भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल पहले भी मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं। प्रत्येक बार राष्ट्रीय लोकदल ने उम्मीद से बढ़कर प्रदर्शन किया, लेकिन भाजपा को कभी भी रालोद का साथ रास नहीं आया। इस बार भी रालोद से गठबंधन के बाद भी भाजपा को मुजफ्फरनगर और कैराना सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा वर्सेज रालोद का इतिहास
भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में हराकर रालोद को सियासी वनवास में भेज दिया था। 2014 में भाजपा के सत्यपाल सिंह ने रालोद अध्यक्ष अजित सिंह को करारी शिकस्त दी तो मथुरा से उनके बेटे जयंत सिंह भी चुनाव हार गए थे। इसी तरह से 2019 में मुजफ्फरनगर सीट से भाजपा उम्मीदवार संजीव बालियान ने रालोद अध्यक्ष रहे अजित सिंह काे हराया, तो बागपत से जयंत सिंह को भी हार मिली। विधानसभा और संसद में रालोद का कोई जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचा। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने रालोद के साथ गठबंधन कर लिया।
तीन बार मिलकर लड़े चुनाव
भाजपा और रालोद ने अभी तक तीन बार मिलकर चुनाव लड़े हैं। सबसे पहले 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-रालोद मिलकर चुनाव लड़े। इसका फायदा भी रालोद को 14 सीटों पर जीत के रूप में सामने आया, लेकिन भाजपा को इसका कोई फायदा नहीं हुआ और भाजपा प्रदेश की सत्ता से दूर हो गई। 2009 में भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ा तो रालोद के साथ गठबंधन किया। रालोद के तो पांच सांसद चुनाव जीत गए, लेकिन भाजपा फिर से सत्ता में नहीं आई। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने रालोद को अपना चुनावी साथी बनाया, इस बार भाजपा फिर से अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने से पीछे रह गई। जबकि रालोद ने अपने कोटे की बागपत और बिजनौर सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा में अपना सियासी वनवास खत्म कर लिया। वहीं गठबंधन के बाद भी भाजपा को मुजफ्फरनगर और कैराना सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
जीत का था भरोसा लेकिन मिली हार
मुजफ्फरनगर सीट पर केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और कैराना से सांसद प्रदीप चौधरी चुनाव हार गए। रालोद से गठबंधन होने के कारण भाजपा नेताओं को इन दोनों सीटों पर जीत का भरोसा था। इसके बाद भी हार मिलने से भाजपा नेता भौचक्क हैं और इसकी समीक्षा करने की बात कह रहे हैं।