राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का आखिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में फिर से विलय हो गया। पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा जेडयू से ही अलग होकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हुए थे। लेकिन ऐन विधानसभा चुनाव से पहले 2020 में वे महगठबंधन से भी अलग हो गए थे। हालांकि चुनाव से पहले उन्होंने नीतीश कुमार की तारीफ कर वापस लौटने का संकेत दिया था, लेकिन नीतीश ने कुशवाहा को कोई भाव नहीं दिया था। मन मारकर कुशवाहा को छोटी पार्टियों को मिलाकर एक गठबंधन बनाना पड़ा था और चुनाव मैदान में उतरना पड़ा था।
कुशवाहा के साथ ही नीतीश कुमार को भी लगा झटका
2020 के विधानसभा चुनाव में कुशवाहा को बड़ा झटका लगा था और उनकी पार्टी रालोसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। वहीं जेडीयू को भी बड़ा झटका लगा था, और वह मात्र 43 सीटों पर जीतने में सफल हो पाई थी। 2015 के विधानसभा चुनाव में उसे 71 सीटों पर जीत मिली थी। इस चुनाव में झटका खाने के बाद नीतीश कुमार भी बैकफुट पर आ गए थे और भाजपा 74 सीटों पर जीत कर छो़टे भाई से बड़े भाई की भूमिका में आ गई।
Upendra Kushwaha appointed chairman of National Parliamentary Board of JD(U)
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— ANI Digital (@ani_digital) March 14, 2021
भाजपा ने दिखाया बड़प्पन
भाजपा ने बड़प्पन दिखाते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाए रखा लेकिन झटका लगने के बाद चुनाव खत्म होने के बाद से ही वे अपनी पार्टी की ताकत बढ़ाने में जुटे हुए हैं। इसी कड़ी में उपेंद्र कुशवाहा का जेडीयू में विलय कर उन्होंने पार्टी की ताकत बढ़ाई है।
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दोनों के लिए फायदे का सौदा
बता दें कि कुशवाहा ने जेडीयू से बाहर आने के बाद नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार समेत कई तरह के आरोप लगाए थे। लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें फिर से गले लगाया है तो इसके पीछे भावनाओं के साथ ही राजनैतिक वजह भी है। अप्रैल में प्रदेश में ग्राम पंचायत होने हैं और इस चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा के आने से उनकी पार्टी की स्थिति मजबूत होगी। लव-कुश( कुर्मी-कोइरी) के इस समीकरण का लाभ भविष्य में भी नीतीश कुमार के साथ ही उपेंद्र कुशवाहा को मिलता रहेगा। निश्चित रुप से ये दोनों के लिए फायदे का सौदा साबित होगा
भाजपा को भी फायदा
भाजपा के लिए भी यह ज्यादा चिंता की बात नहीं है। एनडीए का हिस्सा होने के कारण उसे भी जातीय समीकरण से फायदा होगा।