Swatantra Veer Savarkar Jayanti Special: स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantra Veer Savarkar) की 141वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (Delhi Public Library) द्वारा गूगल मीट के माध्यम से एक संगोष्ठी (Seminar) का आयोजन किया गया। इस सेमिनार का विषय था, ‘स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर (Swatantra Veer Vinayak Damodar Savarkar) और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Independence Movement) में उनका योगदान’। सेमिनार में 45 लोगों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम का संचालन दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी उर्मिला रौतेला द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डॉ. अजीत कुमार, प्रो. रिजवान कादरी, वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत विक्रम सावरकर , सुभाष चन्द्र कानखेड़िया, नरेंद्र सिंह धामी और कई सावरकर प्रेमी मौजूद थे।
वीर सावकर भारत माता के सच्चे सपूत
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के महानिदेशक डॉ. अजीत कुमार ने अपने भाषण की शुरुआत वीर सावरकर को याद करते हुए की। उन्होंने उनके बारे में कई तथ्यपूर्ण बातें बताईं। उन्होंने कहा, हम सभी विनायक नाम का मतलब जानते हैं। वीर सावकर भारत माता के सच्चे सपूत थे। वीर सावरकर एक ऐसा शब्द है, जो साहस और हिम्मत देता है। वीर सावरकर जी लोकमान्य तिलक द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र केसरी खूब पढ़ते थे। उन्हें देशभक्त बनाने और उनके मन में देश के प्रति कुछ करने की भावना जगाने में कई पुस्तकों और केसरी समाचार पत्र का बड़ा योगदान है।
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 28 मई 2024 को वीर सावरकर जयंती के अवसर पर गूगल मीट के माध्यम से “स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया I pic.twitter.com/Nk1hGUrdas
— Delhi Public Library (@delhipublibrary) May 28, 2024
लंदन में, वीर सावरकर ने अपने साथी भारतीय छात्रों को प्रेरित किया और स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए एक संगठन ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ का गठन किया। फ्री इंडिया सोसाइटी इंग्लैंड में भारतीय छात्रों का एक युवा संगठन था, जो ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध था। प्रारंभ में यह एक बौद्धिक समूह था, लेकिन इसके संस्थापक नेता भीकाजी कामा के नेतृत्व में यह एक क्रांतिकारी संगठन बन गया। इस संगठन ने क्रांतिकारी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए फ्री इंडिया सोसाइटी नामक एक पत्र भी जारी किया।
कोयले और कीलों से लिखीं 10 हजार कविताएं
मुख्य वक्ता प्रो. रिजवान कादरी ने अपने भाषण में कहा कि वीर सावरकर ऐसे भारतीय थे, जिन्हें एक ही जीवन में दो बार आजीवन कारावास की सजा हुई। उन्हें काला पानी की कठोर सजा के दौरान अनेक कष्ट सहने पड़े। उन्हें अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में 6 महीने तक अंधेरी कोठरी में रखा गया। वीर सावरकर ने उसी काले कमरे में कोयले और कीलों से कई कविताएं लिखीं। इस तरह उन्होंने 10 हजार कविताएं लिखीं।
क्रांति वीरों का किया नेतृत्व
कार्यक्रम में वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत विक्रम सावरकर ने अपने भाषण में कहा कि मैं आपको इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने मुझे उनके पोते के रूप में नहीं बल्कि सावरकर अभ्यासी के रूप में बुलाया। वीर सावरकर स्वयं वंशवाद के विरोधी थे। सावरकर का पोते होने से अधिक महत्वपूर्ण उनका अनुयायी होना है। वीर सावरकर स्वयं इतिहास के ज्ञाता थे। यह प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली। उन्होंने इतिहास से प्रेरणा लेते हुए कहा कि परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, उसके अनुरूप चलते हुए गलती भी हो जाए तो कोई बात नहीं लेकिन उसे दोहराना नहीं चाहिए। आपको गलती से सीखना चाहिए। यदि पूर्वजों की कोई गलती हो तो भी उसे आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। वीर सावरकर ने 15 साल की उम्र में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शपथ ली। चापेकर बंधुओं की फांसी के बाद उन्होंने कसम खाई कि वे देश के लिए क्रांति का नेतृत्व करेंगे। आम भावना यह रही है कि मैं देश के लिए अपनी जान दे दूंगा, लेकिन सावरकर का मानना था कि मरने से हम देश को आजादी नहीं दिला पाएंगे। जब तक हम दुश्मन को नहीं मारेंगे, तब तक देश आजाद नहीं होगा। उन्होंने शपथ ली कि वे अपनी आखिरी सांस तक दुश्मन को मारते रहेंगे।
गणेश दामोदर सावरकर का नमन उतना ही जरूरी
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष सुभाष चंद्र कनखेड़िया ने अपने भाषण में कहा कि वीर सावरकर जी द्वारा लिखी हुई डायरी अभी भी प्रकाशित नहीं हुई है, हम सब मिलकर भारत सरकार से अनुरोध करेंगे कि उस डायरी को देश की हर भाषा में प्रकाशित किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि वीर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर को भी याद करना और नमन करना जरूरी है। क्योंकि जिस समय वीर सावरकर जी को अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में डाल दिया गया था, उस समय उनके बड़े भाई पहले से ही वहां कैद थे। सावरकर बंधुओं को देश के लिए लड़ने की ये सजा मिली। कनखेड़िया ने आगे कहा कि सेल्युलर जेल का जेलर इतना क्रूर था कि उसने दोनों के भाइयों को महीनों तक मिलने नहीं दिया। एक दिन गणेश दामोदर सावरकर ने वीर सावरकर को देखा और कहा, तात्या, तुम यहां कैसे आये, तुम्हें तो बाहर काम करना था। कनखेड़िया ने कहा कि हम इन दोनों महान स्वतंत्रता सेनानी भाईयों को नमन करते हैं।
कार्यक्रम के सामपन पर नरेंद्र सिंह धामी ने इस कार्यक्रम में शामिल सभी लोगों का धन्यवाद किया और वीर सावरकर के बारे में इतनी सारी बातें बताने के लिए रणजीत विक्रम सावरकर के प्रति विशेष रूप से कृतज्ञता प्रकट की।
देखें यह वीडियो-
Join Our WhatsApp Community