Lok Sabha Election Results: न हम हारे, न तुम जीते

इन चुनाव परिणामों के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मन से तैयार नहीं थी। यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार 400 पार का नारा देकर चुनावों को दिलचस्प बना दिया था।

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Lok Sabha Election Results: एक पुरानी कहावत है- तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय। न हम हारे, न तुम जीते। अठारहवीं लोकसभा चुनाव के परिणाम ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को यह गीत गुनगुनाने का अवसर दे दिया है।

सबसे पहली बात तो यह कि इन चुनाव परिणामों से भारत की जनता का लोकतंत्र में विश्वास निश्चित तौर से मजबूत हुआ होगा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे ज्यादा मतदाताओं में इस विश्वास की बहाली अपने आपमें एक पक्ष है। ऐसा भी नहीं था कि इससे पहले लोकतंत्र में लोगों का विश्वास कम था। हां, पिछले कुछ वर्षों में, या यह कहें कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के उभार और लगातार दो बार पूर्ण बहुमत की विस्मयकारी जीत ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को यह आशंका फैलाने का अवसर दिया कि चुनाव निष्पक्ष नहीं होते, या ईवीएम को हैक किया जा रहा है। मंगलवार को आए चुनाव परिणामों ने इन आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया है। भारतीय निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा और बढ़ी है। देश ही नहीं विश्व भर में इसकी चर्चा होगी कि भारत में निर्वाचन कितना निष्पक्ष होता है।

अबकी बार 400 पार का नारा देकर चुनावों को बनाया दिलचस्प
इन चुनाव परिणामों के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मन से तैयार नहीं थी। यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार 400 पार का नारा देकर चुनावों को दिलचस्प बना दिया था। विपक्षी दल भाजपा को 400 पार न जाने देने की कोशिशों में लग गए। पर जमीनी हकीकत भाजपा और उसका नेतृत्व भी जानता था। इसीलिए कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने और उसे अधिक सक्रिय करने के उद्देश्य से एक बड़ा सपना दिखाया गया। चुनाव परिणाम बताते हैं कि वह सपना भले पूरा न हुआ हो पर लगातार तीसरी बार सबसे बड़े दल के रूप में और बहुमत से कुछ ही पीछे रह जाने वाली भाजपा ही सत्ता की असली दावेदार है। लोगों ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास प्रकट किया है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने की ओर बढ़ रहा है। विपक्षी दल सत्ता से दूर रह जाने के बाद भी ऐसा दावा कर रहे हैं जैसे भाजपा चुनाव हार गई। जबकि भाजपा के लिए यह जीत बहुत मायने रखती है। पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी ही ऐसे प्रधानमंत्री होंगे जिनके नेतृत्व में भाजपा सत्ता में पहुंची है।

ओडिशा में पूर्ण बहुमत से पहली बार राज्य सरकार
साथ ही ओडिशा में पूर्ण बहुमत से पहली बार राज्य सरकार बनाने जा रही भाजपा को बहुत बड़ी खुशी दी है। ओडिसा में भाजपा की यह जीत बहुत मेहनत और लगातार संघर्ष के बाद आयी है। वहां 15 साल से नवीन पटनायक के नेतृत्व में काबिज बीजू जनता दल को हराना आसान काम नहीं था। वहीं गठबंधन के सहयोगी दल तेलुगूदेशम पार्टी की भी आंध्र प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सरकार बनने जा रही है।

अखिलेश यादव ने फेरा उम्मीदों पर पानी
इन चुनाव परिणामों का विश्लेषण राजनीतिक दल और राजनीतिक विश्लेषक एक-दो दिन नहीं, कई दिनों तक करते रहेंगे। पर प्रारंभिक रूप से साफ है कि उत्तर प्रदेश की नब्ज समझने में भाजपा कहीं न कहीं चूक गई, वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने भाजपा को आगे बढ़ने से रोका तो महाराष्ट्र में भी भाजपा की राजनीति लोगों के गले नहीं उतरी। खासकर उत्तर प्रदेश के परिणामों ने केन्द्र में भाजपा को स्पष्ट बहुमत से दूर कर दिया। समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव ने मोदी-योगी की उम्मीदों पर पानी सा फेर दिया।

