बाटला हाउस एन्काउंटर प्रकरण के प्रमुख आरोपी आरीज खान को विशेष न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई है। इस निर्णय के बाद 2008 के इस प्रकरण में हत्यारे को कड़ी सजा दिये जाने की मांग अब पूरी हो गई है। आरीज खान इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकी है।
13 वर्ष की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद सत्य जीता है। दिल्ली के सुपर कॉप मोहन चंद शर्मा के परिवार और दिल्ली पुलिस को इसके माध्यम से बड़ी राहत मिली है। मोहन चंद शर्मा को खोने के बाद ये दोनों ही सबसे अधिक प्रभावित थे। वर्ष 2008 में दिल्ली धमाकों को एक सप्ताह बीत चुके थे। एक दिन अचानक दिल्ली पुलिस दल को गुप्त सूचना मिली कि बाटला हाउस के एक फ्लैट में धमाकों से संबद्ध आतंकी छुपे हुए हैं। इसके बाद सात पुलिस अधिकारी वहां पहुंचे। वे एल-18 बाटला हाउस नामक इमारत के दूसरे मजले पर पहुंचे थे। इस बीच इसकी भनक फ्लैट के अंदर के लोगों को लग गई गई और घर के भीतर से फायरिंग शुरू हो गई। आतंकियों की फायरिंग का उत्तर दिल्ली पुलिस के दल ने भी दिया। इसमें दो आतंकी मारे गए जबकि, दिल्ली पुलिस के सुपर कॉप मोहनचंद शर्मा भी गंभीर रूप से घायल हो गए। कुछ दिनों बाद इन घावों के कारण ही उनकी मौत गई थी।
क्या है मामला?
13 सितंबर, 2008 को दिल्ली अचानक पांच बम धमाकों से दहल गई। पहला धमाका व्यस्ततम गफ्फार मार्केट क्षेत्र में सायं 6.07 मिनट पर हुआ। इस धमाके के घायलों को अस्पताल ले जाया जा रहा था कि राम मनोहर लोहिया अस्पताल के पास कार में रखा विस्फोटक फट गया। इसके तुरंत बाद कनॉट प्लेस में दो धमाके हुए। प्रत्यक्षदर्शियों ने बाताया कि उन्होंने दो लोगों को कचरे के डिब्बे में विस्फोटक रखते हुए देखा था। इसके लगभग कुछ मिनट पश्चात ग्रेटर कैलाश-1 के एम-ब्लॉक में एक धमाका हो गया।
दिल्ली में हुए पांच श्रृंखलाबद्ध धमाकों के पहले देश के दूसरे शहरों में भी बम धमाके हो चुके थे। इसकी जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन ने ली थी। इन सभी बम धमाकों के पीछे मुख्य साजिशकर्ता आतिफ अमीन था, जो इंडियन मुजाहिद्दीन का मुख्य बम निर्माता था।
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चर्चा में आया बाटला हाउस
बम धमाकों के बाद दिल्ली पुलिस की टीमें सरगर्मी से इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों को ढूंढ रही थीं। इसके लिए सभी स्तर पर नेटवर्क को सक्रिय किया गया था। इसका परिणाम धमाकों के लगभग एक सप्ताह पश्चात मिला।
दिल्ली पुलिस दल को गुप्त सूचना मिली थी कि बाटला हाउस के एल-18 इमारत में कुछ संशयित छुपे हुए हैं। पुलिस सतर्क हो गई। दिल्ली पुलिस के जाबांज पुलिस अधिकारी और एन्काउंटर स्पेशालिस्ट मोहनचंद शर्मा सात लोगों के पुलिस दल को लेकर उस इमारत की ओर चल पड़े। पुलिस दूसरे मजले पर स्थित फ्लैट से संशयितों को निकालने की कोशिश कर ही रही थी कि फ्लैट के अंदर से फायरिंग शुरू हो गई। आत्मरक्षा में पुलिस ने भी फायरिंग की।
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इस गोलीबारी में आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद ढेर हो गया। मोहम्मद सैफ को पकड़ लिया गया जबकि शहजाद और जुनैद भागने में सफल हो गए। इस घटना में पुलिस निरिक्षक मोहनचंद शर्मा और कांस्टेबल बलविंदर गंभीर रूप से घायल हो गए। इन घावों से मोहनचंद शर्मा उबर नहीं पाए और वे हुतात्मा हो गए।
कंगारू कोर्ट लगी..
इस एन्काउंटर के बाद मानवाधिकार को लेकर खूब ढिंढोरा पीटा गया। दिल्ली पुलिस को लोगों ने निशाना बनाया। जामिया टीचर्स सॉलीडारिटी असोशिएशन (जेटीएसए) ने ‘जन सुनवाई’ (कंगारू कोर्ट) कोर्ट लगाई। इसके माध्यम से प्रचारित किया गया कि, इन्काउंटर फर्जी थे। इस कुप्रचार को सींचने का कार्य अधिवक्ता प्रशांत भूषण, अरुंधति रॉय, कविता कृष्णन जैसे लोगों ने और भीड़ जुटाने का कार्य किया जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने।
राजनीति भी खूब रोई
बाटला हाउस एन्काउंटर को लेकर राजनीति भी खूब रंगी। 2012 में जब उत्तर प्रदेश चुनाव हो रहे थे तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने एक रैली में कहा कि, जब उन्होंने इसकी फोटो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दिखाई थी तो, वे रो पड़ी थीं। हालांकि, सलमान खुर्शीद के इस बयान को कांग्रेस के अंदर से ही विरोध का सामना करना पड़ा। दिग्विजय सिंह ने इससे साफ इन्कार कर दिया कि सोनिया गांधी रोई थीं।