Uttarakhand के देहरादून में मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चों के इस्लामी शिक्षा लेने के मामले एक बार फिर सामने आए हैं। 196 हिंदू बच्चे मदरसों में पढ़ते पाए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि ये बच्चे केवल केवल मौलवी और मुफ्ती ही बनना चाहते हैं। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इस संबंध में शिक्षा व अल्पसंख्यक विभाग को अपराधी माना है। इसके जवाब के लिए उसे 15 दिन का समय दिया है। गैर मुस्लिम बच्चों को मदरसा में शिक्षा देने के मामले में राज्य के सभी जिलाधिकारी को दिल्ली बुलाया जाएगा और जल्द ही उत्तराखंड सरकार को नोटिस भेजा जाएगा।
अवैध अनमैप्ड मदरसों का निरीक्षण
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने 13 मई को देहरादून में अवैध अनमैप्ड मदरसों का निरीक्षण किया। मदरसा वली उल्लाह दहलवी में नौ और मदरसा दारूल उलूम में 12 गैर मुस्लिम बच्चे अन्य प्रांत के पाए गए। बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश व बिहार के गरीब बच्चों को लाकर यहां रखा गया है। बच्चों के रहने के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी है। जहां बच्चे सोते हैं वहीं खाना बनता है। जहां दीनी तालीम पढ़ते हैं वहीं लोग नमाज भी पढ़ने आते हैं, इसलिए बच्चों के खाने व सोने की दिनचर्या बेतरतीव है। किसी भी बच्चे को स्कूल नहीं भेजा जा रहा है। सभी बच्चे केवल मौलवी और मुफ्ती ही बनना चाहते हैं। जबकि कारी-मौलवी के खुद के बच्चे स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी इन मदरसों के अस्तित्व से अनभिज्ञ हैं।
11 पन्नों की रिपोर्ट तैयार
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर में सोमवार को मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि उत्तराखंड में बच्चों से जुड़े कानून के अधिकारों के क्रियान्वन के संबंध में बैठक ली गई है। 14 अलग-अलग विभागों के साथ हुई बैठक में 11 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई है, जो अन्य राज्यों के साथ भी साझा की जाएगी। इस क्षेत्र में उत्तराखंड राज्य में बेहतर कार्य हुआ है। एड्स के बच्चों का डाटा भी जुटाया गया है।
जांच में खुलासा
शिक्षा विभाग और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की कुछ खामियां भी पाई गई हैं। एससी-एसटी व ओबीसी विभाग के साथ भी बैठक हुई है। एक मदरसा में स्थानीय बच्चों को फीस लेकर पढ़ाया जा रहा था। जांच में पता चला कि स्थानीय स्कूल के साथ टाइअप किया गया था, जो नियम विरुद्ध है।
मामले में मांगा जवाब
कई जगह पर पाया गया कि अल्पसंख्यक बच्चों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। सरकार से मान्यता प्राप्त मदरसा में हिंदू बच्चों को भी पढ़ाया जा रहा है। 196 हिंदू बच्चे मदरसा में अभी भी पढ़ रहे हैं। जबकि यह नियम विरुद्ध है। मदरसों में गैर मुस्लिम बच्चे नहीं पढ़ सकते। इसके लिए शिक्षा व अल्पसंख्यक विभाग दोनों बराबर के अपराधी हैं। 15 दिन का समय अल्पसंख्यक विभाग को जवाब के लिए दिया गया है। अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि गैर मुस्लिम बच्चों को मदरसा में शिक्षा देने के मामले में उत्तराखंड के सभी जिलाधिकारी को दिल्ली बुलाया जाएगा और जवाब मांगा जाएगा। इस संबंध में जल्द उत्तराखंड सरकार को नोटिस भेजा जाएगा।
बच्चों का जवाब सुन सन्न गए एनसीपीसीआर अध्यक्ष
हैरानी की बात यह है कि आखिर हिंदू परिवारों की क्या मजबूरी थी, जो उन्हें अपने बच्चों को किसी स्कूल में पढ़ाने के बजाय मदरसों में भेजा है या उन्हें लाया गया है। इन सब के पीछे कोई आर्थिक लाभ, लालच या अज्ञानता तो नहीं है। इस पर गंभीरता से जांच होनी चाहिए। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बच्चों से जब पूछा कि आप सब क्या बनना चाहते हो तो वे हैरान रह गए। सभी बच्चों ने मौलवी और मुफ्ती बनने की इच्छा जताई। इसमें से भी एक भी बच्चा सरकारी नौकरी, डॉक्टर, वकील या सैनिक बनने की इच्छा नहीं जताई। इससे यही पता चलता है कि इनको केवल इस्लामी शिक्षा दी जा रही है और शिक्षा की मुख्यधारा से मोहभंग किया जा रहा है।
मदरसों में धर्मांतंरण का षड्यंत्र
संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि दूसरे धर्म के बच्चों को मदरसे में धर्मांतरण कराने के उद्देश्य से लाया जाता था। हालांकि अभी तक इस बारे में आधिकारिक जानकारी अभी तक नहीं दी गई है।