वाराणसी स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र में खुदाई की अनुमति सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दे दी है। यह खुदाई इस परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी हिस्से में की जाएगी। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन न्यायालय के आदेश पर पांच सदस्यीय दल का गठन किया जाएगा। जो इस परिसर का सर्वेक्षण करेगा। सर्वेक्षण दल में दो सदस्य मुस्लिम समुदाय से होंगे।
यह प्रकरण 1991 से लंबित है। जिसमें 2019 में परिक्षेत्र के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की गई थी। इस प्रकरण में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार और वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बाताया कि औरंगजेब ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था। जबकि, प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि यहां मंदिर था ही नहीं और न ही औरंगजेब बादशाह ने किसी मंदिर को तोड़ा है। उन्होंने अपने परिवाद पत्र में यह बताया है कि वर्ष 1669 से मस्जिद वहां खड़ी है।
वह सात बिंदु महत्वपूर्ण हैं जो साक्ष्य हैं ज्ञानवापी परिसर के श्रीकाशीविश्वनाथ की संपत्ति होने का।
- पौराणिक साक्ष्य, पांच कोस का दायरा अवमुक्त क्षेत्र – इस याचिका में कहा गया है कि आदिविश्वेश्वर के पांच कोस के दायरे में अवमुक्त क्षेत्र है, जिसमें मां श्रृंगार गौरी स्वयंभू देवता हैं। जिनकी प्राचीन काल से पूजा की जाती है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण और शिव पुराण में भी है।
- सत्ता के पागलपन में की गई कार्रवाई – वर्ष 1669 में औरंगजेब ने मंदिर का हिस्सा सत्ता विस्तार के पागलपन में ध्वस्त किया था। अवमुक्त क्षेत्र के पांच कोस के दायरे के मालिक देवता हैं। ऐसी स्थिति में एक हिस्से पर खड़े किये गए निर्माण को मस्जिद नहीं कहा जा सकता।
- वक्फ बोर्ड गैरकानूनी – मंदिर के हिस्से को ध्वस्त करके उसे वक्फ बोर्ड के अधीन नहीं लाया जा सकता।
- मुसलमानों ने किया अतिक्रमण – इस क्षेत्र में मुसलमानों ने अधिकार अर्जित नहीं किया है बल्कि, अतिक्रमण किया है। इस स्थिति में मंदिर के किसी भी हिस्से का उपयोग करने से वे इसके अधिकारी नहीं हो सकते।
- पूजा स्थल अधिनियम लागू नहीं – ‘पूजा स्थल अधिनियम 1991’ इस मंदिर पर लागू नहीं होता। यहां लगातार पूजा हो रही है, जो 1947 में भी चल रही थी। इसमें पांच कोस के परिक्षेत्र को ध्यान में रखा गया है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का हनन – अनुच्छेद 25 के अंतर्गत संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को निहित किसी भी धर्म को मानने की, आचरण करने की तथा धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
- मुलमानों को अधिकार ही नहीं – ‘श्रीकाशी विश्वनाथ अधिनियम 1983’ पुराने मंदिर में ज्योतिर्लिंग और आदिविश्वेश्वर के अस्तित्व को मान्यता देता है। इसलिए इस क्षेत्र में मुसलमानों को कब्जे में रहने का अधिकार नहीं।