केंद्र सरकार ने उज्ज्वला योजना के अनुरूप ग्रामीण भारत को एलपीजी सिलेंडर से जोड़ा था। नि:शुल्क सिलेंडर मिला, सब्सिडी मिली और धुंआ महिलाओं की जिंदगी से गुम हो गया। लेकिन पिछले तीन महीने में 5पांचवी बार और एक महीने में चौथी बार बढ़े एलपीजी सिलेंडर के दामों ने ग्रामीण भारत की गृहिणियों की आशाओं का ही धुंआ उड़ा दिया है। घरों में चूल्हे ने फिर लौ पकड़ ली है और सब्सिडी गुल हुई तो धुंआ-धुंआ हो गई है रसोई।
महंगाई की इस चक्की से केंद्र सरकार की उज्ज्वला उदास हो गई है। 1 दिसंबर 2020 को 594 रुपए का सिलेंडर 850 रुपए तक पहुंच गया है। सब्सिडी भी गुल हो गई है। जिस उज्ज्वला योजना के बल पर गृहिणियों में अस्थमा और सांस की बीमारी से मुक्ति का नारा दिया जाने लगा था। उसका महंगाई के फुल टेंशन ने धुआं उड़ा दिया है। प्रधानमंत्री के अनुसार एक समय में लकड़ी के चूल्हे पर बना खाना महिलाओं के फेफड़े में एक घंटे में 400 सिगरेट का धुआं भरता है। लेकिन अब स्थिति ये है कि महंगाई की मार ने सिलेंडर को घर का शो पीस बना दिया है।
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एलपीजी का दाम बढ़ा है। कुछ लोगों को सब्सिडी मिल रही है। मुझे उम्मीद है की कुछ दिनों में दाम स्थिर होंगे।
धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री
आई थी उज्ज्वला बनकर सिमट गई महंगाई में
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत 1 मई 2016 को शुरू की गई थी। इसका घोषवाक्य था ‘स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन’। इस योजना के अंतर्गत पांच करोड़ गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करनेवाले परिवाओं को एलपीजी कनेक्शन, 1600 रुपए की वित्तीय सहायता (सब्सिडी) के साथ प्रदान की गई थी। इस योजना का लाभ जरूरतमंदों तक अधिक से अधिक पहुंचे इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों से सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी। इसके बाद 75 लाख परिवारों ने अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी।
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और फिर धुंआ और घुटन
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार लकड़ी के चूल्हे से निकलनेवाले धुंए से एक घंटे में 400 सिगरेट का धुंआ महिलाओं के फेफड़े में भरता है।
- एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार लकड़ी और उपल के धुएं से भारत में वार्षिक पांच लाख महिलाओं की मौत सांस संबंधी बीमारियों के कारण हो जाती है।
- प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के एक प्रोफेसर द्वारा अमेरिका में पेश की गई रिसर्च के अनुसार गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन और सब्सिडी वाला सिलेंडर देने के कारण महिलाओं की बीमारी में पहले दो वर्ष में ही 10 प्रतिशत की गिरावट आई है। ये बीमारियां सांस, दमा, फेफड़े और टीबी से संबंधित हैं।
- उज्ज्वला योजना के पहले ग्रामीण अंचल की लगभग 89 प्रतिशत महिलाएं लकड़ी या उपल के ईंधन से चलनेवाले चूल्हे पर भोजन बनाती थीं।