Swatantraveer Savarkar Award: सावरकर विचार प्रचारक विद्याधर नारगोलकर ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर पुरस्कार प्राप्त करने के बाद अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि मैं यह पुरस्कार अपने पिता को समर्पित करता हूं, जिनके संस्कार देने के कारण मुझे यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है। अपने उद्गार व्यक्त करते समय उनका गला रुंध गया। वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि जब वे स्वातंत्र्यवीर सावकर के विचारों को आगे बढ़ा रहे थे तो उनकी पत्नी ने उनकी प्रकाशित पहली पुस्तक का भुगतान करने के लिए अपने आभूषण बेच दिए। उन्होंने कहा कि मेरा हिंदुत्व अभी भी जीवित है क्योंकि मुझे घर से समर्थन मिलता है।
नारगोलकर ने पुरस्कार अपने पिता को किया समर्पित
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की ओर से, वीर सावरकर की 141वीं जयंती के अवसर पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर पुरस्कारों का वितरण रविवार, 26 मई को दादर में स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सावरकर सभागार में आयोजित किया गया। इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर,स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष प्रवीण दीक्षित, स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर, सावरकर स्ट्रैटेजिक सेंटर के प्रमुख ब्रिगेडियर हेमंत महाजन समेत आईआईटी इंदौर के डा. सुहास जोशी और ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के निर्माता, लेखक और अभिनेता रणदीप हुड्डा मंच पर उपस्थित थे। इसमें सावरकर विकास प्रचारक संस्था के विद्याधर नारगोलकर को स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मृति पुरस्कार-2024 से सम्मानित किया गया। उन्हें यह पुरस्कार बिहार राज्य के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर द्वारा प्रदान किया गया। इस मौके पर नारगोलकर ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि मैं यह पुरस्कार अपने पिता को समर्पित करता हूं। मेरे पिता सावरकर प्रेमी थे। हमारे घर में हमेशा सावरकरवाद और सावरकर के कार्यों की चर्चा होती थी तथा उन्हीं के कारण हमारे परिवार और मुझे हिंदुत्व का संस्कार मिला। इसलिए मैं यह पुरस्कार अपने पिता को समर्पित करता हूं।
पुणे प्रवास से दौरान मिले हिंदुत्व के संस्कार
विद्याधर नारगोलकर ने कहा कि पुणे प्रवास के दौरान मुझे अनेक लोगों से हिंदुत्व का संस्कार मिला। पूज्य गोखले की वजह से मैं चुनाव जीता। उनसे मुझे सीखने को मिला कि पु.भा. भावे का चुनाव कैसे लड़ना है और इसके लिए क्या करना है। नरगोलकर ने यह भी कहा कि ऐसी कई बातें हैं, जो मैंने उनसे सीखी हैं। मैंने मुंबई में खानविलकर, पंडित बखले, घारपुरे, माधवराव पाठक, बालाराव सावरकर से हिंदुत्व के बारे में काफी कुछ सीखा। पंडित बाखल्या के पास उस समय एक टेप रिकॉर्डर था, जो उन्होंने मुझे दे दिया। सावरकर के भाषणों के समय मैं सिर पर टेप रिकॉर्डर लेकर चलता था। पंडित बखले मुझे अखिल भारतीय हिंदू परिषद के लिए दो बार दिल्ली ले गए। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वहां आयोजित यह सम्मेलन पूरे भारत में पहला था, जहां राधाकृष्णन भी आये थे।
सिद्धिविनायक मंदिर पर रणजीत सावरकर का अधिकार
पुणे में मुझे दाते, नलावडे, गोखले, जावड़ेकर के साथ काम करने का अवसर मिला। उनसे मुझे संस्कार मिले और अंततः विक्रमराव सावरकर के साथ मुझे हिंदू धर्म के संस्कार मिले। आज जो सिद्धिविनायक मंदिर खड़ा है, उसके ट्रस्टी अंतुले थे, उनकी पत्नी के भाई को ट्रस्टी बनाया गया था। विक्रम राव ने उनका विरोध किया था, मैं भी वहां था, इसलिए उन्हें वह फैसला वापस लेना पड़ा। इसके लिए विक्रम राव को सजा मिली। इसलिए सिद्धिविनायक मंदिर के ट्रस्टी का अधिकार रणजीत सावरकर का है। पंचगनी में एक ईसाई स्कूल था, जो आज भी मौजूद है। विश्वास राव और मेरे पिता ने उसका कई बार विरोध किया।
पुस्तक प्रकाशन के लि पत्नी ने बेच दिए गहने
जब मैंने सावरकर पर पहली पुस्तक प्रकाशित की, तो मेरी पत्नी ने पैसे जुटाने के लिए अपने आभूषण बेच दिए। लेकिन मैंने पुस्तक प्रकाशित की। पुणे में हजारों लोगों ने मोर्चा निकाला और हमारे हीरो मिलिंद एकबोटे को गिरफ्तार करने के बाद मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद जब मैं घर से निकला तो मेरी पत्नी ने कहा, ‘अप्पा, आप वापस न आएं तो भी कोई बात नहीं, लेकिन हज हाउस पुणे में नहीं होना चाहिए।’मेरे घर से ऐसा समर्थन था और आज भी है।
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