जब-जब जेडीयू और भाजपा साथ, मतों की हुई बरसात

2015 में नीतीश कुमार एनडीए नहीं, बल्कि महागठबंधन में शामिल थे और तब महागठबंधन ने बंपर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार फिर जेडीयू और भाजपा मिलकर मैदान मे उतरे हैं। एनडीए के दो प्रमुख घटक दल यही हैं। इनके ही साथ आने-जाने से बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मच जाती है।

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पटना। बिहार में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को जोरन कहा जाता है। जोरन का मतलब होता है जोड़नेवाला। इसका उपयोग दूध से दही जमाने के लिए किया जाता है। जोरन कहने का मतलब है कि वे जिस भी पार्टी के साथ जाते हैं, उस पार्टी का प्रभामंडल बढ़ जाता है और उसकी सरकार बनने की गारंटी हो जाती है। 2015 में नीतीश कुमार एनडीए नहीं, बल्कि महागठबंधन में शामिल थे और तब महागठबंधन ने बंपर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार फिर जेडीयू और भाजपा मिलकर मैदान मे उतरे हैं। एनडीए के दो प्रमुख घटक दल यही हैं। इनके ही साथ आने-जाने से बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मच जाती है।
फिलहाल चुनावी दंगल का आगाज हो चुका है और सभी पार्टियां अपनी पूरी ताकत से अखाड़े में उतरने की तैयारी में हैं। हालांकि चुनावी परिदृश्य अबतक काफी साफ हो चुका है और महागठबंधन तथा एनडीए में ही महामुकाबला है।
भाजपा, जेडीयू साथ तो बन जाती है बात
महागठबंधन को इस चुनाव में कितनी सीटें मिलेंगी,यह तो 10 नवंबर को मतगणना के ही दिन सही तौर पर पता चल पाएगा। लेकिन इतना सच है कि बिहार की सियासित में डंके की चोट पर बदलाव लाने का मादा इन्हीं तीन ही पार्टियों में है। उनमें नीतीश कुमार की जेडीयू, तेजस्वी यादव की आरजेडी और भारतीय जनता पार्टी शामिल हैं। इन तीनों के इधर-उधर होने से वहां की सियासत का सुर बदलते देर नहीं लगती। अगर जेडीयू और भाजपा की बात की जाए तो इतिहास गवाह है कि जब-जब इन दोनों पार्टियां साथ मिलकर चुनावी दंगल में उतरीं, बिहार के मतदाताओं ने इनकी झोली में दिल खोलकर मतदान दिया।
2000 में पहली बार साथ मिलकर लड़े चुनाव
वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में दोनों दल पहली बार साथ उतरे। उसके बाद हर चुनाव में दोनों ही दलों को बिहार की जनता का नेह-स्नेह मिलता रहा और बिहार की चुनावी राजनीति में जेडीयू और भाजपा मजबूत होते चले गए। 2000 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 34 सीटें जीतीं । तब उसने 120 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। वहीं भाजपा की झोली में 67 सीटें आईं।
2005 में बढ़ गई ताकत
वर्ष 2005 फरवरी में हुए विस चुनाव में जेडीयू ने 138 उम्मीदवारे उतारे थे और उसे 57 सीटों पर विजय मिली थी। जबकि भाजपा के 37 प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2005 अक्टूबर में हुए चुनाव में जेडीयू ने 139 सीटों पर लड़कर 88 सीटें प्राप्त कीं। वहीं भाजपा के 55 प्रत्याशी जीते। वर्ष 2010 में 141 सीटों पर भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाले जेडीयू ने 115 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, इस चुनाव में 102 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा के 91 उम्मीदवारों को जनता ने जीत दिलाई।
2015 के चुनाव में भाजपा को हुआ नुकसान
2015 के चुनाव में जदयू एनडीए से अलग होकर वह महागठबंधन के साथ आ गया था। आमने-सामने की लड़ाई में जहां जेडीयू को 101 सीटों पर लड़कर 71 सीटें मिलीं, वहीं 157 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा को महज 53 सीटों पर जीत मिली थी।
चढ़ता गया जेडीयू के वोटों का ग्राफ
वर्ष 2000 में समता पार्टी को 6.47 प्रतिशत, वर्ष 2005 फरवरी के चुनाव में जेडीयू को 14.55 प्रतिशत, 2005 अक्टूबर चुनाव में 20.46 फीसदी वोट मिले। वहीं, 2010 के चुनाव में जेडीयू को बिहार की जनता ने 22.58 फीसदी वोट दिए। आरजेडी के साथ जाने पर 2015 के चुनाव में जेडीयू का वोट करीब छह फीसदी घटकर 16.83 फीसदी पर आ गया। वहीं भाजपा को 2005 फरवरी चुनाव को छोड़कर अन्य चुनावों में जेडीयू के साथ से उसका भी कद निरंतर बढ़ा। 2000 में भाजपा को 14.64, 2005 फरवरी में 10.97, 2005 अक्टूबर में 15.65, 2010 में 16.49 और 2015 विस चुनाव में 24.42 फीसदी वोट प्राप्त हुए।

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