Uttar Pradesh: जानिये, प्रदेश की कौन-सी सीट है नंबर-1 और कौन बनेगा नंबर-1?

इस बार बदले हुए सियासी हालात में बसपा के लिए 2019 के चुनाव नतीजे को दोहराना आसान नहीं दिख रहा है। दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे 2019 में बसपा ये सीट जीतने में सफल रही थी।

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Uttar Pradesh: गंगा-यमुना(Ganga-Yamuna) के दोआब पर बसा जनपद सहारनपुर(Saharanpur) उत्तर प्रदेश की राजनीति में खास अहमियत रखता है। प्रदेश की पहली लोकसभा सीट सहारनपुर(Saharanpur, the first Lok Sabha seat of the state) है। आजादी के बाद से सहारनपुर सीट ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। किसी जमाने में इस सीट पर कांग्रेस का राज(Congress rules the seat) हुआ करता था। कांग्रेस ने यहां से अंतिम बार 1984 के आम चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी यानी 40 साल पहले। 1996 से लेकर 2019 तक हुए कुल सात चुनाव में इस सीट पर तीन बार भाजपा, तीन बार बसपा और एक बार सपा जीती(BJP won thrice, BSP thrice and SP won once) है।

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने ये सीट जीती थी। भाजपा प्रत्याशी को 22 हजार वोटों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था। वहीं तीसरे नंबर पर कांग्रेस के इमरान मसूद थे। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में बसपा-सपा-रालोद का गठबंधन था।

2024 में गठबंधन की कैमिस्ट्री बदल गई
2024 के आम चुनाव में भाजपा, रालोद, सुभासपा, अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी का गठबंधन है। इंडिया गठबंधन में सपा-कांग्रेस शामिल हैं। बसपा किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। वो अकेले मैदान में है। गठबंधन की कैमिस्ट्री बदलने से जातीय समीकरण और वोट बैंक का गुणाभाग भी बदल गया है।

बसपा की जीत में अहम रहा सपा-बसपा-रालोद गठबंधन
पिछले चुनाव में बसपा-सपा-रालोद का गठबंधन था। इस गठबंधन ने बसपा की जीत में अहम भूमिका निभाई। इस बार गठबंधन की केमिस्ट्री बदल चुकी है। सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। सहारनपुर सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने 1984 में अंतिम बार ये सीट जीती थी। उसके बाद हर चुनाव में उसकी ताकत कम हुई है। सपा ने अपने संसदीय चुनाव के इतिहास में वर्ष 2004 में सिर्फ एक बार इस सीट को जीता है। कांग्रेस-सपा गठबंधन मुस्लिम-दलित वोटरों की ताकत से इस सीट को जीतने के मंसूबे पाले हैं।

विपक्ष ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर लगाया दांव
2019 के चुनाव में बसपा ने हाजी हाजी फजुर्लरहमान और कांग्रेस ने इमरान मसूद पर दांव लगाया था। भाजपा ने राघव लखनपाल को मैदान में उतारा था। इस बार प्रत्याशियों के चयन और समीकरण पिछले चुनाव जैसा ही है। इस बार भी भाजपा प्रत्याशी के सामने मुस्लिम प्रत्याशी हैं।

कांग्रेस ने इमरान मसूद को और बसपा ने इस बार हाजी फजुर्लरहमान का टिकट काटकर माजिद अली पर दांव लगाया है। भाजपा ने राघव लखनपाल पर दोबारा भरोसा जताया है। जानकारों के मुताबिक, सहारनपुर में मुकाबला त्रिकोणीय है। अगर बसपा मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में कर लेती है तो कांग्रेस का खेल बिगड़ जाएगा। इस स्थिति में भाजपा प्रत्याशी को बढ़त मिल सकती है। हालांकि भाजपा के जीत के लिए बसपा के दलित वोटरों का अपनी ओर लाना बड़ी चुनौती होगा।

भाजपा ने तीन बार जीती सहारनपुर संसदीय सीट
भाजपा ने 1996, 1998 और 2014 में इस सीट पर कमल खिलाया है। भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल 2014 में पहली बार जीतकर संसद पहुंचे थे। 2014 में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद को 60,000 से ज्यादा वोटों से पटकनी दी थी। हालांकि 2019 में वह बसपा के हाजी फजलुर्रहमान से करीब 22 हजार मतों से हार गए थे। लेकिन, अब तीसरी दफा एक बार फिर भाजपा ने उन पर भरोसा जताया है। राघव तीन बार विधायक भी रह चुके हैं।