एमवाई फॉर्मुला कर गया काम
प्रारंभिक तौर पर कहें तो राम मंदिर, आधारभूत विकास, माफिया मुक्त राज्य के मुकाबले एक बार फिर एमवाई गठबंधन के साथ ओबीसी का जुड़ जाना इसका बड़ा कारण हो सकता है। समाजवादी पार्टी बहुत पहले से मुस्लिम व यादव समाज के साथ ही दलितों को जोड़ने की रणनीति पर काम करती रही है। इस बार उसने पीडीए (पिछड़े-दलित-अगड़े) का फार्मूला अपनाया। अखिलेश दावा भी कर रहे हैं कि उसके पीडीए फार्मूले का तोड़ भाजपा के पास नहीं था। इससे सवाल उठता है कि तब क्या भारतीय राजनीति और चुनाव को जातिवाद से मुक्ति नहीं मिलेगी। भाजपा इस बात का जवाब खोजेगी कि उसके राष्ट्रवाद का नारा एक बार फिर जातिवाद के सामने क्यों नहीं टिक पाया। इसके बाद भी भाजपा को इस बात की प्रसन्नता होनी चाहिए कि उसी राष्ट्रवाद के आधार पर वह लगातार तीसरी बार सत्तारूढ़ होने जा रही है।

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उत्तर प्रदेश में विपक्ष मजबूत
दूसरी तरफ विपक्ष के लिए भी यह जश्न का अवसर है। नरेन्द्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए बने इंडी गठबंधन, जिसे इंडी नाम देकर लोगों को ध्यान खींचा गया, उसने अपने कुछ राज्यों में जबरदस्त परिणाम दिया। खासकर देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने बड़ा उलटफेर कर विपक्ष को मजबूती प्रदान की। राहुल गांधी और अखिलेश यादव के साथ ही ममता बनर्जी का नेतृत्व इसमें मजबूती से उभरा है। इंडी गठबंधन भले केन्द्र में सत्ता का स्वाद न चख सके, पर सबने मिलकर जो प्रदर्शन किया है, वह निश्चित ही एक मजबूत विपक्ष देगा। आशंकाएं जताई जा सकती हैं कि सत्ता न मिलने पर भी क्या यह गठबंधन बना रहेगा या नहीं। वहीं पूर्ण बहुमत से दूर रह गई भाजपा को भी अपने सहयोगी दलों को साधे रखना-बांधे रखने की एक बड़ी चुनौती होगी।

इंडी गठबंधन खुश
कांग्रेस और इंडी गठबंधन के सहयोगी दलों को अपनी जीत से अधिक इस बात की खुशी है कि वे भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत से पहले ही रोकने में कामयाब रहे। उन्हें लगता है कि पूर्ण बहुमत न मिलने से मोदी सरकार कमजोर होगी। राजग के घटक दलों को तोड़-फोड़ कर सत्ता में परिवर्तन किए जाने की संभावना बनी रहेगी। इस बात के संकेत और कोशिशें पूरे परिणाम आने से पहले ही शुरू हो गईं। विपक्षी दल इस बात से अधिक प्रसन्न दिखते हैं कि पूर्ण बहुमत न मिलने से शायद प्रधानमंत्री मोदी की बातों में वो दम नहीं रहेगा, वो चाल-ढाल नहीं रहेगी, वो धमक नहीं रहेगी। इसलिए उसमें सत्ता से दूर रहने के बाद भी उत्साह और जश्न है। अगर नरेन्द्र मोदी का 400 पार का नारा साकार नहीं हुआ है तो 04 जून को मोदी बेकार का विपक्ष का नारा भी साकार नहीं हुआ।

कुल मिलाकर अठारहवीं लोकसभा के चुनावों ने सत्ता पक्ष, विपक्ष और चुनाव आयोग- सभी को अपनी जय जयकार कराने का एक अवसर दिया है।

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