अश्वनी राय
Power politics: राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों (assembly elections) के परिणाम घोषित होने के पांच दिन बाद भी भाजपा (B J P) अपने जीते राज्यों के लिए मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं कर पा रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा ने आखिर क्यों नहीं चुनाव पूर्व इन तीनों राज्यों के लिए मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा (Chief Minister Candidate) नहीं लाया। विधानसभा के चुनावी मैदान में भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व के रूप में जाना ही श्रेयस्कर समझा। भाजपा इन तीनों राज्यों में हर हाल में सत्ता पाना चाहती थी। इसके लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हर वो फार्मूला अपनाया, जिसमें उसे थोड़ी सी भी संभावना दिखी। भाजपा का सामूहिक नेतृत्व का फैसला अपेक्षित परिणाम के लिए इसी फार्मूले का एक उदाहरण था, जिसमें उसे मनोनुकूल सफलता भी मिल गई। हिन्दी पट्टी के इन तीनों राज्यों में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिल गया।
पार्टी और जनता दोनों स्तरों पर हो सकते थे टकराव
03 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने इतने दिन बाद भी तीनों राज्यों के लिए मुख्यमंत्री के लिए सर्वमान्य चेहरा घोषित न कर पाने की दुविधा बताती है कि चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में किसी की घोषणा पार्टी की जीत के लिए कितना घातक हो सकती थी। चुनाव पूर्व सीएम चेहरा न लाकर भाजपा ने एक साथ कई परेशानियों का काट निकाल लिया। इस फैसले से भाजपा ने तीनों राज्यों में उन परिस्थितियों को उभरने का मौका ही नहीं दिया, जिनसे पार्टी के अंदर जीत किसी की भी होती, लेकिन हार पार्टी की होती। चुनाव पूर्व ही सीएम चेहरा घोषित कर देने से टकराव की परिस्थितियां पार्टी और जनता दोनों स्तरों पर सामने आने की पूरी संभावना थी।
वसुंधरा ने नहीं उभरने दिया नया चेहरा
राजस्थान (Rajasthan) की बात करें तो पिछले कई सालों से वसुंधरा राजे ने भाजपा का कोई नया चेहरा उभरने ही नहीं दिया। वर्तमान में वसुंधरा के अलावा जितने भी चेहरे भावी मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप निकल कर मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे हैं। उनकी लोकप्रियता केंद्र की मोदी सरकार और उसमें उनकी भूमिका के कारण है। ये सभी चेहरे वसुंधरा के राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद ही उभर पाए हैं। राजस्थान में वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल का अवलोकन करें, तो पाएंगे कि राजे की कार्य शैली को लेकर जनता और पार्टी दोनों में काफी नाराजगी थी। लेकिन एक सच्चाई यह भी थी कि विधायकों के एक बड़ी लॉबी वसुंधरा के साथ अंधभक्त की तरह खड़ी थी। ऐसे भाजपा राजस्थान को लेकर असहाय की स्थिति में पड़ी सबकुछ सहती रही। राजनाथ सिंह जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे , तब वसुंधरा राजे ने किस तरह से अपनी मनमानी करते हुए शीर्ष नेतृत्व के सामने एक चुनौती बनती रहीं, यह सबको पता है। ऐसे में राजस्थान में सीएम चेहरा घोषित करना हर हाल में पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाला साबित होता। क्योंकि सीएम पद के लिए वसुंधरा का नाम आता, तो भी खतरा था और किसी अन्य का नाम आता, तो भी एकजुटता बन पाने की समस्या निश्चित थी।
शीर्ष नेतृत्व ने ही दी अटकलबाजियों को हवा
हालांकि मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)का मामला राजस्थान जितना टकराव की संभावना वाला नहीं था। यद्यपि वहां भी कई बड़े नाम विधानसभा चुनाव में जीतकर आये हैं। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर असमंजस और अटकलबाजी के माहौल को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने ही हवा दी है। इन चुनावाों में भाजपा ने अपने कई केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतार दिया। इस रणनीति के पीछे भाजपा की मंशा चाहे जो रही हो लेकिन सियासी गलियारों और जनता में उन चेहरों को भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री के संभावित विकल्प के रुप आने का संदेश गया। भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों ने ना केवल अपना चुनाव जीता है, बल्कि अपने आस-पास की विधानसभा सीटों को भी भाजपा की झोली में लाने में मददगार बने हैं। कइयों ने तो जिले की पूरी विस सीटों पर भाजपा का झंडा फहरा दिया है। निश्चित रूप से ये जीत मोदी के नाम और काम पर मिली है। लेकिन बड़े नामों की मौजूदगी भाजपा को मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए लंबे चिंतन को दौर में डाल रही है।
राज्यों में नये विकल्प की तैयारी में भाजपा
इसी तरह छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में भी भाजपा के सबसे नाम पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ही थे। रमन सिंह तीन बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन चुनाव पूर्व से ही ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा इस बार राज्यों में नये विकल्प तैयार करने की तैयारी में है। मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा से पहले राज्य के सामाजिक समीकरण को भी ध्यान रखना चाहिए।
भाजपा का ध्यान 2024 के लोकसभा चुनाव पर
तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा करने से पहले भाजपा निश्चित रूप में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को भी ध्यान में रख रही है। भाजपा इन तीनों राज्यों की सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत सुनिश्चित करना चाहेगी। इस लिए भाजपा की यह एक मजबूरी भी है कि वह टकराव और असंतोष के माहौल से बचने की पुरजोर कोशिश करे। शायद यही कारण है कि भाजपा को इन तीनों राज्यों के लिए मुख्यमंत्री का नाम घोषित करने में चिंतन की इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है।
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