Lok Sabha Elections 2024: कांग्रेस ने गोरखा नेता को छह साल के लिए पार्टी को निकला, जानें क्यों?

इससे पहले 18 दिसंबर को कांग्रेस ने बिनॉय तमांग को अपना महासचिव नियुक्त किया था और उन्हें दार्जिलिंग हिल्स में पार्टी के संगठन की जिम्मेदारी दी थी।

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Lok Sabha Elections 2024: मौजूदा लोकसभा चुनावों (Lok Sabha elections) के बीच, कांग्रेस ने 23 अप्रैल (मंगलवार) को अपनी पश्चिम बंगाल (West Bengal) इकाई के महासचिव बिनॉय तमांग (Binoy Tamang) को “पार्टी विरोधी गतिविधियों” (anti party activities) के लिए छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। यह गोरखा नेता द्वारा भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) (भाजपा) के दार्जिलिंग लोकसभा सीट (Darjeeling Lok Sabha seat) के उम्मीदवार राजू बिस्ता (Raju Bista) को समर्थन देने के कुछ घंटों बाद आया।

कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक मनोज चक्रवर्ती ने एक आधिकारिक अधिसूचना में कहा, “बिनॉय तमांग को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। उनका निष्कासन तुरंत प्रभावी होगा।”

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सबसे पुरानी पार्टी की हार
समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए तमांग ने कहा कि कांग्रेस से उनका निष्कासन “गोरखाओं की जीत” है और उन्हें इससे ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्होंने कहा, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता… कांग्रेस से मेरा निष्कासन गोरखाओं की जीत और सबसे पुरानी पार्टी की हार है।” इससे पहले दिन में, तमांग ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा केंद्र में सत्ता में रहेगी और पहाड़ी लोगों से बिस्टा को वोट देने का आग्रह किया।

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तमांग कांग्रेस में कब हुए थे शामिल?
इससे पहले 18 दिसंबर को कांग्रेस ने बिनॉय तमांग को अपना महासचिव नियुक्त किया था और उन्हें दार्जिलिंग हिल्स में पार्टी के संगठन की जिम्मेदारी दी थी। तमांग, जो पहले सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में थे, नवंबर 2023 में कांग्रेस में शामिल हो गए।

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कौन हैं बिनॉय तमांग?
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा राजनीतिक दल के पूर्व नेता बिनॉय तमांग की राजनीतिक यात्रा काफी गतिशील रही है। वह शुरुआत में 2021 में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन 2022 में अलग हो गए। इसके बाद, 2023 में, उन्होंने खुद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबद्ध कर लिया और पार्टी के भीतर राज्य महासचिव के पद तक पहुंचे। दार्जिलिंग के रहने वाले तमांग के प्रारंभिक वर्ष इस क्षेत्र में उनके पालन-पोषण से प्रभावित हुए, जहां वे प्रसिद्ध गोरखाओं की कहानियों से गहराई से प्रेरित थे और उनकी उन्नति में योगदान देने की आकांक्षा रखते थे। 1986 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के साथ उनकी भागीदारी एक महत्वपूर्ण क्षण थी, जिसने उन्हें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के भीतर नेतृत्व की भूमिका के लिए प्रेरित किया।

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