दिल्ली उच्च न्यायालय(Delhi High Court )ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग बच्चों के अपहरण और उनकी तस्करी के मामले(Cases of kidnapping and trafficking of minor children) समझौते के जरिये नहीं सुलझाए जा सकते हैं। 7 दिसंबर को जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने कहा कि समझौते के आधार पर इन मामलों में दर्ज एफआईआर(FIR) को निरस्त नहीं किया जा सकता है।
माफ नहीं किए जा सकते ऐसे कृत्य
न्यायालय ने कहा कि बच्चों का अपहरण और उनकी तस्करी एक गंभीर अपराध है और इसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिन बच्चों का अपहरण होता है, उनके भविष्य और विकास पर असर होता है। कोर्ट ने एक नाबालिग बच्ची के माता-पिता की ओर से किए गए समझौते पर गौर करते हुए कहा कि ऐसे कृत्य को माफ नहीं किया जा सकता, क्योंकि बच्ची कोई वस्तु नहीं है। ऐसा करना न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे समझौते न तो नैतिक रूप से स्वीकार्य हैं और न ही कानूनी रूप से।
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ये बच्चों के अधिकारों और उनकी गरिमा के खिलाफ
कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे समझौते स्वीकार किए गए तो इसका बच्चों के पुनर्वास(Rehabilitation of children) पर असर तो पड़ेगा ही। ये बच्चों के अधिकारों और उनकी गरिमा के खिलाफ होगा। इससे ऐसी परिपाटी को बल मिलेगा, जो कानून और न्याय के अनुरूप नहीं है।
यह है मामला
दरअसल, एक तीन वर्षीय नाबालिग बच्ची के अपहरण के मामले में हाई कोर्ट में याचिका दायर दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर एफआईआर(FIR) निरस्त करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि सरकार और कोर्ट को अपने फैसलों के जरिये ऐसे मामलों में एक मजबूत संदेश देना चाहिए ताकि बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बन सके।