Mumbai: महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी (Maharashtra State Hindi Sahitya Academy) और के.सी. कॉलेज (K. C. College) हिंदी-विभाग की ओर से ‘पत्रकारिता के सांस्कृतिक संदर्भ’ (Cultural context of journalism) पर राष्ट्रीय संगोष्ठी (national seminar) का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पूर्व राज्यमंत्री अमरजीत मिश्र ने पत्रकारिता की संस्कृति और सांस्कृतिक संदर्भ की पत्रकारिता पर सटीक टिप्पणी करते हुए कहा कि आज की पत्रकारिता में राष्ट्र धर्म का स्वर मुखरित हो रहा है। सत्र की अध्यक्ष तथा एचएसएनसी विश्वविद्यालय की कुलगुरु हेमलता बागला ने हिंदी विभाग के.सी. कॉलेज की संस्कृति का उल्लेख करते हुए ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया।
विशेष अतिथि मोहन बने ने छाया पत्रकारों की मुश्किलें उद्घाटित करते हुए कहा कि फोटो पत्रकार सच को उसी रूप में प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है। संगोष्ठी का बीज वक्तव्य देते हुए महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष प्रो. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि पत्रकारिता को अपनी पसंद से मुक्त होकर राष्ट्रीय गौरव को महत्व देना चाहिए। प्राचार्या डॉ. तेजश्री शानभाग ने स्वागत भाषण दिया। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजय सिंह ने कहा कि पत्रकारिता राष्ट्रीय सांस्कृतिक संदर्भों से जुड़कर अपनी जड़ों की मजबूती प्रदान करती है। सुबह 9 से शाम 5 बजे तक चार सत्रों में इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई।
गौरवशाली इतिहास पर डाला प्रकाश
प्रथम सत्र में बतौर मुख्य अतिथि नवभारत टाइम्स मुंबई के पूर्व संपादक शचीन्द्र त्रिपाठी ने अयोध्या में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या सहित पूरे उत्तर प्रदेश में संभावित विकास के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। विषय विशेषज्ञ के रूप में संबोधन देते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रसाद काथे ने कहा कि अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहाने में किसी भूमिका का निर्वाह न करने वाले भी जोर -जोर से कहने लगे कि घटना में उनका भी हाथ था। यह ऐसा झूठ है, जिसे बार-बार बोलकर सच का जामा पहनाया गया है। उन्होंने एक ही तरह की घटनाओं में राजनीति के तहत भेद करने के कई उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि ‘कर सेवा’ को ‘कार सेवा’ जैसा शब्द देना अंग्रेजी पत्रकारिता और मानसिकता की उपज है। अध्यक्षता के.जे. सोमैया विश्वविद्यालय के पूर्व उपप्राचार्य सतीश पांडेय ने की। जीतेंद्र दीक्षित ने मुंबई को बेहद संवेदनशील बताया, जहाँ देश- विदेश की घटनाओं की प्रतिक्रिया सबसे अधिक देखी जाती है। विविध भारती के वरिष्ठ उद्घोषक यूनुस खान ने भारत के सांस्कृतिक संदर्भ में रेडियो के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला। राकेश त्रिवेदी ने अनुभवों के बदलते स्वरूप पर पत्रकारिता की दृष्टि से प्रकाश डाला।
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वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारतीय इतिहास में किए गए दुष्प्रचार
दूसरे सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार विमल मिश्र ने की, मुख्य अतिथि ‘हिंदुस्थान पोस्ट’ के संपादक स्वप्निल सावरकर थे। सावरकर ने पत्रकारिता के संदर्भ को बदलने की जरूरत पर जोर देते हुए वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारतीय इतिहास में किए गए दुष्प्रचार पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे वामपंथियों ने देवर्षि नारद मुनि की छवि को नकारात्मक रंग दिया। खोजी पत्रकारिता पर बात करते उन्होंने स्वातंत्र्यवीर सावरकर की पत्रकारिता का उदाहरण दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे महान स्वतंत्रता सेनानी मदन लाल ढींगरा के केस में साजिश के तहत दबाई गयी उनकी दया याचिका का पर्दाफाश वीर सावरकर ने किया था। योगायतन ग्रुप के प्रबंध निदेशक डॉ. अमेय प्रताप सिंह ने अपनी शोध परक पुस्तक ‘रामायण का वैश्विक इतिहास’ पर प्रकाश डालते हुए कई मुस्लिम देशों सहित अन्य धर्मावलंबी देशों में भी रामायण की विभिन्न रूपों में लोकप्रियता के बारे में शोधपरक और रोचक जानकारी दी। वरिष्ठ फिल्म पत्रकार पराग छापेकर ने हिंदी फिल्म उद्योग को सांस्कृतिक विस्तार का सबसे बड़ा माध्यम बताया। सत्र को एमएमपी शाह कॉलेज की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष उषा मिश्रा ने भी संबोधित किया।
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प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. शीतला दुबे ने सेमिनार के विषय की प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उपप्राचार्य स्मरजीत पाधी ने संगोष्ठी के सफल आयोजन पर सभी को बधाई दी। अजीत कुमार के संयोजन में आयोजित इस संगोष्ठी के विविध सत्रों का संचालन डॉ. उषा दुबे, डॉ. सुधीर कुमार चौबे, रचना हिरण एवं रेणु शर्मा ने तथा आभार ज्ञापन भाग्यश्री कच्छारा ने किया। संगोष्ठी को सैकड़ों पत्रकार, हिंदी प्रेमी एवं विद्यार्थियों की उपस्थिति ने सफल बनाया।