गीता प्रेस गोरखपुर के अध्यक्ष और सनातन धर्म की लोकप्रिय पत्रिका कल्याण के संपादक राधेश्याम खेमका का निधन हो गया। 3 अप्रैल को केदारनाथ स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 87 वर्ष के थे। उनके निधन से हिंदी के साथ ही सनातन धर्म ने एक महान ज्ञाता और संत खो दिया है। उनके परिवार में पुत्र राजाराम खेमका, पुत्री राज राजेश्वरी देवी चोखानी, भतीजे गोपाल राय खेमका, कृष्ण कुमार खेमका, गणेश खेमका और नाती तथा पोता-पोती हैं।
15 दिनोें से थे अस्वस्थ
राधेश्याम खेमका के परिजनों से मिली जानकारी के अनुसार वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। इस कारण उन्हें रवींद्रपुरी स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दो दिन पहले उन्हे केदार घाट स्थित उनके आवास पर लाया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट पर किया गया। उनके इकलौते पुत्र राजा राम खेमका ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनके निधन पर देश ही नहीं विदेशों में भी शोक की लहर है। उन्हें हर क्षेत्र के लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी है।
गीता प्रेस के अध्यक्ष और सनातन साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने वाले राधेश्याम खेमका जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। खेमका जी जीवनपर्यंत विभिन्न सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!
— Narendra Modi (@narendramodi) April 4, 2021
ये भी पढ़ेंः फेसबुक पर फिर सुरक्षा में सेंध! कैसे, जानने के लिए पढ़ें ये खबर
40 वर्षों तक गीता प्रेस में अपनी भूमका का निर्वाह किया
पूरी जिंदगी हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए काम करते रहने वाले राधेश्याम खेमका ने 40 वर्षों तक गीता प्रेस में अपनी भूमका का निर्वाह किया। इस बीच उन्होंने अनेक धार्मिक पत्रिकाओं का संपादन किया। उनमें कल्याण काफी महत्वपूर्ण है। मितभाषी तथा सनातन धर्म में मन तथा हृदय की गहराई से आस्था रखनेवाले खेमका के पिता सीताराम खेमका मूल रुप से बिहार के मुंगेर के रहनेवाले थे। दो पीढ़ियों से खेमका परिवार काशी में रह रहा था।
अपूरणीय क्षति
राधेश्याम खेमका वाराणसी की प्रसिद्ध संस्थाओं मारवाड़ी सेवा संघ, मुमुछु भवन, श्रीराम लक्ष्मी मारवाड़ी अस्पताल गोदोलिया, बिड़ला अस्पताल मछेदारी, काशी गोशाला ट्र्स्ट आदि से जुड़े रहे। उनका निधन हिंदी और सनातन धर्म के लिए अपूरणीय क्षति है।