कांग्रेस ने 40 साल पहले यहांदर्ज की थी जीत
इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। 1984 के चुनाव के बाद से कांग्रेस इस सीट को जीत नहीं पाई है। 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी यशपाल सिंह ने लोकदल के रशीद मसूद को हराया था। कांग्रेस को 277339 और लोकदल को 204730 वोट मिले थे। 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी यशपाल सिंह दूसरे स्थान पर रहे। 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के चौधरी यशपाल सिंह तीसरा स्थान हासिल कर सके। 1996 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी असलम खान चौथे स्थान पा रहे। 1998 और 1999 के आम चुनाव में कांग्रेस ने यहां से प्रत्याशी नहीं उतारा। 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के ताराचंद शास्त्री को मात्र 51067 वोट मिले और वे दौड़ में चौथे रहे। 2009 के चुनाव में कांग्रेस के गजे सिंह चौथे स्थान पर रहे। कांग्रेस प्रत्याशी को मात्र 62593 वोट मिले।

2014 में भाजपा के राघव लखनपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को 65 हजार मतों के अंतर से हराया था। भाजपा को 472999 और कांग्रेस को 407909 वोट मिले। वहीं बसपा के जगदीश राणा को 235033 मत मिले, वे तीसरे स्थान पर रहे। सपा प्रत्याशी शाहजहां मसूद 52765 वोट पाकर चौथे रहे। 2019 चुनाव बसपा प्रत्याशी फजुर्लरहमान ने 5,14,139 वोट पाकर जीता। भाजपा के राघव लखनपाल 4,91,722 मत हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को 207068 वोट मिले और वे तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था। और गठबंधन में ये सीट बसपा के खाते में आई थी।

बसपा के हाथी की बदलती रही चाल
बसपा 1989 में पहली बार संसदीय चुनाव के अखाड़े में उतरी थी। इस चुनाव में सहारनपुर सीट पर बसपा तीसरे स्थान पर रही थी। 1991, 1996, 1998 के आम चुनाव में सहारनपुर सीट पर बसपा क्रमश: चौथे, तीसरे और दूसरे स्थान पर रही। 1999 में पहली बार बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खां ने यहां जीत दर्ज की। 2004 में बसपा इस सीट पर दूसरे स्थान पर रही। 2009 के आम चुनाव में बसपा के जगदीश राणा ने जीत का परचम फहराया। 2014 में बसपा के जगदीश सिंह राणा तीसरे स्थान पर रहे। ये चुनाव भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल ने जीता। 2019 में बसपा प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान ने जीत हासिल की।

सहारनपुर में सपा सिर्फ एक बार जीती
1996 में पहली बार संसदीय चुनाव समाजवादी पार्टी ने लड़ा। इस चुनाव में सहारनपुर सीट पर वो दूसरे स्थान पर रही। ये चुनाव भाजपा के नकली सिंह ने जीता था। 1998 के चुनाव में सपा चौथे, 1999 में मोहम्मद इरशाद पांचवें स्थान पर रहे। 2004 के आम चुनाव में पहली बार सपा का इस सीट पर जीत हासिल हुई। सपा प्रत्याशी रशीद मसूद ने बसपा प्रत्याशी मंसूर अली खां को हराया था। 2009 के चुनाव में सपा यहां तीसरे और 2014 में चौथे स्थान पर ही। 2019 के सपा-बसपा का गठबंधन था,और ये सीट बसपा के खाते में आई थी।

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सहारनपुर सीट के समीकरण
मुस्लिम बाहुल्य वाली इस सीट पर करीब छह लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा तीन लाख एससी, डेढ़ लाख गुर्जर, साढ़े तीन लाख सवर्ण के अलावा भी कई जातियों के वोटर यहां रहते हैं। इस सीट पर दलित फैक्टर भी मायने रखता है और उन पर बहुजन समाज पार्टी की पकड़ मानी जाती है। गुर्जर-सैनी जैसी जातियां भी निर्णायक भूमिका निभा जाती हैं।

पांच विधानसभा सीटों में तीन पर भाजपा विधायक
सहारनपुर लोकसभा के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में तीन पर भाजपा और दो सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की। भाजपा के हिस्से में सहारनपुर नगर, देवबंद और रामपुर विधानसभा सीट आई, जबकि सहारनपुर देहात और बेहट विधानसभा सपा के हिस्से में आई।

बिखरा विपक्ष से कमल की राह आसान
इस बार बदले हुए सियासी हालात में बसपा के लिए 2019 के चुनाव नतीजे को दोहराना आसान नहीं दिख रहा है। दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे 2019 में बसपा ये सीट जीतने में सफल रही थी। मायावती इस बार अकेले चुनाव लड़ रही हैं, जिसके चलते चुनौती भी बहुत ज्यादा है। सपा लगातार बसपा को भाजपा की बी-टीम बताने में जुटी है ताकि मुस्लिम वोट न जुड़ सके। सहारनपुर सीट पर कांग्रेस के लिए खाता खोलने की चुनौती है। सपा का कोर वोट बैंक यादव पश्चिमी यूपी में नहीं है, जिसके चलते सारा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर टिका है। ऐसे में कांग्रेस को काफी हद तक अपने बलबूते ही ये लड़ाई लड़नी होगी। सही मायनो में विपक्ष बिखरा हुआ है। जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। जानकारों के अनुसार, भाजपा अपने कोर वोट बैंक के अलावा अगर बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगा पाई तो बाजी उसके हाथ रह सकती है।

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