झारखंड के गिरिडीह में स्थित श्री श्री आदि दुर्गा मंडा (बड़ी मईया) के दरबार की महिमा 18वीं शताब्दी से ही अद्भुत, अनूठा और चमत्कारी है। इस दरबार में हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है। इस दरबार की विशेषता है कि महा सप्तमी से विजया दशमी तक इन चार दिनों के दौरान माता का मुखमंडल स्वभाविक रूप में बदलता है।
पुराने जानकारों के मुताबिक, माता के इस अद्भुत दरबार में मां भगवती के स्वभाविक मुखमंडल का दीदार किसी को करना हो तो शारदीय नवरात्रों के पावन दिनों में यहां पहुंचकर एकाग्र होकर माता को निहारे तो उसे स्वतः महसूस होगा कि माता उन्हें स्वभाविक मुद्रा में आशीष प्रदान कर रही हैं। महा सप्तमी से लेकर विजयादशमी तक माता के मुखमंडल के भाव बदलते हैं। महा सप्तमी को देवी का रूप हंसमुख होता है।
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प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने वाला रहता है
महाअष्टमी और महानवमी को मां का आकर्षक व तेज मुखमंडल प्रसन्न मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने वाला रहता है। विजयादशमी को देवी के अलौकिक मुखमंडल की आभा अत्यंत शांत, सौम्य और अपनों से बिछड़ने की पीड़ा दर्शाती दिखायी देती है। जब विदाई की बेला आती है और हजारों भक्त कंधे पर जय दुर्गे के जयकारों के साथ माता के विसर्जन शोभायात्रा शामिल होते हैं तब माता के सौम्य मुख मंडल पर विरह की पीड़ा स्पष्ट रूप महसूस की जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि आधुनिकता के इस दौर में भी श्री श्री आदि दुर्गा मंडप में मूर्ति गढ़ने में सांचे का उपयोग नहीं होता है। मूर्तिकार हाथों से ही पूरी मूर्ति गढ़कर आदिशक्ति के जीवंत रूपों का दर्शन कराते हैं।
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