Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special: स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantryaveer Savarkar) की 141वीं जयंती पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (Delhi Public Library) द्वारा गूगल मीट के माध्यम से एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार का विषय था, ‘स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान ‘। सेमिनार में 45 लोगों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम का संचालन दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी उर्मिला रौतेला द्वारा किया गया।कार्यक्रम में डॉ. अजीत कुमार, प्रो. रिजवान कादरी, वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत विक्रम सावरकर , सुभाष चन्द्र कानखेड़िया, नरेंद्र सिंह धामी और कई सावरकर प्रेमी मौजूद थे।
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिनांक 28 मई 2024 को वीर सावरकर जयंती के अवसर पर गूगल मीट के माध्यम से “स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया I pic.twitter.com/Nk1hGUrdas
— Delhi Public Library (@delhipublibrary) May 28, 2024
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वीर सावरकर की लिखी डायरी का हो प्रकाशन
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अध्यक्ष सुभाष चंद्र कनखेड़िया ने अपने भाषण में कहा कि वीर सावरकर जी द्वारा लिखी हुई डायरी अभी भी प्रकाशित नहीं हुई है, हम सब मिलकर भारत सरकार से अनुरोध करेंगे कि उस डायरी को देश की हर भाषा में प्रकाशित किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि वीर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर को भी याद करना और नमन करना जरूरी है। क्योंकि जिस समय वीर सावरकर जी को अंडमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में डाल दिया गया था, उस समय उनके बड़े भाई पहले से ही वहां बंदी थे। सावरकर बंधुओं को देश के लिए लड़ने की ये सजा मिली।
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गणेश दामोदर सावरकर का भी नमन जरूरी
सुभाष चंद्र कनखेड़िया ने कहा कि सेल्युलर जेल का जेलर इतना क्रूर था कि उसने दोनों के भाइयों को महीनों तक मिलने नहीं दिया। एक दिन गणेश दामोदर सावरकर ने वीर सावरकर को देखा और कहा, तात्या, तुम यहां कैसे आये, तुम्हें तो बाहर रहकर काम करना था। कनखेड़िया ने कहा कि हम इन दोनों महान स्वतंत्रता सेनानी भाईयों को नमन करते हैं।
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छत्रपति शिवाजी महाराज की नीति पर अमल
वीर सावरकर के लेखन की बात करें तो जिस प्रकार उनका लेखन था, उसको भी लोगो तक पहुंचना चाहिए। कैद में जिस समय उनके पास लिखने के लिए कुछ नहीं था, वो दीवारों पर कोयले और कील से लिखते थे। ये अपने आप में एक महान कार्य है। मेरा यह मानना है कि जो सोच छत्रपती शिवाजी की थी, वही वीर सावरकर की भी थी कि दुश्मन को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इस प्रकार की महान सोच को मानते हुए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति को अपनाया। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सुभाष चंद्र बोस हों, वीर सावरकर हों, सबके संघर्ष और त्याग-समर्पण को वर्षों तक दबाकर रखा गया। उस समय की सत्ता का यह एजेंडा था क्या, इसके बारे में पता किया जाना चाहिए। 2014 से मोदी सरकार आई है और इस सरकार एजेंडा है कि इन अनसंग हीरो के बारे में पूरे देश को बताना चाहिए।
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