6th January Swatantryaveer Savarkar Mukti Shatabdi varsh: ‘हां मैं सावरकर हूं’: वीर सावरकर

बालक विनायक को उनके माता पिता ने वीर नायकों की कहानी सुना कर बड़ा किया।यही कारण था कि देशभक्ति  इनमें बचपन से ही कूट कूट कर भरी थी।

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ऋषि साहनी
स्वातंत्र्यवीर सावरकर वीरों के वीर, महावीर, महान क्रांतिकारी, महान कवि और महान वक्ता थे। भारत माता पर अपना सर्वस्व , समस्त जीवन , सम्पूर्ण कुटुंब न्यौछावर करने वाले हम सबके प्रिय वीर विनायक दामोदर सावरकर की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। वे भारत ही नहीं, विदेशी धरती पर बसे भारतीयों के भी सर्वप्रिय महान स्वतंत्रता सेनानी हैं।

जब हम पर अंग्रेज राज कर रहे थे और हम सब स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहे थे तो ऐसे समय में वीर सावरकर ने देशवासियों में क्रांति की लौ जगाने के लिए अपना और अपने परिवार का जीवन दांव पर लगा दिया। देश भले ही उनके जैसा कदम नहीं उठा सके,लेकिन उनके विचारों का स्वागत पूरे दिल और आत्मा से किया। सबका सपना यही था कि भारत माता अंग्रेजों के चंगुल से कैसे स्वतंत्र हो। जब पशु-पक्षी भी दासता पंसद नहीं करते तो इंसानों को किसी की परतंत्रता कैसे बर्दाश्त हो सकती हैष

देशभक्तों के बलिदान की ज्योति हमेशा प्रज्ज्वलित रहेगी
ये गाथा उस समय की है, जब भारत मां विदेशियों की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी। 1857 की क्रांति उसके बाद भी रुकी नहीं।  वासुदेव बलवंत फड़के के हुतात्मा होने के बाद दासता की बेड़ियों को तोड़ने के लिए क्रांति का उदय तो होना ही था। जैसे भारत  के उपवन में मानो देवी देवता के साथ ही भारत माता भी इस क्षण का इंतजार कर रही थी। और तभी महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगुर नाम के गांव मे  28 मई 1883 दिन सोमवार को सूर्य की किरण के साथ खुशी की लहर दौड़ पड़ी। इसी दिन दामोदर सावरकर और राधाबाई के यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वे इनको प्यार से तात्या बुलाते थे। उन्होंने इनका नाम विनायक दामोदर सावरकर रखा।

बालक विनायक को उनके माता पिता ने वीर नायकों की कहानी सुना कर बड़ा किया।यही कारण था कि देशभक्ति  इनमें बचपन से ही कूट कूट कर भरी थी। प्लेग महामारी के कारण इनकी माता जी का देहांत हो गया ओर चापेकर बंधुओं ने रैड नामक अंग्रेज की हत्या कर दी। इस कारण अंग्रेजी सरकार ने उनको फांसी दे दी और चापेकर बंधु भारत माता की स्वतंत्रता के लिए सदा-सदा के लिए सो गए,लेकिन कांति और बलिदान की जो बीज उन्होंने बोया, उसकी फसल लहलहाने को तैयार थी।

तब नन्हे सावरकर ने अपनी कुल देवी के समक्ष प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं अपने देश से अंग्रेजो को बाहर नही निकालूंगा चैन से नही बैठूंगा। अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वे कभी भी शांति से नहीं बैठे और आजीवन संघर्षरत रहे। यहां तक कि देश को स्वतंत्रता निलने के बाद भी वे देश के भविष्य के लिए चिंतित और सक्रिय रहे।

कॉलेज में अध्ययन करते समय  महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी के आशीर्वाद से इन्होने  सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। इंडिया हाउस लंदन के संस्थापक श्याम जी कृष्ण वर्मा जी  द्वारा दी गईं छात्रवृत्ति से ये लंदन  बैरिस्टरी पढ़ने गए। लंदन में इंडिया हाउस में रहने के दौरान उन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर स्वतंत्रता की लड़ाई को धार देने का काम किया। उन्होंने अलग-अलग प्रांतों से आए लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की लौ जलाने का काम किया।
उसके बाद वीर सावरकर ने स्वतंत्र भारत के उद्देश्य से स्वतंत्र भारत का ध्वज बनाया, जिसे मदाम कामा और सरदार सिंह राणा साहब के साथ प्रथम बार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर फहराया गया। इसी बीच इनके मित्र मदनलाल धींगरा ने कर्जन वायली की हत्या कर दी। बदले में  अंग्रेजो ने उनको फांसी दे दी। लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई की लौ किसी न किसी रूप में जलती रही। इस बीच सावरकर ने मेजिनी और 1857 की स्वतंत्रता संग्राम पर कालजयी किताब लिखी।

