India and Israel: हमास आतंकी हमले के बाद भारत और इजराइल के रिश्ते और भी मजबूत!

इजराइल और फिलिस्तीन के बीच किसी भी तरह का संघर्ष भारत के लिए हमेशा से एक दुविधा रहा है।

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– सरस त्रिपाठी, मेजर (सेवानिवृत्त)

फिलिस्तीन (Palestine) के आतंकवादी संगठन हमास (Terrorist Organization Hamas) को, 7 अक्टूबर 2023 को, इजराइल (Israel) पर आक्रमण करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। इतिहास साक्षी है जब-जब भी हमास या फिलिस्तीन के अन्य आतंकवादी संगठनों ने इजराइल पर हमला किया है, फिलीस्तीन को इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी है और लगभग हर आक्रमण के बाद इजरायल ने अपनी सीमाओं का विस्तार किया है। इस बात में जरा सा भी संदेह नहीं होना चाहिए कि इस बार भी इजराइल फिलिस्तीन की कुछ भूमि अवश्य अपने में सम्मिलित कर लेगा। फिलहाल तो अभी मृत्यु का तांडव जारी है। इस संघर्ष में अब तक लगभग 2800 लोग मर चुके हैं।

इजराइल और फिलीस्तीन के बीच किसी भी तरह का संघर्ष भारत के लिए हमेशा से एक दुविधा का विषय रहा है। भारत और इजराइल के संबंधों का सिंहावलोकन करें तो हम पाते हैं कि भारत और इजराइल के संबंध ईसा से कई सौ वर्षों पूर्व से चले आ रहे हैं। भारत के केरल राज्य में हजारों वर्ष पूर्व से ही यहूदी व्यापारी निवास करते कर रहे हैं। ईसाइयत और इस्लाम के उदय के पूर्व से भारत और इजराइल के संबंध रहे हैं। इसके अनेक प्रमाण प्राचीन लवांत राज्य की सीमाओं के भीतर की खुदाई में मिले भारतीय मूल की वस्तुओं में देखा जा सकता है। वैसे भी संसार के प्राचीनतम धर्म हिंदू और यहूदी धर्म ही है, जो अभी तक जीवित है।

मुस्लिम समर्थन ने भारत-इजराइल संबंधों को निलंबित कर दिया
एक तटस्थ सिंहावलोकन बताता है की भारत आंतरिक मजबूरियों के कारण कभी भी इजराइल के साथ नहीं रहा। यह अपेक्षा की गई थी कि 1947 में देश के धर्म के आधार पर विभाजन के बाद भारत का रुख इजराइल की तरफ होगा लेकिन देश में बड़ी संख्या में मुसलमान के रुक जाने के कारण भारत ऐसा कदम नहीं उठा पाया। क्योंकि कांग्रेस की मुस्लिम परस्त राजनीति के कारण भारत ने कभी इजराइल का समर्थन नहीं किया। अंग्रेजों की कई सौ वर्षो की गुलामी के बाद नई-नई आजादी प्राप्त होने के बाद और एक संप्रभु राष्ट्र बन जाने पर भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के उस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया था जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन में इजराइल राज्य की स्थापना की बात की थी। स्मरणीय है कि आधुनिक इजरायल “राज्य” की स्थापना 1948 में हुई थी। लेकिन भारत ने उसे तीन वर्षों तक मान्यता नहीं दी थी। जब की फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला भारत पहला देश था। दुनिया के ताकतवर देशों द्वारा इजराइल को मान्यता मिलने के लगभग तीन वर्ष बाद 1950 में भारत ने इजराइल को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता प्रदान की, लेकिन घरेलू राजनीति के कारण और कांग्रेस की मुस्लिम परस्तता के कारण 1992 तक भारत और इजराइल के बीच कूटनीतिक/राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं हो सके। नेहरू-गांधी परिवार के बाहर देश का नेतृत्व आने के बाद 1992 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने पहली बार इजराइल से कूटनीतिक संबंध स्थापित किए और तेल अवीव में भारत का राजदूतावास खोला। कूटनीतिक परंपराओं को ध्यान रखते हुए इसराइल ने भी भारत की राजधानी नई दिल्ली में अपना दूतावास खोला। इसके अतिरिक्त इजराइल ने भारत के मुंबई और बेंगलुरु में अपना महावाणिज्य दूतावास स्थापित किया।

