Lok Sabha Elections 2024: श्रीरामपुर सीट पर कल्याण बनर्जी और उनके दामाद कबीर शंकर बोस से सीधी टक्कर

वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी विवादित बयान और अजीबोगरीब बर्ताव को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में वे राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री कर आलोचनाओं में घिर गए थे।

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Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के ऐलान के बाद पश्चिम बंगाल (West Bengal) में राजनीतिक दलों (Political parties) के बीच सियासी दंगल शुरू हो चुका है। कई सीटों पर लड़ाई दिलचस्प होने वाली है जिसमें हुगली जिले की श्रीरामपुर लोकसभा (Shrirampur Lok Sabha) सीट भी है। इसकी वजह है कि यहां से मौजूदा सांसद तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के कल्याण बनर्जी (Kalyan Banerjee) हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी विवादित बयान और अजीबोगरीब बर्ताव को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में वे राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री कर आलोचनाओं में घिर गए थे। तृणमूल कांग्रेस ने इसबार भी श्रीरामपुर से उन्हें ही उम्मीदवार बनाया है।

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कौन हैं कबीर शंकर बोस?
दूसरी ओर भाजपा ने उनके खिलाफ कबीर शंकर बोस को मैदान में उतारा है जो पार्टी के जुझारू नेताओं में से एक हैं। दिलचस्प बात ये है कि कबीर शंकर बोस, कल्याण बनर्जी के पूर्व दामाद हैं। उनकी बेटी से कबीर शंकर बोस की शादी हुई थी लेकिन अब दोनों में तलाक हो चुका है। गत रविवार को भाजपा ने 111 उम्मीदवारों की सूची जारी की जिसमें श्रीरामपुर से कबीर शंकर बोस का नाम था। फिलहाल वाम दलों और कांग्रेस की ओर से इस सीट पर उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया गया है लेकिन यह तय है कि लड़ाई यहां सीधे तौर पर तृणमूल और भाजपा की ही होने वाली है। कल्याण बनर्जी और कबीर शंकर बोस के बीच रिश्ते हमेशा तल्ख रहे हैं। कल्याण उन्हें फूटी आंखों से भी नहीं देख सकते। अब जबकि वह भाजपा के उम्मीदवार हैं तो लड़ाई कांटे की होने वाली है। कबीर शंकर बोस भी कल्याण बनर्जी की तरह धाकड़ अधिवक्ता भी हैं।

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क्या है भौगोलिक स्थिति
श्रीरामपुर पश्चिम बंगाल का महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र है। इस सीट पर कांग्रेस का भी सांसद रहा है, सीपीआई का भी लेकिन यह संसदीय क्षेत्र उन क्षेत्रों में शामिल है जहां तृणमूल कांग्रेस ने बहुत जल्द ही पकड़ बना ली थी। श्रीरामपुर संसदीय क्षेत्र का पूरा इलाका हावड़ा और हुगली जिले के तहत आता है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 24 लाख 20 हजार 557 है। इसमें 24.34 फीसदी आबादी ग्रामीण और 75.66 फीसदी शहरी है। यहां अनुसूचित जाति और जनजाति का रेश्यो 14.43 और 0.9 पर्सेंट है। 2017 की वोटर लिस्ट के मुताबिक यहां मतादाताओं की संख्या 17 लाख 25 हजार 419 है।

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क्या है राजनीतिक इतिहास?
यह ऐसा क्षेत्र है जहां ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की धमक सबसे पहले दिखाई देने लगी थी। 2004 में तृणमूल कांग्रेस यहां से दूसरे नंबर पर रही थी। 2009 में तृणमूल कांग्रेस ने सीपीएम से यह सीट छीन ली थी और कल्याण बनर्जी सांसद चुने गए थे। चुनाव में 11 उम्मीदवार मैदान में थे। तृणमूल कांग्रेस की ओर से कल्याण बनर्जी, माकपा से तीर्थंकर रे, भाजपा से देवजीत सरकार, कांग्रेस से देबब्रत बिस्वास, बहुजन समाज पार्टी से लक्ष्मण रजक, इंडियन यूनिटी सेंटर से काशीनाथ मूर्मू, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) से प्रद्युत चौधरी और राष्ट्रीय जनाधिकार सुरक्षा पार्टी से प्रभाष चंद्र उम्मीदवार थे। इसके अलावा तीन प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव में उतरे थे। तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी छह लाख 37 हजार 707 वोट मिले। भाजपा के देवजीत सरकार को पांच लाख 39 हजार 171 वोट मिले। सीपीआई (एम) के तीर्थंकर रे को एक लाख 52 हजार 281 वोट मिले थे।

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