Lok Sabha Election: महाराष्ट्र के इन नेताओं का दिल्ली में दबदबा!

महाराष्ट्र देश की राजनीतिक और आर्थिक दशा तथा दिशा तय करता है। हमेशा की तरह वर्तमान में भी प्रदेश के नेता दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

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– नरेश वत्स

लोकसभा 2024 (Lok Sabha 2024) के चुनाव में भाजपा (BJP) तीसरी बार सत्ता पाने के लिए जोर लगा रही है। इसके लिए प्रयासरत नेताओं में महाराष्ट्र (Maharashtra) के एक चमकते चेहरे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े (National General Secretary Vinod Tawde) की अहम भूमिका है। विनोद तावड़े ने अपने रणनीतिक कौशल से बिहार में एनडीए गठबंधन (NDA Alliance) को पटरी पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस प्रदेश के चुनाव प्रभारी विनोद तावड़े की दूसरी पार्टियों से नेताओं को बीजेपी में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

महाराष्ट्र देश की राजनीतिक और आर्थिक दशा तथा दिशा तय करता है। हमेशा की तरह वर्तमान में भी प्रदेश के नेता दिल्ली (Delhi) की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनमें कई नेताओं के साथ बीजेपी के महासचिव विनोद तावडे का नाम भी प्रमुखता से शामिल है। लोकसभा 2024 के चुनाव में भाजपा तीसरी बार सत्ता पाने के लिए जोर लगा रही है। इसके लिए प्रयासरत नेताओं में महाराष्ट्र के एक चमकते चेहरे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े की अहम भूमिका है। विनोद तावड़े ने अपने रणनीतिक कौशल से बिहार में एनडीए गठबंधन को पटरी पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस प्रदेश के चुनाव प्रभारी विनोद तावड़े की दूसरी पार्टियों से नेताओं को बीजेपी में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

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सब्र का फल मीठा होता है!
कहते हैं राजनीति में धैर्य की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिस्थितियों के अनुसार फैसला लेना आपको राजनीति में उच्च स्तर तक ले जाता है। अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विनोद तावड़े का टिकट काट दिया गया था। बीजेपी ने उनकी मुंबई के बोरीवली विधानसभा क्षेत्र से सुनील राणे को उम्मीदवार बना दिया था। तावड़े ने इसे पार्टी का निर्णय समझ कर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह विनोद तावड़े पर पूरा विश्वास करते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि लोकसभा 2024 के चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी की 195 उम्मीदवारों की पहली सूची की घोषणा विनोद तावड़े ने की थी। साथ ही महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे को गृह मंत्री अमित शाह से मिलाने में उनकी प्रमुख भूमिका रही है।

40 साल से राजनीति में सक्रिय
विनोद तावड़े 40 सालों से महाराष्ट्र और देश की राजनीति में सक्रिय हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में एक कार्यकर्ता के रूप में की। 1999 में वह मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष बने। राष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो 2021 में उन्हें भाजपा का महासचिव बनाकर हरियाणा के प्रभारी के तौर पर जिम्मेदारी दी गई। लेकिन जब बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ा। तो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने विनोद तावड़े पर भरोसा जताते हुए उन्हें बिहार की जिम्मेदारी सौंपी। वह उनके विश्वास पर खरे भी उतरे।विनोद तावड़े ने अपने राजनीतिक कौशल से नीतीश कुमार को एक बार फिर भाजपा के साथ लाने में सफल हुए। विनोद तावड़े के बारे में खास बात यह रही कि उन्होंने संगठनात्मक जिम्मेदारी दिए जाने के बाद भी दिल्ली में सौंपे गए कार्यों को बखूबी निभाया। महाराष्ट्र से प्रमोद महाजन के बाद इस पद तक पहुंचने वाले वह पहले भाजपा नेता हैं।

खानदानी भाजपाई
देवेंद्र फडणवीस राजनीति में तपे हुए खिलाड़ी हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वसनीय माना जाता है। 90 के दशक में देवेंद्र फडणवीस ने राजनीति में प्रवेश किया। उनके पिता जनसंघ के नेता थे और उनकी चाची शोभा फडणवीस बीजेपी- शिवसेना के पहले कार्यकाल में सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रमुख कार्यालय है और देवेंद्र फडणवीस भी नागपुर से ही संबंध रखते हैं। ऐसे में संघ की राजनीति में भी उनका बड़ा दखल है। फडणवीस 1997 में नागपुर के मेयर बने थे। वह पहली बार 1999 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए।

