Uttarakhand: देश की प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति(Shri Badrinath-Kedarnath Temple Committee) यूं तो आजादी से पूर्व वर्ष 1939 में बने मंदिर अधिनियम के तहत ही संचालित होती है, लेकिन करीब पांच सौ से अधिक कार्मिकों वाली इस लब्ध प्रतिष्ठित समिति में कर्मचारी सेवा नियमावली ही नहीं थी, जिसके कारण कई बार विसंगतियां भी सामने आईं।
सेवा नियमावली के लिए कई बार प्रयास हुए। सबसे पहले वर्ष 1983 में सेवा नियमावली बनाने की कवायद शुरू हुई,तब कई मर्तबा पर्वतीय विकास विभाग(Hill Development Department) उत्तर प्रदेश से पत्राचार हुआ। वर्ष 1987 में विशेष सचिव पर्वतीय विकास विभाग उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता में समिति का गठन हुआ, उसके बाद भी राज्य गठन तक लगातार प्रयास हुए, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। राज्य निर्माण के बाद तो लगा कि अब तो जल्द ही प्रदेश के अन्य विभागों की तरह श्री बदरी केदार मंदिर समिति की भी कर्मचारी सेवा नियमावली होगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
वर्षो से शुरू थी कवायद
राज्य गठन के बाद वर्ष 2003-04 से एक बार फिर शुरू हुई सेवा नियमावली की कवायद, लेकिन कैबिनेट के दहलीज तक नहीं पहुंच सकी। बीकेटीसी के विधि अधिकारी एसपीएस बर्त्वाल के अनुसार वे वर्ष 2004-05 से सेवा नियमावली के लिए गठित समितियों में बतौर सदस्य नामित रहे और हर बार सेवा नियमावली का कैबिनेट तक पहुंचने का इंतज़ार रहता था, लेकिन इस बार सफलता मिली और इसका पूरा श्रेय मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय काे है। उनके व्यक्तिगत व अथक प्रयासों से ही वर्षों से लंबित बहुप्रतीक्षित सेवा नियमावली(Much awaited service manual pending for years) को अस्तित्व में लाया जा सका।
आखिर नियमावली पर लगी मुहर
राज्य गठन के 23 वर्षों के लंबी प्रतीक्षा(23 long years of waiting) के बाद ही सही आखिरकार बदरी केदार मंदिर समिति को कर्मचारी सेवा नियमावली की सौगात मिल ही गई, इससे मंदिर समिति में कार्यरत अधिकारी/कर्मचारियों का सम्मान तो बढ़ा ही अपितु स्थाई/अस्थाई एवं सीज़नल कार्मिकों के हित भी सुरक्षित हुए हैं।
बीकेटीसी के सैकड़ों कर्मचारियों ने सेवा नियमावली को कैबिनेट से पारित होने पर बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय व उत्तराखंड सरकार का बड़ा आभार प्रदर्शित किया है।
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