राफेल के दूसरे स्क्वॉड्रन को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। इस स्क्वॉड्रन को भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन के पास तैनात किया जाएगा। यह तैनाती अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक हो जाएगी। यहां से राफेल विमान चंद मिनटों में चीन से लगी सीमा पर कहीं भी पहुंच सकता है।
पश्चिम बंगाल के हाशिमारा वायु सेना अड्डे पर राफेल लड़ाकू विमानों के दूसरे स्क्वॉड्रन को तैनात करने का निर्णय किया गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण इस वायुसैनिक अड्डे का सामरिक महत्व है। भारत-चीन और भूटान के ट्राइजंक्शन पर इनकी तैनाती चीन पर सतत निगाह रखने और सभी परिस्थितियों का सामना करने की तैयारी के कारण लिया गया है।
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हाशिमारा का सामरिक महत्व
हाशिमारा वायु सैनिक अड्डे का निर्माण 1993 में हुआ था। राफेल की तैनाती के लिए इसकी हवाई पट्टी का दोबारा निर्माण किया गया है। यह उत्तरी बंगाल में पड़ता है। यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर में आता है। जिसके उत्तर में चीन है। इसका सामरिक महत्व बहुत बड़ा है। हाशिमारा से तिब्बत की दूरी 384 किलोमीटर है। जहां राफेल चंद मिनटों में पहुंच सकता है। इसके अलावा तिब्बत के दूसरे सबसे बड़े शहर शिगात्से एयरपोर्ट पर लैंडिंग हर समय संभव है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा की हाशिमारा से दूरी 364 किलोमीटर है। जहां चंद मिनटों में पहुंचा जा सकता है।
नए विमानों की खेप जल्द
रक्षा मंत्रालय के अनुसार अब तक 11 राफेल विमानों की खेप भारत पहुंच चुकी है। इसमें 17 राफेल विमान मार्च के महीने में भारत को मिल जाएंगे। जबकि अप्रैल 2022 में भारत को राफेल की पूरी खेप मिल जाएगी।
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फ्रांस से मिलने हैं इतने विमान
फ्रांस की कंपनी से 36 राफेल विमानों का सौदा हुआ है। जिसकी कुल लागत 59 हजार करोड़ रुपए की है। राफेल लड़ाकू विमानों की पहली खेप 29 जुलाई को भारत में पहुंची थी। दूसरी खेप तीन नवंबर को और तीसरी खेप 27 जनवरी को मिली थी।
…और 23 वर्ष का इंतजार समाप्त
भारत ने 23 वर्ष पहले रूस से सुखोई जेट विमान खरीदे थे। इसका निर्माण रूस के सुखोई कॉर्पेरेशन ने किया था और भारत से अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इसका लाइसेंस मिला।