मेला में मंडपों की संख्या भी बढ़ती चली गई। तेघड़ा से शुरू होकर यह मेला रेलवे कॉलोनी बरौनी, गढ़हारा, बीहट, चकिया, सुशील नगर, लाखो, सूजा, वनद्वार, पहसारा होते हुए मंसूरचक तक पहुंच गया है।
तमाम जगहों पर मेला के आकर्षण का केंद्र आकाश झूला, मौत का कुआं, जादूगर, ड्रैगन ट्रेन, मीना बाजार आदि सज रहा है। पूजा मंडपों सहित संपूर्ण मेला क्षेत्र को आकर्षक ढ़ंग से सजाकर इसे ऐतिहासिक बनाया गया है। विधि-व्यवस्था को लेकर स्थानीय प्रशासन जागरूक है। कुल मिलाकर कहें तो एक बार फिर भारत का दूसरा वृन्दावन बन चुके बेगूसराय की हर गली कृष्णमय हो गई है।
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इधर, मेला को लेकर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। तमाम जगहों पर मजिस्ट्रेट एवं पुलिस पदाधिकारी के साथ बड़ी संख्या में पुलिस बलों को तैनात किया गया है। मेला समिति के कार्यकर्ता भी मुस्तैदी के साथ तैनात रहेंगे। अस्पताल, बिजली विभाग और अग्निशमन को भी अलर्ट रहने को कहा गया है। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। डीएम एवं एसपी खुद हर गतिविधि पर नजर रखे हुए हैं।
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