ऐसा रहा है राजनीतिक सफर
देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की, तब पूरे विदर्भ और नागपुर में अकेले भाजपा नेता नितिन गडकरी ही थे। गडकरी के मार्गदर्शन में ही उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। फडणवीस ने बीजेपी के अंदरूनी समीकरण को भांपते हुए नितिन गडकरी के विरोधी गोपीनाथ मुंडे का हाथ थाम लिया था। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व देवेंद्र फडणवीस पर भरोसा करता है। पार्टी ने उन्हें केरल का प्रभारी बनाया है। उन्हें बिहार, गोवा चुनाव में भी अहम जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वर्ष 2014 में उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में एक सवाल का जवाब आज भी तलाशा जा रहा है कि आखिर फडणवीस मुख्यमंत्री रह चुके थे लेकिन वह उपमुख्यमंत्री बनने पर क्यों राजी हो गए? हालांकि उपमुख्यमंत्री बनकर भी वे महाराष्ट्र ही नहीं देश के कदावर नेता माने जाते हैं। भविष्य में वे महाराष्ट्र ही नहीं देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाएंगे।

चाचा पर भारी भतीजा
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की ताकत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब वे एनडीए के साथ आए तो महाराष्ट्र में पहले से मौजूद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ उनको भी उप मुख्यमंत्री बनाया गया। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार को चुनौती देकर उन्होंने 2 जुलाई 2023 को अपने साथियों के साथ महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार को समर्थन दिया।

अजीत पवार बेहद महत्वाकांक्षी नेता हैं। उनकी इसी महत्वाकांक्षा ने उन्हें महाराष्ट्र का ताकतवर नेता बना दिया है। 1982 में राजनीति में आने के बाद 1991 में बारामती लोकसभा सीट से वह चुनाव जीते। दादा 1991 से लेकर 2019 तक लगातार सात बार इस सीट से जीतते रहे हैं।

चाचा के नक्शे कदम पर भतीजा
अजीत पवार ने शरद पवार का स्टाइल राजनीति में अपनाया है। किसको कब छोड़ना है और कब पकड़ना है, यह बात वह बखूबी जानते हैं। 2 जुलाई 2023 में शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट और बीजेपी के साथ आने के बाद वे वर्तमान में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं। अजीत पवार दिसंबर 2019 से जून 2022 में शिवसेना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल रहे। वह 2019 में 3 दिन के लिए भाजपा के देवेंद्र फडणवीस सरकार में भी शामिल रहे। पृथ्वीराज चौहान सरकार में भी वह मंत्री रहे। अजीत पवार की बात को दिल्ली में काफी महत्व दिया जाता है।

विरासत में राजनीति
दिल्ली में अगर विपक्षी खेमे की बात की जाए तो महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की उत्तराधिकारी सुप्रिया सुले ही हैं। इंडी गठबंधन की बैठकों में सुप्रिया सुले भी शामिल होती रही हैं। सुप्रिया सुले ने 2006 में राजनीति में कदम रखा। उन्होंने राज्यसभा का सांसद बनकर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की।

राजनीति के चाणक्य
शरद पवार को राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। महाराष्ट्र में उनके समर्थक शरद पवार को साहेब कह कर बुलाते हैं। वे चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं और केंद्र में रक्षा कृषि जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय को संभाल चुके हैं। वर्तमान में एनसीपी शरद पवार पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी सुप्रिया सुले को सौंप दी है। शरद पवार 1 मई 1960 से सक्रिय राजनीति में हैं। शरद पवार के बारे में कहा जाता है कि वह सत्ता में हों या ना हों बहुमत में हों या ना हों, महाराष्ट्र की राजनीति में उनका बड़ा रोल रहता ही है।

बेबस बाघ
उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति के एक बड़े चेहरा हैं। लेकिन शिवसेना के टूटने के बाद उनको अपने आप को स्थापित करने में काफी जोर लगाना पड़ रहा है। शिवसेना का डीएनए हिंदुत्व का है। लेकिन कांग्रेस के साथ जाने के बाद उनको बार-बार इम्तिहान देना पड़ता है। कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके वे खुलकर हिंदुत्व की भूमिका नहीं अपना पा रहे हैं। वह दिवंगत हिंदूहृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को त्यागकर नई ही राह पर चल पड़े हैं। इसका खमियाजा उन्हें भविष्य में भुगतना पड़ सकता है। (Lok Sabha Election)

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