वीर सावरकर से परेशान और डरे अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया और अंडमान काला पानी भेज दिया। वहां इनको और अन्य क्रांतिकारियो को अमानवीय यातनाएं दी गईं।यही नहीं,सावरकर से घबराए अंग्रेजों ने उन्हें दो जन्म यानी पचास वर्ष का कारावास सुनाया।

अंडमान से छोड़े जाने के बाद वीर सावकर को पहले पुणे के येरवडा जेल में रखा गया। उसके बाद भी अंग्रेजों का उनसे डर कम नहीं हुआ और वहां से मुक्तता के बाद भारत माता के इस वीर पुत्र को  रत्नागिरी में स्थानबद्ध कर दिया गया। यहां भी वे चैन से नहीं बैठे और  हिंदुत्व पर पुस्तक लिखी। यहां उनसे गांधी जी, भगतसिंह, शौकत अली, सुभाष बाबु और अन्य क्रांतिकारी उनसे मिलने आते थे। इस तरह वे अंग्रेजों की नजरों के सामने रहकर भी देशभक्तों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने रहे।

साहस की प्रतिमा ,सागर जैसा विशाल त्याग की प्रतिमूर्ति वीर सावरकर आज देश के 1 सौ 40 करोड़ लोगों की प्रेरणा हैं। , देश की स्वाधीनता के लिए जो त्याग, तपस्या उन्होंने की, वन्देमातरम जैसे महाशस्त्र के साथ महान दाधीच की तरह अपना सर्वस्व दान किया, उसके लिए यह देश हमेशा उनका कर्जदार रहेगा। ऐसे महावीर क्रांतिवीर देशभक्तों का सहर्ष स्वागत स्वर्ग के देवी-देवता भी करते हैं।

“हां मैं सावरकर हूं”
जब मैं छोटा था तो अपने माता-पिता के साथ अंडमान पोर्टब्लेयर गया था। मुझे याद है, जब हम सेल्यूलर जेल गए और वहां सावरकर जी की कोठरी देखी तो मेरे पिताजी की आंखो में आसू आ गए। मैंने जब अपने पिता को देखा तो मेरी भी आंख भर आई। तब माताजी ने हमें पानी दिया पीने को दिया। फिर पिताजी ने वीर सावरक की पूरे संघर्ष, समर्पण और त्याग की  पूरी गाथा सुनाई। इससे पहले मैंने इस महान सपूत के बारे में पढ़ा और सुना तो था, पर वहां जाकर देखा तो ना जाने क्यों मुझे लगा कि स्वतंत्रता की हमने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है और आज मैं स्वतंत्र देश में उसी जगह पर खड़ा हूं, जहा पर क्रांतिकारियों और देशभक्तों ने स्वाधीनती के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। मेरे पिताजी ने मुझे स्वतंत्रता के मतवालों की कहानी सुनाई , तब से आज तक मैं यही सोचता हूं कि काश, मैं भी उस सावरकर युग में होता!
इन्ही बातों से प्रेरणा लेकर हमने नाटक “हां मैं सावरकर हूं”,  का मंचन शुरू किया है। मैं चाहता हूं कि आज के युवा इस नाटक को देखें और समझें, ताकि वे जान सकें, कि देश की स्वतंत्रता के लिए हमारे क्रांतिवीरों ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है।
ताकि वे अपने देश को प्राण पन से भी से भी अधिक प्यार कर सकें।
कोटिश प्रणाम
कोटिश नमन
कोटिश वंदन
कोटिश अभिनंदन
कोटिश वन्देमातरम
मैं भी गर्व के साथ कह सकता हूं कि
” हां मैं सावरकर हूं  ”
” हां मैं सावरकर हूं ”
” हां मैं सावरकर हूं “

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