किसान आंदोलन का बदला पैंतरा, कहीं शाहीन बाग पार्ट-2 तो नहीं?

देश के पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। इस स्थिति में संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का प्रयत्न आगामी दिनों में इन राज्यों में कृषि कानूनों को लेकर प्रचार अभियान छेड़ने का भी है। पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार को लेकर इस संबंध में घोषणा भी हो चुकी है। इस स्थिति में वर्तमान आंदोलन को महिलाओं के हाथ सौंपा जा सकता है। महिला दिवस पर उठाया गया कदम इसकी शुरुआत मानी जा रही है।

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महिला दिवस के अवसर पर आंदोलन कर रही किसान यूनियन ने पैंतरा बदल लिया है। अब पंजाब और हरियाणा की महिलाएं आंदोलन स्थल पर पहुंच गई हैं। ये महिलाएं ट्रैक्टर, ट्रक, बस पर सवार होकर निकली थीं। इससे एक प्रश्न भी खड़ा होने लगा है कि किसान नेता इसे कहीं शाहीन बाग भाग दो का आंदोलन बनाने की तैयारी में तो नहीं हैं।

बहरहाल, महिलाओं ने आंदोलन स्थल पर पहुंचकर किसान आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। इसके लिए आंदोलन कर रहे किसान यूनियन के नेताओं ने महिला दिवस पर महिलाओं को स्टेज की बागडोर संभालने की पहले से ही व्यवस्था कर दी थी। दावा किया गया है कि चालीस हजार महिलाएं विभिन्न स्थल पर चल रहे आंदोलनों में हिस्सा लेंगी। संयुक्त किसान मोर्चा से संलग्न योगेंद्र यादव ने कहा है कि, संयुक्त किसान मोर्चा ने हमेशा ही महिला किसानों की शक्ति को महत्व दिया है। महिलाएं सभी आंदोलन स्थलों पर नेतृत्व करेंगी।

शाहीन बाग और किसान आंदोलन

देश ने एक वर्ष के अंतराल पर दो बड़े आंदोलन देखे। पहला आंदोलन 15 दिसंबर, 2019 को शाहीन बाग में शुरू हुआ इसके ठीक एक वर्ष बाद 26 नवंबर, 2020 को किसान आंदोलन शुरू हुआ।

कैसे शाहीन पार्ट-टू

शाहीन बाग आंदोलन को महिलाओं ने शुरू किया था। जिसकी स्टेज को बाद में अल्पसंख्यक समाज और विपक्ष ने सजा दिया। महिलाओं की अगुवाई वाले इस आंदोलन पर न तो पुलिस कड़ाई कर पाई और न हीं केंद्र सरकार इसे खत्म करने करने के लिए दबाव बना पाई।

  • देश में किसानों को अन्नदाता के रूप सम्मान दिया जाता है।
  • आंदोलन को दबाने का किसी भी प्रकार से प्रयत्न नहीं किया गया।
  • यहां तक कि गणतंत्र दिवस पर किसान परेड में की गई ज्यादतियों के विरुद्ध भी पुलिस कड़ी कार्रवाई से बचती रही।
  • किसानों को सभी आश्वासन लिखित रूप में दिये जाने के प्रति आश्वस्त किये जाने के बाद भी आंदोलन जारी है।
  • किसानों ने अब महिला दिवस के दिन महिलाओं को बागडोर सौंपा है। सूत्रों के अनुसार आनेवाले दिनों में किसान
  • आंदोलन के अग्रक्रम में महिला और बच्चों को रखने का कार्यक्रम भी किसान यूनियनों की है।
  • इससे किसान नेता पांच राज्यों में होनेवाले चुनाव प्रचार के लिए हो जाएंगे मु्क्त।

उद्देश्य

शाहीन बाग आंदोलन संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में था। इसका उद्देश्य इस कानून को रद्द कराना था।

किसान आंदोलन, संयुक्त किसान मोर्चा के अंतर्गत लगभग चालीस किसान यूनियनों का संयुक्त संगठन है। ये केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ है और अब तक जारी है। इसका उद्देश्य
नए कृषि कानूनों को रद्द कराना है।

कैसे शुरू हुआ

इसे छह मुस्लिम महिलाओं ने 15 दिसंबर, 2019 को शुरू किया था। जिसमें बाद में अलग-अलग स्थानों से महिलाओं ने हिस्सा लिया। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए विपक्ष ने भी इसे केंद्र सरकार के विरुद्ध अवसर के रूप में साध लिया।

इसकी शुरूआत संयुक्त किसान मोर्चा के अंतर्गत एकत्र हुए लगभग चालीस से अधिक किसान यूनियनों ने किया था। जो अब तक चल रहा है। लेकिन अब इसका रूप बदल रहा है।

सरकार की भूमिका

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संशोधित नागरिकता कानून नागरिकता देने का कानून है, न कि, जैसा प्रचारित किया जा रहा है कि इससे किसी की नागरिकता छिनेगी।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्री परिषद ने आश्वस्त किया है कि इसे किसानों को अपनी उपज बेंचने के लिए अधिक अवसर देने और आय बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया है। इसके लिए केंद्र सरकार किसानों के साथ लगातार संपर्क में है। लगभग ग्यारह दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं।

क्या है मांग

शाहीन बाग की महिला आंदोलनकारियों की मांग थी कि संशोधित नागरिकता कानून को रद्द किया जाए।

किसान यूनियन की मांग है कि तीनों कानूनों की रद्द किया जाए।

सरकार की भूमिका

केंद्र सरकार ने शाहीन बाग के आंदोलनकारियों को संसद से सड़क तक सभी स्थानों पर आश्वस्त किया कि संशोधित नागरिकता कानून नागरिकता देने का कानून है। ये उन हिंदू और अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए बनाया गया है जो भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे कट्टरवादी मुस्लिम देशों से शरणार्थी के रूप भारत में आए हैं और रहते हैं।

  • किसान यूनियनों के साथ केंद्र सरकार के मंत्री समूह की ग्यारह दौर की बातचीत हो चुकी है।
  • सरकार ने लिखित रूप से किसानों की आशंकाओं को दूर करने का आश्वासन दिया है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा इसका लिखित आश्वासन
  • नए कानून को डेढ़ वर्ष तक लागू न करने का प्रस्ताव
  • समिति बनाने का प्रस्ताव

 

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