राधास्वामी सत्संग ब्यास : महिलाएं बनीं ढाल और शुरू कर दी वृक्षों को कटाई, भूखंड पर कब्जा

राधास्वामी सत्संग ब्यास के पास कई राज्यों में हजारो एकड़ भूमि है। जिसमें कई स्थानों पर स्थानीय किसानों ने गंभीर आरोप लगाए हैं।

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राधास्वामी सत्संग ब्यास के नाम अवैध कार्यों की लंबी सूची है। अपने अनुयायियों के बल पर ब्यास को नि:शुल्क सेवादार मिले और उनके बल पर किसानों की कई एकड़ भूमि पर कब्जा, नदियों की दिशा मोड़ी गई, वर्षों से खड़े पेड़ों को नृशंसता से काटा गया। ब्यास ने इस कार्य के दौरान महिलाओं को अपनी ढाल के रूप में खड़ा किया जिससे प्रशासन भी कुछ नहीं कर पाया।

राधास्वामी सत्संग ब्यास का मुख्यालय जालंधर में ब्यास नदी के किनारे स्थित है। आरोप है कि यहां ब्यास नदी पर अवैध बांध बनाकर नदी की दिशा जोड़ी गई और तट की कई एकड़ भूमि पर कब्जा कर लिया गया। इसकी क्षति उठानी पड़ी नदी के पास की जमीनों वाले किसानों को।

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चौबीस घंटे में वृक्ष साफ
सत्संग ब्यास को सड़क का निर्माण करना था। इसके लिए ब्यास के अनुयायियों ने महिलाओं को ढाल की तरह आगे कर दिया। इसके बाद पूर्वनियोजित योजना के अंतर्गत बड़ी संख्या में सेवादारों ने शुरू कर दी नदी के पाट को घेरने की तैयारी। इन सेवादारों ने जितने भी वृक्ष राह में पड़े सभी को निर्ममता से काटा और सड़कें बना दीं, चाहरदीवारी खड़ी कर दी।

इस कार्य के बीच प्रशासन की कार्रवाई को थामने के लिए महिलाओं की मानव श्रृंखला को खड़ा किया गया था। इससे न तो स्थानीय किसान उनका सामना कर पाए और न ही प्रशासन कुछ कर पाया।

किसानों की जमीनें छीनीं
कपूरथला के चार गावों के किसानों ने आरोप लगाया था कि उनकी 2,200 एकड़ भूमि पर राधास्वामी सत्संग ब्यास कब्जा कर रहा है। ये कब्जा ब्यास नदी की धारा को बदलकर किया गया है। इसके लिए नदी को अवैध बांधों से घेरा गया और उसकी दिशा बदली गई। इसमें किसानों की जमीन पर धीरे-धीरे ब्यास कब्जा करता गया।

…और हरे भरे पेड़ों को काटकर हो गया कब्जा
जालंधर ब्यास में नदी के क्षेत्र में अवैध कब्जा करने के लिए राधास्वामी सत्संग ब्यास ने महिलाओं को मानव ढाल के रूप में खड़ा किया था। बड़ी संख्या में खड़े हरेभरे पेड़ों को निर्ममता से काट दिया गया। वहां अवैध सड़कें, बाउंड्री वॉल बनाई गई। इस दौरान स्थानीय कानून व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करनेवाली सुरक्षा एजेंसियों को महिलाओं की ढाल ने रोके रखा। यहां पेड़ों को काटने, सड़क निर्माण और नदी पर बांध बनाने के लिए किसी एजेंसी से अनुमति नहीं ली गई थी।

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