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स्मरणीय है कि भारत की बेरुखी के बावजूद इजराइल ने हमेशा भारत का साथ दिया। 1971 के युद्ध में इजरायल ने भारत को बहुत ही महत्वपूर्ण गुप्त जानकारियां प्रदान की। 1999 के कारगिल युद्ध के समय इजराइल ने महत्वपूर्ण गुप्त जानकारियां प्रदान की। ऐसे कठिन समय में इजराइल ने भारत को बहुत ही महत्वपूर्ण पीएनजी (Precision Guided Munitions) प्रदान किया। उस समय दुनिया के दो ही देश थे जिन्होंने भारत को प्रिसीशन गाइडेड म्युनिशन्स प्रदान किया था उसमें से साउथ अफ्रीका और दूसरा इसराइल था। यह वही म्युनिशंस है जिसकी सहायता से पाकिस्तान के बहुत ही मजबूत बंकरों को हवाई हमले के द्वारा तोड़ा जा सका था।

1992 में राजनीतिक/कूटनीतिक संबंध स्थापित होने के बाद भी भारत और इजराइल के संबंध बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते थे। संबंध अच्छा ना हो पाने का कारण स्वयं भारत था। क्योंकि 2004 से लेकर 2014 तक देश में कांग्रेस की ही सरकार रही थी और वोटबैंक की राजनीति के कारण कांग्रेस सरकार इसरायल को कुछ अधिक महत्व नहीं देना चाहती थी।

प्रधानमंत्री मोदी के इजराइल दौरे का असर
भारत और इजराइल के संबंध 2014 से श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बहुत तेजी से सुधरे। आश्चर्य की बात यह है कि भारत के संबंध जब इजराइल से अच्छे होते थे तो कुछ अरब देश इसका विरोध करते थे। परंतु नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसा नहीं हुआ। वस्तुत: भारत और इजरायल के संबंध जितने प्रगाढ़ हुए उतने ही भारत और अरब देशों के संबंध भी प्रगाढ़ हुए। अनेक मुस्लिम देशों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान दिया जिसमें संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब भी शामिल है। इस तरह यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम की कूटनीतिक सफलता ही कहीं जा सकती है कि उन्होंने न सिर्फ इजराइल से बहुत अच्छे संबंध स्थापित किए वरन् अरब देशों से भी ऐसे संबंध स्थापित किए जो इसके पूर्व कभी नहीं थे। भारत इजराइल के संबंध की पराकाष्ठा 2017 में पहुंची जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल की यात्रा की। दोनों देशों के अस्तित्व में आने या स्वतंत्र होने के बाद यह पहला अवसर था जब भारत के प्रधानमंत्री ने इजरायल की यात्रा की थी। इस यात्रा को इसराइल ने बहुत महत्व दिया और प्रधानमंत्री का बहुत ही भव्य स्वागत किया गया। इस दौरान सात महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इसके पहले जब भी कोई भारत का राजनीतिज्ञ इसराइल जाता था (खैर प्रधानमंत्री तो कभी गया नहीं था) तो उसके लिए एक तरह से यह आवश्यक होता था कि वह फिलिस्तीन भी जाए। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वह परंपरा भी तोड़ी और वह इजराइल तो गए लेकिन फिलिस्तीन नहीं गए। किंतु इसके कारण ना तो भारत के किसी मुस्लिम देश से संबंध खराब हुई और ना ही किसी ने इसका कोई विरोध किया। आज भारत और इजरायल के संबंध बहुत ही अच्छे हैं। रूस के बाद इजराइल भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आयुध और हथियार का निर्यातक है। इजराइल का लगभग 43% रक्षा- उपकरण और उपस्कर भारत को ही प्राप्त होते हैं। यानी भारत इजराइल का सबसे बड़ा रक्षा उपकरणों का ग्राहक है। भारत इसरायल का व्यापार लगभग 9 बिलियन डॉलर के बराबर है।

अमेरिका सहित यूरोप के अधिकांश देश इजराइल के साथ
वर्तमान संघर्ष में भारत ने बहुत स्पष्ट संकेत दिए हैं। प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में “आतंकवादी हमले के पीड़ितों” के साथ संवेदना व्यक्त की और इसरायल का साथ देने का समर्थन किया। भारत स्वंय आतंकी हिंसा का दीर्घ काल से शिकार रहा है। वह इस्लामिक चरमपंथी हिंसा से स्वयं जूझ रहा है। भारत यह अच्छी तरह समझने लगा है और कहने का साहस भी रखता है। अमेरिका सहित यूरोप के अधिकांश देश इसरायल के साथ हैं। हमास द्वारा प्रारंभ किए गए इस संघर्ष में एक बार फिर इसरायल ही जीतेगा और फिलिस्तीन की सीमाएं और सिमट जायेंगी। हां, भारत की स्थिति न सिर्फ और स्पष्ट हुई वरन् इजराइल के साथ प्रगाढ़ भी हुई है। इसके सकारात्मक दूरगामी परिणाम होंगे।

(लेखक प्रज्ञा मठ प्रकाशन, गाजियाबाद उत्तर प्रदेश के प्रकाशक हैं।)

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