मुंबई के दादर पश्चिम स्थित स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक (Swatantraveer Savarkar Memorial) में 21 अक्टूबर को सावरकर स्ट्रेटेजिक सेंटर की ओर से ‘पाकिस्तान का कश्मीर पर बलात्कार’ (Pakistan’s rape on Kashmir) विषयक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें ले. कर्नल मनोज सिन्हा (Lt Col Manojkumar Sinha) ने बतौर वक्ता अपने संबोधन की शुरुआत किसी विशेष घटना से एक आम भारतीय युवक के अल्हड़पन का संजीदगी और संवेदनशीलता में बदल जाने की रूपरेखा प्रस्तुत करते की। सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में अपनी पहली पोस्टिंग को याद करते बताया कि जब भारत-पाक बॉर्डर पर देखा कि बॉर्डर के उस पार बढ़ाया गया एक कदम मौत का कदम होगा। तब एकाएक मेरा अल्हड़पन एक जागरुकता में तब्दील हो गया और तभी से मेरे भारत को सोचने, भारत के लिए सोचने की शुरुआत हो गयी।
युवतियों की आबरू और परिवारों की खुशहाली के लुटेरे
सिन्हा ने जब जम्मू- कश्मीर में आतंक के साए में पलते जीवन और आतंकियों (terrorists) के अमानवीय व्यवहारों से पीड़ित लाचार युवतियों की हृदयविदारक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया, तो पूरे माहौल में स्तब्धता सी छा गयी, जैसे सभागार का हर व्यक्ति उन मूक चित्कारों का प्रत्यक्ष गवाह हो। अपने संबोधन के दौरान ले. मनोज सिन्हा ने एक युवती का आतंकियों द्वारा कई दिनों तक बलात्कार की रूह कंपा देनी वाली घटना से भी लोगों को रू ब रू कराया। इस घटना के खुलासे के प्रत्यक्ष गवाह थे ले. सिन्हा। सिन्हा ने आतंकियों की पाशविकता से द्रवित हो स्वरचित एक कविता, ”वो कहते हैं करने आए हैं जिहाद, देखो कैसे कर रहे हैं सब बर्बाद” की विजुअल प्रस्तुति भी पेश की, जिसे आवाज उनकी बेटी ने दी है। यह कविता 13-14 साल की लड़की के कराहते एहसासों को जिस तरह से व्यक्त करती है, उससे आतंकियों की पूरी सच्चाई सामने आ जाती है कि कैसे आतंकी जिहाद के नाम पर युवतियों की आबरू और परिवारों की खुशहाली लूट रहे थे।
शांति के लिए प्रेम नहीं, बल्कि सामर्थ्य की जरूरत
शांति के लिए प्रेम नहीं, बल्कि सामर्थ्य की जरूरत बताते सिन्हा ने एक बिल्कुल शांत एरिए में सड़क के बीचों बीच बैठे कुछ शेरों को देखकर वाहनों के वापस लौट जाने की विजुअल प्रस्तुति के माध्यम से बताया कि इसी सिचुएशन में यदि कुछ कुत्ते होते, तो निश्चित रूप से ये वाहन चालक उन कुत्तों को कुचलते हुए आगे बढ़ जाते। इसलिए आप सभी अपने दिलों दिमाग से यह निकाल दीजिए कि शांति प्रेम से आ सकती है। अगर ऐसा सोचते हैं, तो आप भ्रम में हैं। शांति केवल और केवल सामर्थ्य से ही आ सकती है और आएगी भी। ले. मनोज ने पूरे देश में शांति के लिए सामर्थ्य की जरूरत की सोच फैलाने की बात कही।
लड़नी होगी सोच से लड़ाई
सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से निपटने की अपनी एक पहल का खुलासा करते बताया कि मैंने महसूस किया कि हमें उनकी सोच से लड़ाई लड़नी होगी। कुछ मामलों का जिक्र करते सिन्हा ने बताया कि मैंने जम्मू-कश्मीर के परिवारों से समर्थन लेने आते आतंकियों से कुछ सवाल पूछने को कहा। मैंने उनसे कहा कि आतंकियों से संतोषजनक जवाब मिल गया, तो मैं खुद उन्हें बॉर्डर पार करा दूंगा। मेरी इस पहल से आतंकी संगठनों में बोखलाहट हो गई। मेरे कार्यकाल के दौरान वहां एक भी युवक आतंकियों के संगठन में शामिल नहीं हुआ। ले. सिन्हा ने कहा कि यद्यपि मुझे कई मेडल मिल चुके हैं। लेकिन मैं दिखाई ना देने वाली इस पहल को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं। सिन्हा ने आम भारतीय चिंतन परंपरा के बीच एक सैनिक के तौर पर देखे-सुने और महसूस किए अनुभवों को साझा करते जम्मू-कश्मीर की कई हृदय विदारक घटनाओं की चित्रात्मक बानगी पेश की ।
इस अवसर पर ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, कैप्टन संजय पाराशर, कैप्टन सिकंदर रिजवी और सावरकर स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर, कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे, केयरटेकर राजेंद्र वराडकर, सह-केयरटेकर स्वप्निल सावरकर सहित अन्य विशिष्ट गणमान्यों की उपस्थिति रही।
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