Budget 2024: अंतरिम बजट को लेकर क्या कहते हैं अर्थशास्त्री? जानिये इस खबर में

भारतीय अर्थव्यवस्था न केवल अन्य बड़े देशों से तेज गति से बढ़ रही है, बल्कि सरकार के खजाने में राजस्व संग्रह में भी तेज वृद्धि देखी जा रही है।

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Budget 2024। केंद्र सरकार(Central government) एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश करेगी। इसे लेकर बिहार इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी(Bihar Institute of Public Finance and Policy) के अर्थशास्त्री सह सहायक प्रोफेसर डॉ सुधांशु कुमार(Economist cum Assistant Professor Dr. Sudhanshu Kumar) ने कहा कि वर्ष 2024 में प्रस्तुत होने वाले लेखानुदान बजट वैश्विक अस्थिरता की पृष्ठभूमि में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्साहवर्धक उपलब्धियों के बीच आना है।

तेजी से बढ़ रही है अर्थव्यवस्था
अर्थशास्त्री सुधांशु ने खास बातचीत में कहा कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था न केवल अन्य बड़े देशों से तेज गति से बढ़ रही है, बल्कि सरकार के खजाने में राजस्व संग्रह में भी तेज वृद्धि देखी जा रही है। साथ ही एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के नेतृत्व के कारण चुनावी वर्ष होने के बावजूद भी बजट के माध्यम से चुनावी वर्ष में अत्यधिक लोक-लुभावन प्रयास करने का कोई अतिरिक्त दबाव भी वित्त मंत्री के ऊपर नहीं है।

दूरगामी सोच की एक रूपरेखा की झलक
डॉ सुधांशु ने कहा कि ऐसे में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद जुलाई में पेश किये जाने वाले पूर्ण बजट की एक वृहत रूपरेखा भी इस अंतरिम बजट में दिख सकती है। लोकप्रियता के पैमाने पर इस अंतरिम बजट का जोर प्रधानमंत्री द्वारा उल्लेखित चार जातियों- युवाओं, महिलाओं, किसानों और गरीबों- को देश के आर्थिक विकास का अभिन्न अंग बनाने पर रह सकता है। इस तरह समावेशी विकास को इंगित करने वाली दूरगामी सोच की एक रूपरेखा की झलक बजट में दिख सकती है।

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बड़े आर्थिक लक्ष्य के लिए कदम
डॉ सुधांशु कुमार ने कहा कि चुनाव की निकटता को देखते हुए इस अंतरिम बजट में बड़े नीतिगत बदलाव होने की संभावना तो नहीं है फिर भी अंतरिम बजट की घोषणाओं के माध्यम से आर्थिक विकास को तेज गति से बढ़ाने के लिए नीतिगत निरंतरता का संकेत देने की उम्मीद है। ऐसा भारतीय अर्थव्यवस्था को 2027-28 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य की ओर ले जाने के लिए आवश्यक है। इस लक्ष्य का आधार पिछले दशक में देश की आर्थिक बुनियाद मजबूत करने के लिए हुए कई संरचनात्मक सुधार को माना जा सकता है।

इसके तहत देशभर में आधारभूत संरचना के विकास पर तेजी से काम हुआ और नीतिगत स्तर पर भी कर प्रणाली में सुधार सहित कई ऐसे कदम उठाये गए हैं, जिससे देश में आर्थिक गतिविधियों को सहूलियत मिल सके। इन सुधारों के परिणामस्वरूप भारत जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। वर्तमान में उपलब्ध अनुमान के अनुसार, पिछले दो वर्षों में 9.1 प्रतिशत (वित्त वर्ष 22) और 7.2 प्रतिशत (वित्त वर्ष 23) से बढ़ने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वित्तीय वर्ष में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।

राज्यों की अपेक्षाएं
डॉ सुधांशु ने कहा कि भारत विश्व के बड़े देशों के बीच सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। 2027-28 तक भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए आर्थिक गतिविधियों में प्रभाव डालने वाले प्रत्येक भागीदार को समन्वय और सहयोग करने की आवश्यकता है, जिसमें राज्य सरकारों के स्तर पर भी सजग पहल की आवश्यकता है। संघीय ढांचे के तहत देश के आर्थिक विकास के बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में केंद्र के साथ राज्य सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है। देश में केंद्र और राज्य सरकारों को मिलाकर होने वाले कुल खर्चों का लगभग 60 प्रतिशत खर्च राज्यों के माध्यम से ही होता है। अतः केंद्रीय बजट में होने वाले निर्णयों को राज्यों के नजरिये से भी देखने की जरूरत है।

ऐसे में राज्य सरकारों के व्यय और उनकी गुणवत्ता देश की अर्थव्यवस्था के समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। केंद्रीय बजट का राज्यों के हित पर बड़ा प्रभाव होता है। क्योंकि, केंद्र के राजस्व संग्रह और व्यय अर्थात केंद्र सरकार की राजकोषीय स्थिति से राज्यों के राजस्व और व्यय की वास्तविक दिशा प्रभावित होती रही है। ऐसा कम विकसित और सीमित संसाधनों वाले राज्यों में अधिक रहता है। ऐसे में राज्यों को पूंजीगत व्यय बढ़ने के लिए यदि और सहायता दी जाती है तो इसका लाभ पूरी अर्थव्यवस्था को होगा।

बुनियादी ढांचे के निर्माण की पहल
डॉ सुधांशु ने कहा कि इस विकास यात्रा में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र का कुल पूंजी निवेश वित्त वर्ष 2014-15 के 5.6 लाख करोड़ रुपये से 3.3 गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 18.6 लाख करोड़ रुपये करने की बड़ी भूमिका रही है। ऐसे में उम्मीद है की वित्तमंत्री वर्तमान में उपलब्ध अतिरिक्त राजकोषीय दायरे का उपयोग सरकार के पूंजीगत व्यय को बढ़ाने की रणनीति को जारी रखने के लिए कर सकती हैं।

यहां यह भी उल्लेखनीय है की विभिन्न राज्य सरकारों ने पूंजीगत व्यय के लिए केंद्र द्वारा उधार के रूप में उपलब्ध अतिरिक्त राशि का प्रयोग इस मद में तो किया है लेकिन अपने राजकोषीय संसाधनों का उपयोग इससे अलग सरकारों खर्चों में ही किया है। ऐसे में देश में पूंजीगत व्यय को बढ़ाने की जिम्मेवारी अधिकांशतः केंद्र सरकार के ऊपर ही रहेगी है।

आगे की रूपरेखा
डॉ सुधांशु ने कहा कि आर्थिक विकास पर वर्तमान सरकार के नीतिगत प्रयास राजकोषीय जिम्मेदारी की सीमा के भीतर रहते हुए पूंजीगत व्यय को लगातार बढ़ाकर आधारभूत संरचना विकसित करने पर रह सकती है। जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए स्वच्छ-ऊर्जा क्षमता को विकसित करने पर भी ध्यान रखे जाने की उम्मीद है। इसकी झलक हाल ही में घोषित प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना में भी दिखती है।

पिछले कई वर्षों के बजट से एक स्वरूप जो उभर कर सामने आ रही है उससे यह कहा जा सकता है कि एक मजबूत और स्थायी सरकार होने के कारण लोक लुभावन खर्चों और घोषणाओं के बजाए दीर्घकालीन विकास के लिए जरूरी आधारभूत संरचना निर्माण और आर्थिक गतिविधियों को सहूलियत देने वाले नीतिगत प्रयास की मंशा इस अंतरिम बजट में भी दिखेगी।

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