Disaster Management: सामाजिक ही नहीं वैयक्तिक जीवन की भी जरूरत है आपदा प्रबंधन

आपदा प्रबंधन का पहला नियम है आपदा की पहचान। फिर उसकी पूर्व की तैयारी। किसी भी घटना को आपदा का रूप लेने से पहले ही उस पर नियंत्रण पाने की हमारी मुहिम होनी चाहिए। संभावित आपदा की पहचान की सोच बचपन से ही बच्चों में डालनी चाहिए। यह बहुत ही जरूरी पहलू है।

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प्रतिकात्मक चित्र

पिछले हफ्ते गोरेंगांव स्थित एक बिल्डिंग में लगी आग (Fire) में जानमाल का काफी नुकसान हुआ। लगभग हर उम्र के स्त्री-पुरुष इस हादसे के शिकार हो गये। आपदा चाहे किसी भी रूप में हो, अक्सर हम भारी कीमत चुकाने के बाद ही उस पर चर्चा करते हैं। वो भी केवल कुछ दिनों तक। क्या पूर्व तैयारी के तहत आपदा प्रबंधन (Disaster Management) के ऐसे प्रयास नहीं किये जा सकते, जिससे आपदा विपत्ति का रूप ना ले सके। जबकि यह काफी हद तक संभव है। हम मानते हैं कि कुछ आपदाएं प्राकृतिक (Natural) होती हैं। उन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर पाना हम मनुष्यों के लिए संभव नहीं है। लेकिन कुछ उचित प्रबंधन और जागरुकता (awareness)से हम निश्चित रूप से अप्रत्याशित रूप में आती विपदाओं के हानिकारक प्रभाव को कम करने में सफल हो सकते हैं।

आपदा प्रबंधन के प्रति उदासीनता
अपने जीवन में अन्य पहलुओं से जुड़े कारकों को लेकर हम जितना सजग रहते हैं, वैसी ही सजगता और प्राथमिकता यदि हम संभावित आपदाओं को लेकर दिखाएं, तो हमें इसमें काफी हद तक सफलता मिल सकती हैं। बहुतायत में ऐसा देखा जाता है कि ना केवल हम अपने स्तर पर बल्कि अपनी संतानों को लेकर भी संस्कारों का बीजारोपण, रहन-सहन और करियर को लेकर माथा पच्ची करते हैं। लेकिन उन्हें आपदा प्रबंधन के बारे में जागरुक करने के प्रति हमारा ध्यान ही नहीं जाता । यह स्थिति ना केवल परिवार के स्तर पर है, बल्कि स्कूल-कॉलेज (school-College)के स्तर पर भी बच्चों को जागरुक करने की कोई पहल होती नहीं दिखाई दे रही।

सतर्क रहने और सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भरता का भाव
परिवार और स्कूल स्तर पर आपदा प्रबंधन की कुछ बेसिक जानकारियों से बच्चों को प्रशिक्षित करने की शुरुआत होने से कई स्तरों पर हमें सकारात्मक परिणाम मिलने लगेंगे। एक तो उनमें आपात परिस्थितियों को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ होने की स्थिति नहीं आएगी। दूसरे आपदा प्रबंधन की अपनी बेसिक जानकारियों के सहारे वे खुद को बचाने की कोशिश भी करेंगे। कौशल प्रशिक्षण से आपदा के समय सतर्क रहने और सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भरता का भाव आएगा। प्रशिक्षण से प्रभावित जगह में ही सुरक्षित स्थान खोजने और वहां मौजूद वस्तुओं के बीच आवश्यक कदम उठाने की सोच विकसित होगी। एक तरह से उनमें तात्कालिकता की दक्षता का विकास होगा। स्कूल हो या परिवार दोनों जगहों पर आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण और अभ्यास की निरंतरता की व्यवस्था होनी ही चाहिए। इससे आपदा प्रबंधन की क्षमता का कारगर विकास हो जाएगा।

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ
आपदा प्रबंधन का पहला नियम है आपदा की पहचान। फिर उसकी पूर्व की तैयारी। किसी भी घटना को आपदा का रूप लेने से पहले ही उस पर नियंत्रण पाने की हमारी मुहिम होनी चाहिए। संभावित आपदा की पहचान की सोच बचपन से ही बच्चों में डालनी चाहिए। यह बहुत ही जरूरी पहलू है। केवल इस एक मात्र पहल से आगे की काफी चीजें कुछ आसान हो जाएंगी। पिछले 20 सालों हम स्कूल से लेकर समाज तक बच्चों और नागरिकों के पास इस मुद्दे को लेकर जा रहे हैं। लेकिन हमें अब तक आशानुरूप परिणाम नहीं मिल पाया। क्योंकि आपाद प्रबंधन को लेकर हर स्तर पर उदासीनता है। जब कोई हादसा होता है, तब तो लोग चर्चा करते हैं। लेकिन फिर कुछ दिनों बाद ही लोग इसे भूल जाते हैं।

हर व्यक्ति से जुड़े आपदा प्रबंधन की कड़ी
आपदा प्रबंधन के लिए सरकार पर निर्भरता की धारणा से बाहर निकलना होगा। हर व्यक्ति को अपने अंदर आपदा प्रबंधन की जागरुकता विकसित करनी होगी। हर हादसा स्थल पर सरकार तुरंत नहीं पहुंच सकती। पहले आस-पास के लोग ही पहुंच सकते हैं। इसलिए आपदा प्रबंधन की कड़ी हर व्यक्ति से जुड़ेगी तभी आपदा को आफत बनने से रोका जा सकता है। यद्यपि हम भगवान पर काफी भरोसा करने वाले समाज में रहते हैं और कई आपदाएं प्राकृतिक भी होती हैं। लेकिन फिर भी हमें बचाव के रास्ते तो ढूंढने ही होंगे और इसका सबसे कारगर तरीका है आपदा प्रबंधन।

 मिलिंद वैद्य (प्रकल्प संयोजक, अखिल भारतीय स्थानिक स्वराज्य संस्था )

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