ममता बनर्जी कोलकाता के अस्पताल में भर्ती हैं। नंदीग्राम में लगी चोट का इलाज 132 किलोमीटर दूर एसएसकेएम अस्पताल में चल रहा है। इस बीच उनकी पार्टी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से भेंट की और सुरक्षा को लेकर एक ज्ञापन सौंपा। उसकी प्रमुख प्रतिद्वंदी भारतीय जनता पार्टी का दल भी अधिकारियों से मिला और गंभीर प्रश्न उठाए। जबकि, कांग्रेस का आरोप है कि ममता सहानुभूति प्राप्ति के लिए हथकंडे अपना रही हैं। एक ओर आंदोलन तो दूसरी ओर चुनाव, दोनों से देश में कोलाहल है। जिसमें एक को आंसुओं ने जीवित किया था तो दूसरे को सियासी फ्रैक्चर से पुनर्जीवित करने के प्रयत्न पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम का चश्मदीद चिल्ला-चिल्लाकर कह हा है कि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कोई हमला नहीं हुआ। बल्कि, उनकी कार का दरवाजा लोहे के खंभे से टकरा गया था। लेकिन, चश्मदीद एक सामान्य जन है, उसकी मूर्ति के समक्ष मुख्यमंत्री के पद की कीर्ति बड़ी है। इसलिए पूरा लक्ष्य चश्मदीद से सच्चाई जानने के बाद भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के फ्रैक्चर्ड पैर पर लगा हुआ है।
फ्रैक्चर और सियासी दांव
इस बीच ममता बनर्जी ने घोषणा की है कि वे कोई कार्यक्रम रद्द नहीं करेंगी। व्हील चेयर पर चुनाव प्रचार करेंगी। अब सबसे बड़ी चिंता विरोधी दलों को है। सैकड़ों कार्यकर्ताओं की हत्या से परेशान भाजपा पर एक फ्रैक्चर पांव भारी पड़ता प्रतीत हो रहा है। जबकि वाम दल और कांग्रेस तो चुनावी लड़ाई में ही नहीं गिने जा रहे हैं। उनके समक्ष अस्तित्व की लड़ाई है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सत्ता हस्तांतरण रोकने और प्राप्त करने की लड़ाई है। वैसे, भारतीय जनता पार्टी दो वर्षों से पश्चिम बंगाल में अपने आधिपत्य स्थापन के लिए संघर्ष कर रही है। इस बीच उसके कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे में पथराव हुआ, प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की कार में तो कैसे पत्थर मारे गए और वे कैसे चोटिल हुए इसका वीडियो प्रमाण भी है। लेकिन तब चुनाव पास था और आज सिर पर है। जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का फ्रैक्चर पांव उनकी पार्टी को चुनावी विजय की लक्ष्य प्राप्ति के लिए पुनर्जीवित करने का साधन बन सकता है। ये भारतीय जनता पार्टी के लिए वैसा ही होगा जैसा किसान आंदोलन में नेता के छलके आंसुओं ने किया था।
जब आंसुओं ने लौटा दिया
दिल्ली की सीमाओं पर संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलनकारियों का जमावड़ा है। यह आंदोलन 100 दिन पूरे कर चुका है। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई ट्रैक्टर परेड के बाद जो हिंसा हुई उसके बाद देश की संवेदनाएं आंदोलनकारियों के प्रति खत्म हो गई। सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े हो गए तो, आंदोलनकारियों ने भागने में भलाई समझी। टेंट उखड़ने लगे, संयुक्त किसान मोर्चा के घटक यूनियन हाथ खींचने लगे, तो दिल्ली की सीमा पर अकेले पड़े भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और संयुक्त किसान मोर्चा के सहयोगी राकेश टिकैत के आंसू छलक पड़े। टीवी चैनलों के समक्ष राकेश टिकैत का फूट-फूटकर रोना (भले ही बनावटी ही रहा हो) आंदोलन से लौट रहे घटक दलों के सदस्यों के दिल में उतर गया और लोग लौटने लगे। इसी के साथ किसान आंदोलन की मद्धम पड़ती लौ फिर पुनर्जीवित हो गई।