Reservations Law: बिहार के उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister of Bihar) सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) ने गुरुवार (20 जून) को कहा कि बिहार सरकार (Bihar Government) पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) के उस आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) जाएगी, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 65 प्रतिशत आरक्षण को रद्द कर दिया गया था।
उन्होंने कहा कि सरकार राज्य के लोगों के लिए “न्याय” की मांग करेगी, जहां, भाजपा नेता ने कहा, पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण “बढ़ाना चाहिए”। उनकी टिप्पणी पटना उच्च न्यायालय द्वारा बिहार सरकार के उन कानूनों को अमान्य करार दिए जाने के बाद आई है।
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निर्धारित 50% की आरक्षण सीमा
जिनका उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करना था। न्यायालय ने बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को असंवैधानिक करार दिया, जो अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करता है। यह निर्णय इन संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बाद आया है, जिसमें तर्क दिया गया है कि ये संशोधन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण सीमा को पार करते हैं।
#WATCH | Patna: Bihar Deputy CM Samrat Choudhary says, In Bihar, the reservation of backward communities, dalits and tribals must increase…therefore Bihar govt will go to Supreme Court and will give justice to the people of Bihar…his (Tejashwi Yadav) father did not give… pic.twitter.com/kBuZto7Y2c
— ANI (@ANI) June 20, 2024
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सम्राट चौधरी ने क्या कहा?
चौधरी ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही। उन्होंने कहा, “बिहार में पिछड़े समुदायों, दलितों और आदिवासियों का आरक्षण बढ़ना चाहिए…इसलिए बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी और बिहार के लोगों को न्याय दिलाएगी…उनके (तेजस्वी यादव) पिता ने एक भी व्यक्ति को आरक्षण नहीं दिया, लालू प्रसाद यादव का मतलब आरक्षण विरोधी, वे अपराध के समर्थक और गुंडागर्दी के प्रतीक थे।”
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कानूनी चुनौती और न्यायिक फैसला
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार ने गौरव कुमार और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाया, जिस पर 11 मार्च, 2024 को सुनवाई हुई। बिहार के महाधिवक्ता पी.के. शाही ने तर्क दिया कि इन समूहों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के कारण आरक्षण में वृद्धि आवश्यक थी, जो विधायी कार्रवाई को उचित ठहराता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरक्षण आनुपातिक जनसंख्या आवंटन पर आधारित नहीं थे।
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विधायी पृष्ठभूमि और विवाद
बिहार विधानसभा ने 9 नवंबर, 2023 को इन कानूनों को पारित किया, जिसका उद्देश्य सामान्य श्रेणी की सीटों को 35% तक सीमित करते हुए एससी, एसटी, ईबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाना था। आरक्षण सीमा के मुद्दे पर पहले सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी मामले में 50% की सीमा तय की थी। आरक्षण के लिए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण से संबंधित मामला वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।
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